उत्तराखण्ड
वर्षों बाद भी निर्मल पंडित का परिवार अपेक्षाकृत
हमेशा की तरह झ्स बार भी भुला दिया गया बलिदानी वीररिश्तेदारों की दया पर जीने को मजबूर है निर्मल की माँ
पिथौरागढ़। राज्य आन्दोलनकारी निर्मल पंडित की आज पुण्य तिथि है। राज्य आन्दोलनकारियों में सबसे प्रमुख रहे निर्मल पंडित को इस बार सरकार में भी याद नहीं किया गया। राज्य आन्दोलन के पुरोधा रहे पिथौरागढ़ निवासी स्व० निर्मल पण्डित ने पृथक उत्तराखण्ड राज्य के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी थी।
राज्य को बने दो दशक से अधिक समय बीत चुका है। पृथक राज्य के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले बलिदानी वीर को अपेक्षित सम्मान आज तक नहीं मिल पाया। हर सरकार द्वारा राज्य आन्दोलन में शहीद हुए नागरिकों को उचित सम्मान देने तथा उनके परिजनों का ध्यान रखने को लेकर बड़ी बड़ी बातें की जाती रही, बहुत से आन्दोलनकारीयों को सम्मान मिला भी है, लेकिन निर्मल जैसे महान पुरोधा के बलिदान को आज तक भुलाया जाता रहा है।
परिजनों का कहना है कि धामी सरकार से राज्य प्रेमियों को उम्मीद थी कि बीते राज्य स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर महान बलिदानी निर्मल पण्डित के सम्मान में अवश्य कुछ न कुछ घोषणाएं होंगी, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। यहां यह बताते चलें कि पृथक राज्य के लिए प्राणों की आहूति देने वाले निर्मल पण्डित की माँ तभी से बेसहारा हो गयी थी। किसी सरकार ने एक लाचार- बीमार माँ की कभी सुध लेने की जरूरत नहीं समझी।
वर्तमान में निर्मल की माँ हल्द्वानी में अपनी पुत्री के घर में रहकर किसी तरह जीवन जी रही है। उम्र के अन्तिम पड़ाव में उनकी लाचारी को समझा जा सकता है। क्या सरकार निर्मल की मां की कोई खैर खबर लेगी, यह एक बड़ा सवाल है। पृथक राज्य निर्माण के लिए महासंघर्ष करते हुए शराब विरोध में अपनी जान गंवा देने वाले स्व० निर्मल पंडित ने ऐसे राज्य की परिकल्पना तो कभी नहीं की होगी।
जहाँ आज शराब से संस्कृति खतरें में है। उत्तराखण्ड के जनसरोकारों से जुडे मुद्दों पर आवाज बुलंद करके सरकार को हिलानें वाले महान् क्रान्तिकारी छात्र नेता स्व० निर्मल जोशी ” पण्डित” उत्तराखंड की बुलंद आवाज थे 1994 के राज्य आन्दोलन के दौर में जब वह सिर पर कफन बांधकर आन्दोलन में कूदे तो आन्दोलन को विराट गति मिली।
जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के अन्तर्गत 1970 में पोखरी गांव में जन्में स्व० पण्डित वर्ष 1991 में पहली बार पिथौरागढ महाविद्यालय में छात्रसंघ के महासचिव चुने गये थे कर्म निष्ठा के बल पर वे लगातार तीन बार इस पद पर रहे बाद में पिथौरागढ़ छात्र संघ अध्यक्ष भी रहे। अपने जीवन काल में निस्वार्थ भाव से जन सेवा में सलग्न रहे प्रमुख राज्य आन्दोलनकारी की उपेक्षा सोचनीय है।