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कुमाऊँ

एनरीको फ़र्मी एक -महान वैज्ञानिक

आज कृतम रेडियो एक्टिव तत्वों के अन्वेषणकर्ता वैज्ञानिक फर्मी का जन्म दिन हैं। (29 सितम्बर 1901, – 28 नवंबर 1954.)
एनरिको फर्मी इटैलियन भौतिक विज्ञानी एवं नोबेल पुरस्कार विजेता थे। इनका नाभिकीय भौतिकी में महत्वपूर्ण कार्य रहा। गटिंगेन एवं लाइडेन से अपनी प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत फर्मी का ध्यान चीजो के होने अथवा न होने के कारणों में लगा रहता था।
इनकी विशेष खोज कृत्रिम रेडियो सक्रिय पदार्थ की रही। अपने शोध व उत्कृष्ट कार्य के बलबूते फर्मी ने कई पुरुस्कारों को अपने नाम करवायये। पुरस्कार-उपाधि : मैट्टेउची मेडल(1926), नोबेल पुरस्कार(1938), हुजेस मेडल(1942), मेडल फ़ोर मेरिट(1946), फ़्रेकलिन मेडल(1947), रमफ़ोर्ड मेडल(1953), मैक्स प्लैंक मेडल(1954)। फर्मी ने भारी तत्वों के नाभिकों को तोड़ने के संबंध में महत्वपूर्ण शोध कार्य किया तथा सन् 1934 में, न्यूट्रॉन की बमबारी द्वारा भारी तत्वों के नाभिकों को तोड़ने में सफलता प्राप्त की। इस प्रकार फर्मि ने तत्वांतरण करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। कृत्रिम रेडियो ऐक्टिव पदार्थों का सृजन करने के उपलक्ष्य में, सन् 1938 में, इन्हें नोेबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।ये सन् 1939 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक नियुक्त हुए। सन् 1942 में इन्हें प्रथम परमाणु भट्टी बनाने में सफलता मिली। नाभिकीय विज्ञान में आपका योगदान चिरस्मरणीय रहेगा।
उनके सम्म्मान मे ब्रह्मांड का निर्माण करने वाले कणो जैसे इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्युट्रान को फ़र्मियान कहा जाता है।
फ़र्मी का जन्म 29 सितंबर 1901 को रोम शहर में हुआ। शिक्षा गटिंगेन एवं लाइडेन में हुई तथा तदुपरांत रोम में भौतिकी के प्राध्यापक नियुक्त हुए। ये सन् 1939 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक नियुक्त हुए। सन् 1942 में इन्हें प्रथम परमाणु भट्टी बनाने में सफलता मिली।

एनरीको फ़र्मी और पुस्तके।
पढ़ाई में बच्चों की जिज्ञासा पैदा करनी चाहिए। अगर बच्चों को पढ़ने में बड़ी जिज्ञासा हो, तो वे हर समय पढ़ना चाहते हैं।

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अब हम भौतिकी में नोबेल पुरस्कार विजेता फर्मी की चर्चा करते हैं। उन्हें भी बचपन से ही किताब पढ़ने का बड़ा शौक था। स्कूल में प्राप्त शिक्षा उनके लिये काफ़ी नहीं थी, वे अकसर बाजार में जाकर भौतिक विज्ञान से जुड़ी तमाम पुस्तकें खरीद लेते थे। एक दिन उन्होंने घर में भौतिक व गणित की दो किताबें ले ली। उन्होंने अपनी बहन को बताया कि वे फ़ौरन उन दो किताबों को पढ़ेंगे। उन्होंने बड़े चाव से पढ़ा और कहा कि यह किताब बहुत दिलचस्प है। उनकी मेहनत और पढ़ाई में जिज्ञासा ने उन के पड़ोसी प्रोफ़ेसर अमिदी पर गहरा प्रभाव डाला। प्रोफ़ेसर उन्हें बहुत पसंद करते थे, और हमेशा उन्हें कुछ मुश्किल सवाल देते थे। अमिदी को लगता था कि फ़र्मी सभी सवालों का जवाब नहीं दे पाएंगे। पर फ़र्मी हमेशा कम समय में सभी जवाब दे देते थे। फिर फ़र्मी प्रोफ़ेसर से और मुश्किल सवाल देने को कहते थे। एक बार प्रोफ़ेसर ने एक सवाल फ़र्मी को दे दिया, इस सवाल का जवाब प्रोफ़ेसर खुद भी नहीं जानते थे। पर आश्चर्य की बात है कि फ़र्मी ने इसका जवाब दे दिया। प्रोफ़ेसर ने उनकी खूब प्रशंसा की, और भौतिक व गणित में अपनी सभी पुस्तकें एक एक करके फ़र्मी को दे दी। फ़र्मी एक मछली की तरह भौतिक व गणित के समुद्र में तैरते थे। प्रोफ़ेसर की शिक्षा व मदद से फ़र्मी को युवावस्था में विस्तृत जानकारियां और गहन व अद्वितीय विचार हासिल हो गए। वास्तव में अगर एक छात्र को पढ़ने की जिज्ञासा है, तो उसे हर समय पढ़ने का मौका मिल सकता है। अगर अवकाश होता है, तो उसका पहला काम ज़रूर पढ़ाई होता है। वे थोड़े-थोड़े समय में अपनी इच्छा से पढ़ सकते हैं, अपने पसंदीदा संसाधन ढूंढ़ सकते हैं, और पढ़ाई में मिली मुश्किलों का सामना कर सकते हैं।
हर मां-बाप चाहते हैं कि उनके बच्चे की पढ़ाई अच्छी हो, लेकिन अच्छी पढ़ाई की पूर्वशर्त होती है। एक पूर्वशर्त है, बच्चा खुद पढ़ना चाहता है। इस पक्ष में मां-बाप को दो बातों पर ध्यान देना चाहिये। एक है बच्चे को अपने आप सीखने का प्रोत्साहित करना। और दूसरा है बच्चे के लिये पढ़ने का एक अच्छा पारिवारिक माहौल तैयार करना।

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प्रेम प्रकाश उपाध्याय नेचुरल’ उत्तराखंड
(लेखक वैज्ञानिक शोधों,अन्वेषणों व शिक्षा के प्रचार-प्रसार से जुड़े है)

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