उत्तराखण्ड
अफगानिस्तान में तालिबानियों के खौफ के बारे में बताया पूर्व फौजियों ने
देहरादून। अफगानिस्तान में तालिबानियों के कब्जा करने के बाद से वहां के लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं । कई भारतीय लोग वहां फंसे हुए हैं जो नौकरी करने काबुल गए थे, इनमे से कई उत्तराखंडी भी हैं, जो की काबुल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे थे। यहां के अधिकतर लोग पूर्व सैनिक हैं, जिन्होंने सीमा पर आतंकियों को धूल चटाई, लेकिन तालिबानियों के खौफ से वो आज भी सहमे हुए हैं।
बीते दिनों कई उत्तराखंड के लोग वापस लौटे, जिनमें से सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे पूर्व फौजी ने वहां के खौफनाक मंजर के बारे में बताते हुए उसकी आंखों में आंसू छलक उठे। साल 2012 से अफगानिस्तान के हैरात में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाले गढ़ी कैंट डाकरा निवासी वीरेंद्र गुरुंग 13 अगस्त को घर लौटे, वह अफगानिस्तान में बिताए उन खौफ भरे दिनों को अभी भी भूल नहीं पा रहे हैं। वीरेंद्र ने बताया कि उन्हें भी टेलीविजन और इंटरनेट से पता चला कि जहां वह रह रहे हैं, उससे सटे क्षेत्र तालिबानियों ने कब्जा कर लिए हैं।
नेपाल और भारत के 30 से अधिक साथी कंपनी के ही किसी कमरे में थे और जब भी गोलियों की आवाज सुनाई देती, सभी जान बचाने की दुआ करते। फिर हम सभी ने कंपनी पर घर वापसी का दवाब बनाया, जिसके बाद कंपनी ने 10 अगस्त से कर्मचारियों को थोड़ी-थोड़ी संख्या में एयरपोर्ट पहुंचाना शुरू किया। काबुल एयरपोर्ट पर फ्लाइट के इंतजार में 4 दिन तक एक होटल में रुके रहे। इसके बाद जब काबुल से फ्लाइट मिली तो उसमें बैठे नागरिकों ने राहत की सांस ली। बताया कि अब घर में पत्नी और बच्चों के साथ खुश हूं।
चंद्रबनी के गौतम कुंड कालोनी निवासी विनेश मल्ला गोरखा रेजीमेंट से 2008 में रिटायर हुए। फिर दो साल बाद काबुल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली, तब से वहीं थे। वह 16 जुलाई को घर लौटे। विनेश ने आपबीती सुनाते हुए बताया कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ ही तालिबानियों के हौसले बुलंद होने लगे। जुलाई की शुरुआत से ही स्थिति और खराब होने लगी।
बताया कि कंपनी के कमांडर ने बाहर जाने से मना कर दिया था। ऐसे में एक कमरे में 9 लोग 2 दिनों तक रहे। होटल पास था तो खाने पीने की कमी नहीं थी। कंपनी के कमांडर के सख्त निर्देश थे कि बाहर जाओगे तो किडनैप हो जाओगे। इसलिए सब सतर्क हो गए और स्वदेश लौटने का इंतजार करने लगे थे। 14 जुलाई को काबुल एयरपोर्ट जाते समय भय बना हुआ था।
















