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चंद्र ग्रहण: आज लगने वाले ग्रहण को क्यों कहा जा रहा है ब्लड मून

15-16 मई को चंद्र ग्रहण के दौरान दुनिया के कई हिस्सों में ब्लड मून दिखाई देगा। ये एक अनोखी घटना होती है जब चंद्र ग्रहण लगेगा और हमें ब्लड मून यानी लाल रंग का चन्द्रमा दिखाई देगा।

15 मई की शाम को धरती, सूरज और चन्द्रमा के बीच आ जाएगी। जिससे चन्द्रमा तक सूरज की रोशनी नहीं पहुंच सकेगी।

ये साल 2022 का पहला चंद्र गहण है।

पूर्ण चंद्र ग्रहण अमेरिका के पूर्वी हिस्से, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका के कई हिस्सों में, पश्चिमी यूरोप में नज़र आएगा।

सुपरमून और ब्लड मून क्या हैं?

सुपरमून: सुपर मून वह खगोलीय घटना है जिस दौरान चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है इसलिए वो बड़ा दिखता है और 14 फ़ीसदी अधिक चमकीला भी। इसे पेरिगी मून भी कहते हैं। चन्द्रमा या किसी दूसरे उपग्रह की धरती से सबसे नजदीक वाली स्थिति को पेरिगी और सबसे दूर वाली स्थिति को अपोगी कहते हैं।

चन्द्रमा को सुपर मून तभी कहा जाता है जब वो धरती से 3,60,000 किलोमीटर या उससे कम की दूरी पर हो।

26 मई को पेरिगी की स्थिति क़रीब 7।23 मिनट पर आएगी, जब चन्द्रमा धरती से 3,57,309 की दूरी पर होगा।

कई लोग सुपर मून के धरती पर और हमारे ऊपर होने वाले असर की चर्चा करते हैं, लेकिन इस बात को साबित करने के कम ही सबूत हैं कि इसके कारण भूकंप, ज्वालामुखी का फटना, सूनामी, बाढ़ या ख़राब मौसम जैसी घटनाएं होती है।

चन्द्रमा का असर समुद्र की लहरों पर ज़रूर होता है, फूलमून और न्यूमून वो समय होते हैं जब समुद्र की लहरें तेज़ होती है। लेकिन पेरिगी की स्थिति में भी इनपर औसतन पांच सेंटीमीटर से अधिक का फ़र्क नहीं पड़ता।

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ब्लडमूनः चंद्र ग्रहण के दौरान चन्द्रमा पृथ्वी की छाया में चला जाता है। इसी दौरान कई बार चन्द्रमा पूरी तरह लाल भी दिखाई देगा। इसे ब्लड मून कहते हैं।

नासा के मुताबिक सूरज की किरणें धरती के वातावरण में घुसने के बाद मुड़ती हैं और फैलती हैं। नीला या वायलेट रंग, लाल या नारंगी रंग के मुकाबले अधिक फैलता है।

इसलिए आकाश का रंग नीला दिखता है। लाल रंग सीधी दिशा में आगे बढ़ता है, इसलिए वो हमें सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त ही दिखाई देता है। उस वक्त सूर्य की किरणें धरती के वातावरण की एक मोटी परत को पार कर हमारी आंखों तक पहुंच रही होतीं हैं।

द्र ग्रहण के दौरान सूर्योदय या सूर्यास्त के समय की बची हुई लाल किरणें पृथ्वी के वातावरण से होते हुए चन्द्रमा की सतह तक पहुंच जाती हैं। इसलिए ग्रहण के दौरान चन्द्रमा हमें लाल दिखने लगता है। पृथ्वी के वातावरण में ग्रहण के दौरान जितने ज़्यादा बादल या धूल होगी, चन्द्रमा उतना ही ज़्यादा लाल दिखेगा।

ब्लूमूनः यह महीने के दूसरे फुल मून यानी पूर्ण चंद्र का मौक़ा होता है। जब फुल मून महीने में दो बार होता है तो दूसरे वाले फुल मून को ब्लू मून कहते हैं।

क्या सभी सुपरमून लाल होते हैं? क्या सभी चंद्र ग्रहण में सुपरमून होता है?

नहीं, सुपरमून और चंद्र ग्रहण अगल-अलग खगोलीय घटनाएं हैं, जो कभी-कभी एक साथ घटित होती हैं।

क्या भारत में दिखेगा ब्लडमून?

नहीं, भारत के ज़्यादातर हिस्सों के लिए पूर्ण ग्रहण के दौरान चंद्रमा क्षितिज से नीचे होगा और इसलिए देश के लोग ब्लड मून नहीं देख पाएंगे। लेकिन कुछ हिस्सों में, ज्यादातर पूर्वी भारत के लोग केवल आंशिक चंद्र ग्रहण के अंतिम क्षणों के देख सकेंगे।

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“देश के ज़्यादातर हिस्सों के लिए चन्द्रमा पूर्वी क्षितिज के नीचे होगा, इसलिए वो ब्लड मून नहीं देख पाएंगे। लेकिन कुछ इलाकों में लोगों को आंशिक चंद्र ग्रहण के आखिरी कुछ पल देखने को मिल सकते हैं। कोलकाता में 6 बजकर 15 मिनट पर चन्द्रमा उदय होगा। मुमकिन है वहां के लोग 6 बजकर 22 मिनट के आसपास आंशिक ग्रहण देख पाएं।”

दिल्ली, मुंबई, चेन्नई समेत देश के ज़्यादातर हिस्सों में लोग ग्रहण नहीं देख पाएंगे

कब लगता है चंद्रग्रहण?
सूर्य की परिक्रमा के दौरान पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाती है कि चन्द्रमा धरती की छाया से छिप जाता है। यह तभी संभव है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा अपनी कक्षा में एक दूसरे की बिल्कुल सीध में हों।

पूर्णिमा के दिन जब सूर्य और चंद्रमा की बीच पृथ्वी आ जाती है तो उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इससे चंद्रमा का छाया वाला भाग अंधकारमय रहता है। और इस स्थिति में जब हम धरती से चन्द्रमा को देखते हैं तो वह भाग हमें काला दिखाई पड़ता है। इसी वजह से इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’उत्तराखंड
(वैज्ञानिक शोध, प्रचार-प्रसार व शिक्षा से सरोकार)

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