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उत्तराखण्ड

भारत में कृषि नहीं कृषक को प्रधान बनाने की जरूरत :डां परोदा

कहा कभी हरित, श्वेत अब इंद्रधनुषी क्रांति की चल रही है बात,कृषि वैज्ञानिक पद्मभूषण डॉ राजेंद्र सिंह पर्द की प्रेस वार्ता

नवीन बिष्ट

अल्मोड़ा। कृषि क्षेत्र में अभी तक मैदानी क्षेत्रों में ही प्रगति हुई है। अब पहाड़ों में तरक्की की आवश्यकता है। यह बात पद्मभूषण डॉ राजेंद्र सिंह परोदा ने कही। वह सोमवार को विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के 46वें कृषि विज्ञान मेले गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि भाग लेने हवालबाग आए हुए थे। गोष्ठ से पूर्व पत्रकारों से बातचीत कर रहे परोदा ने कहा कि हमें पुनः स्थानीय उत्पादन की ओर ध्यान देना होगा। देश के प्रधानमंत्री ने भी इस पर जोर दिया है। पर्वतीय इलाकों में वर्षा जल के संचय पर जोर देते हुए कहा कि जल संचय कैसे हो इस दिशा में काम करने की जरूरत है। पूर्व में आईसीएआर के निदेशक व कृषि अनुसंधान एवं शी.वी.भारत सरकार में सचिव रहे डॉक्टरों ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि खेती में विभिन्नता लाने की बेहद जरूरत है। उन्होंने कहा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जिस प्रकार विभिन्न कृषि उपज में देखने को मिल रहा है इसके चलते फसलों के चक्र में तब्दीली की आवश्यकता है।

वर्षा का समय आगे पीछे हो रहा है। अतिवृष्टि हो रही है ऐसे में लगता है कि आगे फसल चक्र को बदलना होगा। उन्होंने कहा कि ऋतु चक्र में बदलाव के कारण सेव जो मिडिल लेवल में होता था उसे अब और उच्च क्षेत्र की जलवायु की जरूरत है। जहां पहले सेब के बगीचे थे वहां पर आज कीबी फसल की पैदावार होने लगी है। आज के दौर में अच्छे प्रगतिशील किसानों की आवश्यकता है। परोदा ने खेती के लिए प्रयोगशालाओं में हो रहे शोधों को केवल कागजों तक सीमित रहने की अनुपयोगी बताते हुए कहा कि शोध का लाभ खेतों तक पहुंचे। अधिकारी भी खेतों तक पहुंच बनाएं। तभी उसका लाभ है आज के दौर में पहाड़ी इलाकों में ठंडे पानी में मछली पालन के क्षेत्र में बड़ी संभावनाएं प्रबल हो रही है। उन्होंने खेती के लिए युवाओं को प्रेरित करने पर जोर दिया।

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पद्मभूषण डॉ परोदा ने कहा कभी हरित, कभी श्वेत तो आज इंद्रधनुषी क्रांति की बात हो रही है। भारत एक कृषि प्रधान देश कहा जाता रहा है लेकिन अब कृषि नहीं कृषक को प्रधान बनाने की जरूरत है। वार्ता के दौरान वीपीके के निदेशक डॉक्टर लक्ष्मीकांत डॉक्टर, देवेंद्र शर्मा और मनोज कुमार शामिल थे।

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