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उत्तराखण्ड

भाकपा (माले) की टीम ने किया जोशीमठ का दौरा, दिए सुझाव

हल्द्वानी । भाकपा (माले) राज्य कमेटी की टीम ने राज्य सचिव कॉमरेड राजा बहुगुणा के नेतृत्व में जोशीमठ के आपदा ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया। साथ ही जोशीमठ की संघर्षशील जनता के साथ एकजुटता जाहिर की। दौरे से वापसी के बाद जोशीमठ के हालात पर भाकपा (माले) की ओर से अपने आंकलन और सुझाव दिए गए।

भाकपा (माले) की राज्य कमेटी ने जोशीमठ में व्यापक स्तर पर निरीक्षण और आपदापीड़ित जनता से बातचीत के आधार पर केंद्र और राज्य सरकार पर यह आरोप लगाया कि, “इतने दिन बीत जाने के बाद भी आपदाग्रस्त जोशीमठ के लिए वह कोई पुनर्वास व विस्थापन कार्ययोजना नहीं बना पाई है। राहत के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है और मीडिया के माध्यम से देश को भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है कि सरकार पूरी मुस्तैदी के साथ जोशीमठ आपदा से निपट रही है। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि 863 से अधिक मकानों पर दरारें आई हैं और निरंतर दरारें बढ़ती जा रही हैं। लेकिन राज्य सरकार लगातार झूठ बोल रही है कि दरारें पढ़ना अब रुक गया है। हालत यह है की जिन लोगों का विस्थापन किया गया है उनको जरूरी सुविधाओं से वंचित रखा गया है। जमीनी स्तर पर जो स्थितियां दिखाई दे रही हैं उससे स्पष्ट लगता है कि प्रशासन के हरकत में आने के बाइस दिनों बाद भी आपदा प्रभावितों के लिए किसी भी तरह की ठोस कार्ययोजना नहीं है, केवल खानापूर्ति हो रही है। प्रधानमंत्री के सीधे निर्देश के दावों के बावजूद मुख्यमंत्री और आपदा के लिए जिम्मेदार कोई भी मंत्री अधिकारी जमीनी स्तर पर आपदा प्रभावितों की सुध लेते नहीं दिखते। इस उदासीनता के लिए केंद्र और राज्य सरकार की बराबर जवाबदेही है, जिन्हें तत्काल हीलाहवाली और नौकरशाही रवैया छोड़ जमीनी कार्रवाई में उतर आपदा प्रभावितों को तत्काल जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति द्वारा सुझाए गए स्थानों का चयन और निर्माण, मुआवजा, आवास, ठंड से बचने के लिए सभी के लिए हीटर, पौष्टिक आहार, स्वच्छ पानी और शौचालय, पशुओं के लिए शेल्टर आदि बुनियादी सुविधाओं का प्रभावी बंदोबस्त करना चाहिए।” भाकपा माले राज्य सचिव कॉमरेड राजा बहुगुणा ने कहा कि, “केवल मीडिया के माध्यम से झूठ का प्रचार हो रहा है ! केवल खानापूर्ति के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं , राहत के नाम पर परिवारों को डेढ़ लाख रुपया दिया जा रहा है और इसे काफी मान लिया गया है।
ज्ञातव्य है कि गत सितंबर में ही राज्य सरकार द्वारा गठित कमेटी ने जोशीमठ के लिए पुनर्वास विस्थापन नीति बनाने की संस्तुति दी थी जिस पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है और अब कहा जा रहा है कि नई पुनर्वास विस्थापन नीति बनाई जा रही है।

इधर केंद्र और राज्य सरकार का जोर आगामी तीर्थ यात्रा पर केंद्रित है और सरकार की ओर कहा जारहा है कि हेलंग – मारवाड़ी बाईपास का काम को फिर से शुरू किया जाएगा ! जबकि यह तथ्य है की इस बाईपास मार्ग ने जोशीमठ की जड़ को और कमजोर करने का काम किया है ! पहले से ही एनटीपीसी द्वारा बनाई जा रही टनल बर्बादी का सबब बनी है और अब इस बाईपास मार्ग के द्वारा आपदा की तीव्रता को बढ़ाने का तुगलकी फरमान जारी करने की बात हो रही है।” उन्होंने बताया कि,
“भाकपा माले ने 2004 में ही तत्कालीन सरकारों को यह आगाह कर दिया था की विष्णुप्रयाग परियोजना से सबक लेते हुए तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना को स्थगित किया जाना चाहिए क्योंकि यह बर्बादी का सबब बन सकती है। माले द्वारा साफ कहा गया था कि यदि जोशीमठ शहर के नीचे टनल बनेगी तो यह जोशीमठ शहर के लिए बहुत खतरनाक साबित होगी। सरकार को आगाह करने हेतु तब पार्टी द्वारा 72 घंटे का धरना दिया गया था और कहा गया था कि सरकार इस जन विरोधी परियोजना पर लगाम लगाए। लेकिन तब सुना नहीं गया और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति तो शुरू से ही इस परियोजना का विरोध कर रही थी उसकी भी नहीं सुनी गई और नतीजा सबके सामने है। जोशीमठ दरक और धंस रहा है। इतना सब होने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकार एनटीपीसी को जिम्मेदार मानने के लिए तैयार नहीं है और कहा जा रहा है की वैज्ञानिक जांच करके सच्चाई सामने लाई जाएगी जबकि सच्चाई यह है की जिस योजना को 2011 तक बनकर तैयार हो जाना चाहिए था वह अधर में लटकी है और जोशीमठ शहर बर्बादी के कगार पर आ खड़ा हुआ है। प्रथम दृष्टया इसका मुख्य कारण टनल बनाने हेतु की गई ब्लास्टिंग और फंस गई टीबीएम मशीन के किनारे दूसरा बाईपास बनाने से हालात बद से बदतर हो गए हैं। यह भी एक सच्चाई है कि जब यह परियोजना शुरू हुई तो जोशीमठ शहर को इससे क्या फर्क पड़ेगा।

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इस हेतु कोई भूगर्भीय जांच भी नहीं हुई , बल्कि मान लिया गया कि जोशीमठ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा और आज जब जोशीमठ पर यह कहर बरपा है तो कहा जा रहा है की जोशीमठ की बर्बादी के लिए और दूसरे कारण जिम्मेदार हैं जबकि जिन कारणों का हवाला दिया जा रहा है उसके लिए भी सरकारें ही जिम्मेदार है।”

भाकपा माले राज्य कमेटी की ओर से कहा गया कि, “यह बहुत ही खेदजनक व हास्यास्पद है कि राज्य सरकार सच्चाई पर पर्दा डालने के लिए औली में शीतकालीन क्रीड़ा और आगामी तीर्थयात्रा की कवायद हेतु प्रचार में जुट गई है और दूसरी ओर ‘इसरो’ द्वारा जारी की गई जोशीमठ की सच्चाई को उदघाटित न करने के असफल प्रयास किए जा रहे हैं। इस तरह की कवायद आपदाग्रस्त जोशीमठ वासियों के घाव पर नमक छिड़कना नहीं तो और क्या है?”

माले नेताओं ने कहा कि, “2013 की केदार आपदा के बाद भी केंद्र और राज्य सरकार का उत्तराखंड में विकास हेतु नीतियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है और केदारनाथ को कंक्रीट के जंगल में बदल दिया गया है। ऋषि गंगा प्रोजेक्ट की टनल में सैकड़ों लोगों के दफ़न होने के बाद भी विनाशकारी जल विद्युत परियोजनाओं और चार धाम परियोजना को जारी रखा गया है, ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल मार्ग के निर्माण के दौरान भी कई जगह दरार पढ़ने की सूचनाएं मिल रही है। अभी भी समय है कि मध्य हिमालय के संवेदनशील इलाके में विकास की दिशा को जनपक्षीय बनाने के लिए एक नई कार्ययोजना तैयार की जाए अन्यथा आने वाले समय में बड़े जानमाल के संकट का खतरा अवश्यंभावी है।”

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जोशीमठ आपदा का जायजा लेने गई भाकपा माले की टीम में पार्टी के उत्तराखण्ड राज्य सचिव कॉमरेड राजा बहुगुणा के अतिरिक्त भाकपा (माले) के वरिष्ठ नेता गिरिजा पाठक व नैनीताल जिला सचिव डा. कैलाश पाण्डेय भी शामिल रहे।

जोशीमठ आपदा के समाधान के लिए भाकपा (माले) ने मांग उठाई :
1.केंद्र सरकार जोशीमठ के राहत- पुनर्वास के काम को अपने हाथ में ले कर त्वरित गति से कार्यवाही करे ताकि लोगों का जीवन और हित सुरक्षित रहे.
2.राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण का काम राष्ट्रीय पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण नीति 2007 के तहत किया जाना चाहिए.

  1. जोशीमठ की वर्तमान तबाही के लिए जिम्मेदार एन टी पी सी द्वारा बनाई जा रही तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना को तत्काल स्थायी रूप से बंद किया जाए. साथ ही जोशीमठ का अस्तित्व संकट में डालने के लिए एन टी पी सी पर इस परियोजना की लागत का दो गुना जुर्माना लगाया जाए। इस राशि को परियोजना के कारण उजड़ने वाले लोगों में वितरित किया जाए.
  2. केंद्र सरकार जोशीमठ के लोगों को घर के बदले घर व जमीन के बदले जमीन देते हुए नए व अत्याधुनिक जोशीमठ के समयबद्ध नव निर्माण के लिये एक उच्च स्तरीय उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित करे, जिसमें जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति और स्थानीय जन प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए। जोशीमठ की जनता के पुनर्वास के लिए जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति द्वारा सुझाए गए जोशीमठ के आसपास के विकल्पों को प्राथमिकता देते हुए और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति को विश्वास में लेते हुए जोशीमठ के समग्र, उचित और सम्मानपूर्ण पुनर्वास की गारंटी की जाय।
  3. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बन रही व प्रस्तावित सभी जलविद्युत परियोजनाओं, ऑल वेदर रोड और रेल मार्ग की समीक्षा की जाय।
  4. पंचेश्वर जैसे विशालकाय बांध हिमालयी क्षेत्र में न बनाए जाएं।
  5. मध्य हिमालय के संवेदनशील इलाके में विकास की दिशा को जनपक्षीय बनाए जाने के लिए एक नई कार्ययोजना तैयार की जाए।
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