उत्तराखण्ड
स्वतंत्रता आंदोलन में गोविंद बल्लभ पंत ने काशीपुर से भरी थी हुंकार
काशीपुर। स्वतंत्रता आंदोलन के नायक व भारत रत्न महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोविंद गोविंद बल्लभ पंत ने काशीपुर से स्वतंत्रता आंदोलन की हुंकार भरी थी। तराई का विकास एवं कृषि क्रांति की शुरुआत भी उन्होंने ने की थी।
इलाहाबाद से एलएलबी करने के बाद गोविंद बल्लभ पंत वर्ष 1913-14 मेें काशीपुर आए और राजकुमार चौबे के मकान में रहकर वकालत शुरू कर दी। उन्होंने पहला मुकदमा कुंजबिहारी लाल का लड़ा और जीत गए। उनके प्रयासों से बार एसोसिएशन काशीपुर का गठन हुआ था। इसके वह 1918 से 20 तक प्रथम अध्यक्ष रहे। पंत ने काशीपुर में वकालत शुरू की कुछ ही समय में उनकी गिनती बड़े वकीलों में होने लगी। पंत ने यहां से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। वह सभाएं करते लोगों को संगठित करते और लोगों में देशभक्ति, समाज सेवा की भावना जगाते। उनके नेतृत्व में काशीपुर स्वतंत्रता आंदोलनकारियों का गढ़ बन गया। इससे सरकार ने काशीपुर को ब्लैक लिस्ट कर दिया।
तब पंत ने सरकार की नजर से बचने के लिए 1914 में हिंदी प्रेम सभा की स्थापना की। इसकी बैठकों के नाम पर लोग स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीनि बनाते। अब उन्होंने समाज सुधार का दायरा काशीपुर से बढ़ाकर पूरा कुमाऊं कर दिया। तब कुमाऊं में बेगार कुली प्रथा प्रचलित थी। मजदूरों का शोषण हो रहा था। तब पंत ने कुली उतार और जंगलात आंदोलन के लिए कुमाऊं परिषद का गठन किया। 1920 में इसका वार्षिक अधिवेशन काशीपुर में किया। इसमें 150 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन में कुली बेगार (कुली उतार) के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया। कुमाऊं में पंत की बढ़ती लोकप्रियता पूरे देश में फैलने लगी। 1929 को महात्मा गांधी कुमाऊं दौरे पर आए तो उन्होंने पंत को बुला लिया। दोनों नेताओं ने कौसानी में स्वतंत्रता आंदोलन की सभा की उसके बाद दोनों नेता पैदल रामनगर होकर काशीपुर पहुंचे यहां छोटे नीम के पेड़ के नीचे सभा की। महात्मा गांधी लाला नानक चंद खत्री के आवास पर रहे। यही से पंत ने कुमाऊं परिषद का कांग्रेस में विलय किया।
संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री बनने पर पंत ने नजीबाबाद से लखीमपुर खीरी तक तराई को आबाद कर उसमें दूसरे विश्व युद्ध समाप्त होने से बेरोजगार हो चुके पूर्व सैनिकों की कालोनी बसाने की योजना बनाई। विदेशी कंपनियों ने घने जंगलों का काट कर जंगल को आबाद किया। उसमें पक्के मकान बनाए गए लेकिन देश की आजादी के बाद पंजाबी और बंगाली विस्थापितों को बसाने की समस्या उत्पन्न होने पर सरकार ने पूर्व सैनिकों को बसाने के लिए तैयार कॉलोनियों में पाकिस्तान, बंगाली विस्थापितों को बसाया गया। तराई के विकास के लिए पंत ने रुद्रपुर नगर बसाया। पंतनगर में 16 हजार एकड़ का कृषि फार्म की स्थापना की। कृषि क्रांति के लिए पंतनगर विश्वविद्यालय की स्थापना और हवाई अड्डा बनाया। उनके सपने ने तराई से देश भर में आधुनिक कृषि की शुरुआत की।