उत्तराखण्ड
राज्य के इस क्षेत्र में खिल रहे दुर्गम नील कमल फूल
इन दिनों प्रदेश के केदारनाथ क्षेत्र में कई सालों के बाद दुर्लभ नीलकमल के फूल खिले हैं। प्रकृति के इस खूबसूरत चमत्कार को देख वनस्पति विज्ञानी खुश भी हैं और हैरान भी। नीलकमल के फूल अति दुर्लभ हैं। यह सालों में एक बार ही खिलता है, यही वजह है कि लोग इस फूल के खिलने को चमत्कार से जोड़कर देख रहे हैं।
हिमालय में इस दुर्लभ फूल के खिलने के पीछे लॉकडाउन को भी वजह माना जा रहा है। लॉकडाउन में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी प्रदूषण का स्तर कम हुआ, जिसका सुखद परिणाम यहां खिले दुर्लभ नीलकमल के रूप में देखा जा रहा है। उच्च हिमालय क्षेत्र में चार प्रकार के कमल के फूल मिलते हैं। जिनमें नीलकमल, ब्रह्मकमल, फेन कमल और कस्तूरा कमल शामिल हैं। हिंदू पुराणों के अनुसार नीलकमल को भगवान विष्णु का प्रिय पुष्प माना जाता हैइस फूल का वनस्पतिक नाम नेयम्फयस नॉचलि या जेनशियाना फाइटोकेलिक्स है। नीलकमल एशिया के दक्षिणी और पूर्वी भाग का देशज पादप है। ये बांग्लादेश और श्रीलंका का राष्ट्रीय पुष्प है।
हिमालयी क्षेत्र में फेन कमल, कस्तूरा कमल और ब्रह्मकमल तो आसानी से दिख जाते हैं, लेकिन नीलकमल काफी दुर्लभ है। जिस तरह नीलकमल को भगवान विष्णु का प्रिय पुष्प माना जात है, उसी तरह भगवान शिव के प्रिय पुष्प के तौर पर ब्रह्मकमल को मान्यता मिली हुई है। ये भी बेहद दुर्लभ हैं। ब्रह्मकमल का फूल वर्ष में एक बार ही अगस्त और सितंबर के बीच ही खिलता है। यह उत्तराखंड का राज्य पुष्प है। भगवान बदरीनाथ और केदारनाथ की पूजा में कमल के फूल ही अर्पित किए जाते हैं। वैसे तो सभी कमल पानी में खिलते हैं, लेकिन ब्रह्मकमल को गमले में भी उगा सकते हैं। नीलकमल और ब्रह्मकमल की तरह फेनकमल और कस्तूरा कमल भी अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं। ये हिमालयी क्षेत्र में लगभग 5600 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाते हैं।