उत्तराखण्ड
आसौज खेति-पाती में- आधुनिक ब्यारी नखार…(कुमाऊंनी व्यंग)
ब्यारी नखार, व्यंग
असौज लागि र.. ब्ब्वारि घर् बुलै राखी…
अथाह काम है र हो…
पढ़ी लिखी ब्बारि छु…लागिये छु बिचारि काम में.. .
दिन रात मौबेल में औनलाइन् काम् निपटूंण् में ..
बिल्कुल फुर्सत नि भै..
शहर में रुनेर भइ … गोठ पात , चुलि भानि ,भन पान , झाड़ पात , लिपंण घैसंण , पाणी पन्यैर , ख्यात पात , काटण मानण के हूं , बिचारि कु पत्त नि भय…
बुतकार् इदुक् भै कि जस् कस् कामक़् लिजी बिचारिक् कमर् न्यूड़ नेर नि भइ ..बिचारि इदुक् कौं भइ कि के कामाक् नाम पर वीक् बुती सिणुकाक् तोड़ बेर द्वि तुकुड़् लै नि हुनेर् भाय…
बुड़ियेल एकारै बुदबुदाट ,मचमचाट और कचकचाट लगाई भय की तुम के नि कूंना…
आप के करि छ्यू…हिम्मत करी…
ब्बारि थें कऽऽऽऽ…
द ब्बारीं..जी रये… भल भय.. आ गे छै..
हमर् अहो भाग्य…हमार् भाग् खुल..
आप हमन् लै सज है जालि..मुणी मदद् कर देली…
पै ब्बारी …के कूं पै आप् .. तु पढ़ी लिखी भई…समझदार् भई…
द ब्बारी …त्यर् खुट् में कान् झन् बुड़ो…
पर ब्वारी़… दिन् रात् तसिक बैठ रू छै…
मुणी आपण् सासुक् मदद् कर दिनी…
हड़पियक् मुख लै फरांग् भयऽऽ त् बिराऊ कु त् कुछ शरम् हूंण चैं न…
ब्वारी …बाकि के लै नि भय त…माणक् खै बेर मुट्ठीक् उपकार त हूंण् चैं न …
द वीक तैं त भिष्मांत है गोइ हो..
कूंण बैठी..के कूण लाग् रौछा…
मीन कऽऽ..के नै ब्बारी…
कूण लागि रयू कि… ब्वारी ख्यात् पात् झन् जये…खुट् में कान् बुड़ाल् … त्वील के करिए नि भय…
बैठ रऽऽऽ…हमार् चुइ में मांस दव…
खेति समेरी जाली त् भट ,मास , गहत सब समेट लि जाली..
त्येरी बलै लिण है ज़..त मौबैलक लै बलै लिण है ज…कदुक् भल लागंण् लाग र त्यार् हाथ में…
बैठ आरती उतार् दिनू…एक फोटक् लै खींच द्युन…
उ खुश है गे..
कूँण लागी…जरा रुको… जरा रंगाई पिछोड़ पैर ल्यु…हाथ में दातुल लि ल्युं…घा , गाज्याेक पु दगड़ फोटो खिंचे ल्यु…
जरा लिपिस्टिक विपिस्टिक , क्रीम पौडर त लगूंण दियो…जल्दी लगे ल्यून…फेसबुक में स्टेटस अपडेट कर दियूंन नै…
बस उ फटाफट तैयार है गे….
मीन लै फॊटक खींची …
और कऽऽऽ..द ब्ब्वारी…नकटिक् नाक् कटि , नौ हाथ् और बड़ि… अणहोत्ति काव् , डूबुक् लाग् गाव् …
ब्बारी अथा खुश है गे हो..
बुढी ख्वर् पकड़ बेर मि कू मैकुंण रै…
मि के करूं हो… जरा बतावो पें……।।
–जय पांडे, हरिद्वार से