Connect with us

उत्तराखण्ड

हाईकोर्ट के आदेशों का पालन हुआ तो पूरा रिसोर्ट होगा ध्वस्त

रामनगर। आपदा से जूझते उत्तराखंड में शासन और प्रशासनिक अधिकारियों का इतिहास खलनायकों सा नजर आता है । जहां वो अपने अधिकार और ताकतें कुछ पूंजीपतियों को निजी स्वार्थ के लिए बेच देते हैं । वहीं इसका खामियाजा निर्दोष जनता को भुगतना पड़ता है।
प्रदेश के केदारनाथ में आयी आपदा तथा उससे पहले और भी कई आपदाओं और कुछ जनहित याचिकाओं के बाद उच्च न्यायालय ने आदेश पारित किया कि गंगा और उसकी सहायक नदियों से 200 मीटर की दूरी पर कोई निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए, हालांकि इससे पहले 100 मीटर पर ये आदेश अस्तित्व में था । कई निर्माण इस आदेश के तहत ढाहाए भी गए और नवनिर्माण पर रोक लगा दी गई। इसके बावजूद पूंजीपतियों को उत्तराखंड की अन्य नदियों पर पक्के और भव्य निर्माण का रास्ता आसान नजर आया । आनन-फानन में उन्होंने नवनिर्माण शुरू कर दिया। जिनमें सबसे ज्यादा चर्चा है, जनपद नैनीताल के रामनगर के क्यारी गांव के रिजॉर्ट का । जिसके निर्माता हल्द्वानी के नवधनाड्य नहीं बल्कि पुराने पूंजीपति हैं ।

हालांकि कुछ खबरों का संज्ञान लेते हुए जिलाधिकारी नैनीताल ने उपजिलाधिकारी रामनगर को आदेशित कर,सरकारी भूमि का कुछ हिस्सा कब्जे में लेकर चौहद्दी का कुछ हिस्सा गिरा भी दिया है । लेकिन वहां के गांव वासीसियों का कहना था कि प्रशासन ने महज खानापूर्ति की है । जबकि उन्हें हाइकोर्ट के निर्देशों का पालन कर पूरे अवैध निर्माण को ध्वस्त करना चाहिए था, तांकी आगे से कोई भी पूंजीपति हाईकोर्ट के आदेश, निर्देश की अवमानना न कर सके ।अब जानते हैं कि क्या है वह आदेश, जिसकी अवहेलना सिर्फ पूंजीपति ही नहीं वरन प्रशासनिक अमला भी कर रहा है। 26 अगस्त वर्ष 2003 को हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि – ‘ उत्तराखंड राज्य को अपने मुख्य सचिव के माध्यम से यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि अब से राज्य की किसी भी बहती नदी के तट से 200 मीटर के भीतर स्थायी प्रकृति के किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं है’ यह एक विचारणीय प्रश्न है कि राज्य का प्रशासनिक अमला इस तरह के अवैध निर्माणों से अनजान कैसे रह सकता है । जबकि संबंधित गाइडलाइंस, समय समय पर निरीक्षण, समीक्षा तथा नियमानुसार दंड उन्ही के इख्तियार में हैं ।

यह भी पढ़ें -  पांच युवाओं ने मद्महेश्वर घाटी में खोजा 78 किमी लंबा ट्रैकिंग रूट, डिजिटल मैप किया तैयार, तस्वीरें

जांच रिपोर्ट देने से बच रहे अधिकारीगण

जिलाधिकारी वंदना सिंह के संज्ञान में मामला आने के बाद उन्होंने उपजिलाधिकारी राहुल साह को निर्देशित कर उक्त रिजॉर्ट की जांच के लिए एक संयुक्त जांच कमेटी गठित की, जिसमें तहसीलदार कुलदीप पांडे ने नायब तहसीलदार दयाल मिश्रा सहित राजस्व विभाग, वन विभाग तथा सिंचाई विभाग के अधिकारी/कर्मचारियों को शामिल कर जांच कराई गई है । जांच रिपोर्ट पूरी होने का दावा तो सभी प्रशासनिक अधिकारी कर रहे हैं पर उसे सार्वजनिक करने से बचते नजर आते हैं । इस लेट लतीफी को लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं । दूसरी तरफ रिसोर्ट मालिकान रिपोर्ट जाने बिना न्यायालय जाने की बात कर रहे हैं ।

बहरहाल इस संयुक्त रिपोर्ट में क्या है और आगे क्या निर्णय लेंगी जिलाधिकारी, कहा नहीं जा सकता । पर यदि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश का ईमानदारी से पालन हुआ तो पूरा रिजॉर्ट ध्वस्त हो जाएगा ।
(साभार-समानानतर)

More in उत्तराखण्ड

Trending News