कुमाऊँ
गिरदा ! वो झोला टोपी कुर्ता चप्पलें,कविता गीत तुम्हारे
गिरदा की पुण्यतिथि पर विशेष-
स्व. गिरदा के भीतर ऐसी आत्मीयता थी कि स्वयं स्थापित कलाकार, कवि और लोकगीतों, संस्कृति में माहिर होने के बावजूद, छोटा बड़ा का फर्क नहीं रखते थे। वह अपने से उम्र में कम उन विश्वविद्यालयी छात्रों को भी, एवं अपने से बड़े उम्रजदा को भी, साथ में अपनी मोहक कला प्रतिभा से बटोरे-से रहते थे। एक सहृदय रचनाकार, कलाकार यही खासियत होती है कि उम्र का लिहाज बहुत ज्यादा नहीं करते हैं। डॉ महेश पाठक विश्वविद्यालय छात्र जीवन के दिनों से गिर्दा, शेरदा आदि के बहुत करीब रहे। कई रंगमंच, सांस्कृतिक, साहित्यिक, लोकमंच कार्यक्रमों में जुड़े रहे। खासकर स्थानीय कवि सम्मेलनों में गिरदा से बहुत कुछ सुनने-सीखने को उन्हें मिला होगा। अपने परिवार के संबंधी, निजी व्यक्ति के गुजरने पर जो दर्द पीड़ा बयां की जाती है, उससे कहीं ज्यादा गिर्दा के लिए तमाम उनके अनुयायियों, प्रशंसकों, संगी रचनाकारों ने लिखी होंगी। गिरदा के प्रति सन् 2010 में समर्पित यह कविता तब के कुछ पत्रों में छपी। डॉ महेश पाठक की उसी रचना को, आज श्रद्धेय गिरदा को सादर श्रद्धा सुमन के साथ, पुनः एक बार समर्पित कर रहे हैं– संपादक