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कुमाऊँ

जनार्दन की तरह एक सूत्र में बांधती हैं.. जन्यो पून्यूं

सावन की पूर्णिमा के दिन पहाड़ में मनाई जाती है जन्यो पून्यूं।
हमारे सारे राष्ट्रीय पर्व, उत्सव,मेला कही ना कही हमें जोड़ते हैं। आज की इस भागमभाग ज़िंदगी में लोगों के पास तकरीब सब कुछ है अगर कोई चीज़ नही है तो वह है समय। और किसी से मिलने जुलने का फुरसत तो कतई नही है। धीरे से ही सही सहभागिता, सहकारिता, सामाजिकता कम होते जा रही हैं। इसे किसी भी रूप में अच्छा नही कहा जा सकता हैं। लेकिन आदि काल से ही हमारे ऋषि, मुनियों, ज्ञानी,तपस्वियों ने मानव जीवन की विविधता को बनाये रखने की तमाम इंतज़ामात किये हुए हैं।
रक्षा- बंधन भी उन्ही त्वयहारो में एक हैं।

सावन शिव जी प्यारा महीना हैं।और इसी सावन की पून्यूं यानि पूर्णिमा के दिन पहाड़ में मनाई जाती है, ” जन्यो पून्यूं”. इस दिन नई जनेऊ धारण की जाती है. जनेऊ बनाने और पहिनने के पूरे नियम हैं, विधान हैं.
अब मान्यता हुई कि रक्षासूत्र के बाँधने से तीनों देव अर्थात त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ तीनों देवियां सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती प्रसन्न होती हैं. सुपात्र पर कृपा बरसातीं हैं. कहा गया कि ब्रह्मा जी के वरद हस्त से मिलती है कीर्ति तो विष्णु भगवान हर संकट से बचाते हैं, रक्षा करते हैं.शिव जी तो हुए भोले भंडारी जो संसार के तमाम दुर्गुणों से बचाने में सक्षम हैं. त्रिदेवियों में सरस्वती माता प्रदान करतीं हैं बुद्धि तो लक्ष्मी मां संपत्ति व धन तथा दुर्गा माता देतीं हैं शक्ति, साहस और बल.
रक्षा सूत्र बंधन के इसी मुहूर्त में ऋषि तर्पण भी किया जाता हैं।
कहा जाता है कि देव और दानवों के मध्य हुए भीषण युद्ध में जब देवताओं का मनोबल गिरने लगा तब मार्गदर्शन के लिए वह इन्द्र देव के पास पहुंचे. उनकी भयभीत दशा देख कर देवराज की पत्नी इन्द्राणी ने उन्हें ऊर्जामय बनाने व बल का संचार करने के लिए सबको रक्षा सूत्र बांध दिया.
कथा है कि राजा बलि के अति आत्म विश्वास व अभिमान की परीक्षा श्रावण पूर्णिमा के ही दिन विष्णु भगवान ने वामन अवतार ले कर की. तभी ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा सूत्र पहनाते इस मंत्र को पढ़ते हैं:

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‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महा बलः
तेन त्वामनु बन्धामि मा चल मा चल.’

बच्चों के हाथ में रक्षा सूत्र बांधते निम्न मंत्र पढ़ा जाता है :

‘यावत गंगा कुरुक्षेत्रे यावततिष्ठति मेदिनी,
यावत राम कथा लोके,
तावत जीवेद बालकः / बालिका।
और स्थानीय जल स्त्रोत, नौले, नदियों , उपनदियों के संगम में वेद मन्त्रों के उच्चारण के साथ स्नान करते हैं. पितृ तर्पण व अन्य अनुष्ठान भी किए जाते हैं. वेद मन्त्रों का सस्वर पाठ होता है. सभी जगह से आई जनेऊ व रक्षा धागों की कलश में प्रतिष्ठा की जाती है. स्नान ध्यान व प्रतिष्ठा के उपरांत उचित मुहूर्त में जनेऊ बदली जाती है. साल भर के उपयोग के लिए यज्ञोपवीतों को मंत्र प्रतिष्ठित कर संभाल दिया जाता है. इस श्लोक का उच्चारण किया जाता हैं।

“एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वम् धारितं मया
जीर्ण त्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुख”.

जनेऊ तीन सूत्रों में जो बंटा होता उसे जमीन में बैठ कर अपने पैरों के आसन फैला दोनों मुड़े हुए घुटनों में लपेट कर तीन सामान हिस्सों में बांटा जाता है. अब सूत्र के दोनों सिरों में पांच ग्रंथियां दी जाती हैं जिसमें पहली ग्रंथि ब्रह्मा जी की प्रतीक तो शेष चार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का बोध करातीं हैं. समग्रता में इन्हें पञ्च कर्मों, पञ्च महाभूतों, पञ्च यज्ञों एवं पञ्च ज्ञानेन्द्रियों का भी सूचक माना जाता है.
इस प्रकार पहले तीन सूत्रों का जनेऊ तैयार होता है. इसे व्यापक प्रतीकों का आधार दिया गया है. सर्वप्रथम ब्रह्मा, विष्णु व महेश, दूसरा तीन प्रकार के ऋण अर्थात देवऋण, ऋषि ऋण व पितृ ऋण, तीसरा शक्तियां यथा आदि दैविक, आदि भौतिक एवं आध्यात्मिक, चौथा तीन गुण, सतोगुण, रजोगुण एवम तमोगुण, पांचवां गायत्री के तीन चरणों व जीवन की तीन अवस्थाओं यानि ब्रम्हचर्य, गृहस्थ व वानप्रस्थ का प्रतीक माना जाता है.
इस त्योंवहार का वैज्ञानिक महत्ता भी है। हम श्रावणी उपक्रम कर जग विभिन्न एरोमेटिक और अकार्बनिक पदार्थो को जलाकर इस मौसम में उत्पन्न हानिकारक कीटों, पतंगो, कीड़ो को मार भागते हैं वही अतत्यधिक हरियाली से हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को कम करते है। निश्चित रूप से भौतिक जगत के साथ- साथ आध्यात्मिक जगत में भी कर्णप्रिय आवाजों से व समांगी आवृत्ति से ऊर्जा ग्रहण कर प्रफुल्लित होते है।

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उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के जनपद पिथौरागड़ के तहसील बेरीनाग के गाँव खेती के श्रावणी उपाकर्म में उच्च कुलीन ब्राह्मणों ने यज्ञ तप कर इस सनातनी संस्कृति को बचाये रखा हैं। इससे जहा हमारी जड़ें को गहरी मिट्टी मिलती है वही भावी पीढ़ी के लिए एक संदेश भी है। धारी आदि गांवो से भी इस तर्पण में लोग शामिल होते हैं। गाँवो में हमारे ये पर्व आधुनिकता की अंधी आधी से बचे है, जिसे देखकर अच्छा लगता हैं।

रक्षा-बंधन,खुशियों का गठबंधन।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ उत्तराखंड

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