Connect with us
Breaking news at Parvat Prerna

Uncategorized

हल्द्वानी : बनभूलपुरा रेलवे अतिक्रमण मामले की सुनवाई नजदीक,प्रशासन चौकस…

देहरादून
दस दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में हल्द्वानी बनभूलपुरा रेलवे अतिक्रमण मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस की अदालत में होनी है। ऐसा बताया जा रहा है कि सीजेआई इस दिन इस मामले में अपना फैसला सुना सकते है। पिछली 2 दिसंबर की तारीख के दिन भर एसआईआर को लेकर सुनवाई लंबी खींच जाने की वजह से इस मामले की सुनवाई अगली दस दिसंबर तक टल गई थी।
दो दिसंबर की तरह दस दिसंबर को भी पुलिस प्रशासन ने बनभूलपुरा क्षेत्र में कड़ी सुरक्षा जारी रखने के लिए उच्च स्तरीय बैठक करके अपनी कार्य योजना बना ली है।

हल्द्वानी रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले का विस्तृत घटनाक्रम:

याचिका में दायर करने वालों (petitioners / residents) ने मुख्यत: निम्न दलीलें दी थीं:

कि यह लोग दशकों से (कुछ परिवारों ने तो आजादी से पहले ‎भी) उस जमीन पर रह रहे हैं और उनकी पहचान स्थानीय प्रशासन और रिकॉर्ड (house-tax register, municipal records) में दर्ज है, उन्होंने लंबे समय से टैक्स/भाड़ा आदि दिया है।

याचिका में यह दावा किया गया था कि खाली करने का आदेश (eviction order) अचानक और बिना उचित पुनर्वास योजना के नहीं होना चाहिए।

यह भी तर्क दिया गया था कि इलाके में कई मकान, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र आदि वर्षों से रह रहे थे — अर्थात सामाजिक बुनियादी सुविधाएँ भी थे।

इस प्रकार, याचिका का मूल आधार था — “लंबे समय से रहने वाले लोगों का अधिकार, सामाजिक-मानवीय आधार, और बिना पुनर्वास सुनिश्चित किए अतिक्रमण नहीं हटाया जाए ”।

जनवरी 2023 में, जब पहले उच्च न्यायालय नैनीताल ने अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था, तब बनभूलपुरा के स्थानीय लोग , सुप्रीम कोर्ट पहुँचे।
सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रशासन की ध्वस्तीकरण करवाई पर रोक लगाई — यानी “रातों-रात हजारों लोगों को बेघर नहीं किया जा सकता” कहकर स्टे दिया गया।

बाद में, 24 जुलाई 2024 को SC ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया: उसने कहा कि काबिज लोगों को हटाने की कारवाई से पहले पुनर्वास योजना” बनाई जाए — प्रभावित लोगों के पुनर्वास की रूपरेखा तय होनी चाहिए।

यह भी पढ़ें -  हल्द्वानी: उत्तर उजाला के पास प्राइवेट केमू बस पलटी, तीन लोग घायल

कोर्ट ने निर्देश दिया कि पहले यह निर्धारित किया जाए कि रेलवे को जमीन का वह हिस्सा कितनी चौड़ाई/लंबाई में चाहिए, कौन-कौन परिवार प्रभावित होंगे, और उन्हें कहाँ पुनर्वास (नया आवास / वैकल्पिक जमीन) दी जाएगी ?

इसके लिए उत्तराखंड सरकार, केंद्र, रेलवे और आवास मंत्रालय (या संबंधित विभाग) को एक बैठक बुलाने और चार सप्ताह के अंदर पुनर्वास योजना पेश करने को कहा गया था।

रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि “उनके पास ऐसी कोई नीति नहीं है” जिसके तहत अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास या मुआवजे की व्यवस्था हो।

रेलवे और राज्य की दलील है कि यह जमीन रेलवे की भूमि है — 1959 रेलवे भूमि योजना और 1972 में राज्य द्वारा भूमि की पुष्टि की गई और कब्जा अवैध है।

याचिकाकर्ताओं का तर्क कि उन्होंने दशकों से रहकर नगरपालिका टैक्स/हाउस टैक्स दिया है, रेलवे द्वारा गैस, पानी कनेक्शन दिए गए थे, उन्हें आधार कार्ड समेत पते से स्वीकार किया गया — इस दावे को रेलवे ने वैधानिक कब्जा नहीं माना।

अब तक की प्रगति / वर्तमान स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने पहले ध्वस्तीकरण पर रोक लगाई, फिर 2024 में पुनर्वास योजना का आदेश दिया।

पुनर्वास योजना बनाना राज्य व केंद्र की जिम्मेदारी माना गया; मगर रेलवे ने साफ कहा कि उनकी कोई नीति नहीं है — यानी पुनर्वास या मुआवजा देने की कोई व्यवस्था नहीं।

मामले में सुनवाई अब भी जारी है — मीडिया रिपोर्ट 2025 में संकेत देती हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है।

यानी, अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं आया है कि कारवाई होगा या नहीं — लेकिन कारवाई से पहले पुनर्वास व संभावित सुविधा देने पर जोर है।

किसकी थीं हाई कोर्ट में याचिका
रेलवे और सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने से नए रेल प्रोजेक्ट नहीं आ रहे और अन्य विषयों पर हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले
याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी बताते हैं कि बनभूलपुरा और गफूरबस्ती क्षेत्र में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर वर्ष 2007 में भी हाईकोर्ट ने आदेश पारित किए थे। तब प्रशासन ने 2400 वर्गमीटर भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया था। 2013 में उन्होंने गौला नदी में हो रहे अवैध खनन और गौला पुल के क्षतिग्रस्त होने के मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान रेलवे भूमि के अतिक्रमण का मामला फिर से सामने आ गया। 9 नवंबर 2016 को कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए रेलवे को दस सप्ताह के भीतर समस्त अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए। इसके बाद अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र देकर उक्त जमीन को प्रदेश सरकार की नजूल भूमि बताया लेकिन 10 जनवरी 2017 को कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया,
श्री जोशी बताते हैं कि इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में कई विशेष याचिकाएं दाखिल हुई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार को निर्देश दिए कि वह अपने व्यक्तिगत प्रार्थना पत्र 13 फरवरी 2017 तक हाईकोर्ट में दाखिल करें और इनका परीक्षण हाईकोर्ट करेगा। इसके लिए तीन माह का समय दिया गया। छह मार्च 2017 को कोर्ट ने रेलवे को अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर याचिकाकर्ता जोशी ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। रेलवे और जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा लेकिन कब्जा तब भी नहीं हटा।
श्री जोशी ने बताया कि 21 मार्च 2022 को हाईकोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर कर कर कहा कि रेलवे अपनी भूमि से अतिक्रमण हटाने में नाकाम साबित हुआ है। 18 मई 2022 को कोर्ट ने सभी प्रभावित व्यक्तियों को अपने तथ्य न्यायालय में रखने के निर्देश दिए लेकिन अतिक्रमणकारी उक्त भूमि पर अपना अधिकार साबित करने में विफल रहे। 20 दिसंबर 2022 को कोर्ट ने फिर से रेलवे को अतिक्रमणकारियों को हफ्ते भर का नोटिस जारी करते हुए अतिक्रमण हटाने संबंधी निर्देश दिए। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया जहां अब आगामी दस दिसंबर इस पर सुनवाई होनी है

More in Uncategorized

Trending News