उत्तराखण्ड
कविता-उम्मीद
उम्मीद
जब टूटती है आशा
चारो ओर लगती
है फिर निराशा
आशा ही नही टूटती
इंसान बी टूट
जाता है
अपनो से मिली निराशा
का दर्द वह किसी
से वी बोल नही पता है
जब उम्मीद का
जन्म होता है
तब भावना जन्म लेती है
टूटती है जब उम्मीद
तब दुनिया बेरंग दिखती है
बहुत कुछ जुड़ा होता है
उम्मीदों से
जिनका रिश्ता बन
जाता है सांसो से
पल भर मैं जब ख्वाब मरते है
जीना तो पड़ता है मगर
हर पल हर दिन भोज लगते है
उम्मीद जीने की वजह है
मानती हूं मैं
लेकिन इस उम्मीद के कारण क्या तकलीफ होती है
इसे भी जानती हूं मैं
ज्योति कंसवाल
अध्यापिका,देहरादून