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कुमाऊँ

होली गायन कर मंदिरों में की जाती है सुख समृद्धि की कामना

(सिद्धि को दाता विघ्न विनाशन,होरी खेलें गिरिजापति नन्दन)

भुवन बिष्ट ,रानीखेत
रानीखेत( अल्मोड़ा)। इस समय चारों ओर सभी पर चढ़ा है होली का रंग। आपसी प्रेम भाव, सौहार्द, मानवता एकता के भावों को समेटे हुए रंगोत्सव की धूम चारों ओर खूब मची हुई है। हर कोई होली के रंग में सरोबार है। चाहे गांव हो या शहर सभी स्थानों में होल्यार अपनी अपनी विधियों अनुसार होली मना रहे हैं और आपसी प्रेमभाव का संदेश देते हुए सभी के खुशहाली समृद्धि की कामना भी कर रहे हैं।

देवभूमि उत्तराखंड अपनी परंपराओं संस्कृति सभ्यता के लिए सदैव ही विश्वविख्यात रही है। यहाँ मनाये जाने वाले हर त्यौहार परंपराऐं हर किसी को अपनी मातृभूमि से सदैव जोड़ने में भी सहायक रहती हैं। आजकल रंगों का त्यौहार होली की चारों ओर धूम मची हुई है प्रेम सौहार्द आपसी भाईचारे का प्रतिक होली की गाँव से लेकर शहरों तक खूब बहार चली है। देवभूमि उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में सदैव ही होली धूमधाम व विधि विधान से मनाने का प्रचलन रहा है। देवभूमि के गांवों में होली की टोली के साथ पारंपरिक लोकवाद्य यंत्रों व निशाणों का भी प्रचलन रहा है। होली गाने वालों के साथ निशाणें भी ले जाये जाते हैं।

रणसिंह की ध्वनि से होल्यारों को होली गायन में उत्साह प्रदान किया जाता है। देवभूमि उत्तराखंड के कुमांऊ में निशाणे प्राचीन काल से ही विजय पताका विजय ध्वज के रूप में जाने जाते हैं। इन्हें पूजा अर्चना करके होली के लिए तैयार किया जाता है। निशाणे लाल और सफेद रंग की विजय पताकाऐं विजय ध्वज होते हैं। देवभूमि के गांवों में खड़ी होली का गायन सर्वप्रथम गाँव के मंदिरों में होली गायन करके सभी के खुशहाली सुख समृद्धि की कामना भी की जाती है। गाँव के सभी मंदिरों गोलू देवता, देवी मंदिर, शिवालय आदि मंदिरों में भी होली गायन करके गाँव समाज व देश की खुशहाली समृद्धि की कामना की जाती है। होली गायन गाँव के मुखिया पधान के घर आँगन में भी सबसे पहले गायी जाती है। होली गायन जिसकी लय अलग-अलग क्षेत्रों अलग अलग होती है तथा अपनी अलग विशेषता और विभिन्नता लिए है।

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खड़ी होली वास्तव में गांव की संस्कृति की प्रतीक है। देवभूमि उत्तराखंड के कुमांऊ में होली अपने अपने गांव के निशाण अर्थात विजय ध्वज व लोकवाद्य यंत्रों ढोल नगाड़े रणसिंह जैसे वाद्य यंत्रों के साथ गांव के हर घर हर आंगन में होली गाने पहुंचते हैं और शुभ आशीष व समृद्धि की कामना करते हैं तथा एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं भी प्रदान करते हैं। जिस घर आँगन में होली पहुंचती है उस घर का स्वामी अथवा उस घर के सदस्य सर्वप्रथम निशाणों की पूजा अर्चना भी करते हैं तथा अपनी श्रद्धा के अनुसार होली गाने वाले होल्यारों को गुड़ भेंट करते हैं गुड़ मिठास का प्रतिक है जो आपसी प्रेमभाव को बढ़ाने में सशक्त रहा है कुछ लोगों द्वारा आलू के गुटके चाय तथा मिष्ठान के साथ भी होली गाने वाली टीम होल्यारों का स्वागत किया जाता है।

देवभूमि उत्तराखंड के कुमांऊ में खड़ी होली का गायन मुख्य रूप से गांव के मंदिरों सहित हर घर के आंगन में होता है। यह होली मुख्यतः अर्ध-शास्त्रीय परंपरा में गाई जाती है। इसमें मुख्य होल्यारों की टीम होली के मुखड़े को गाते हैं,बाकी होल्यार उसके चारों ओर एक बड़े घेरे में उस मुखड़े को दोहराते हैं।

पारंपरिक होली के परिधानों होली के रंग से सरोबार व देवभूमि के पारंपरिक लोकवाद्य यंत्रों ढोल नगाड़े रणसिंह भी उसमें मनमोहक लय संगीत का रस भर देते हैं। गोल घेरे में कदमों को मिलाकर होल्यार होली गायन करते हैं। कुमाऊं में होली की भी अलग अलग परंपराऐं प्रचलित हैं देवभूमि के कुमांऊ में कहीं कहीं चीर व निशान बंधन की भी अलग अलग विशिष्ट परंपरायें प्रचलित हैं।इन परंपराओं का कुमाउनीं होली में विशेष महत्व माना जाता है। कुमाऊं में अलग अलग स्थानों पर कहीं कहीं मन्दिरों में चीर बंधन का प्रचलन भी है। गांवों, शहरों में सार्वजनिक स्थानों में मुहूर्त देखकर चीर बंधन किया जाता है। देवभूमि में खड़ी होली गीत जैसे शिव के मन मांहि बसे काशी, जल कैसे भरूं जमुना गहरी, मेरे सजन के तीन महल हैं,व सिद्धि को दाता विघ्न विनाशन,होरी खेलें गिरिजापति नन्दन, जल कैसे भरूँ जमुना गहरी आदि होली गीत पारंपरिक लोकवाद्य यंत्रों की धुन के साथ कदम मिलाकर गाये जाते हैं।

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होली के अंतिम दिन छलड़ी यानी गिले रंगो व पानी की होली के साथ ही होली संपन्न होती है। संस्कृति परंपराऐं सदैव ही समाज को समृद्ध बनाते हैं,आधुनिकता की विकृतियों आधुनिक चकाचौंध में इन्हें संजोने संरक्षित किये जाने की आवश्यकता है।

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