कुमाऊँ
मनु महारानी में वर्षों से काम कर रहे , दर्जनों लोग निकाले,उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी का समर्थन
नैनीताल। वक्त ने सब कुछ बदल दिया, जिन लोगों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वह एक दिन बेरोजगार होकर सड़क में आ जाएंगे। ऐसा ही कुछ हुआ नैनीताल के जाने माने होटल मनु महारानी के कर्मचारियों के साथ। पिछले कई वर्षों से होटल में काम करते आ रहे कर्मचारियों ने बताया कि प्रबंधन ने कोरोना काल का लाभ उठा कर 5 सितंबर 2020 को उत्तराखंड मूल के लगभग 30 से अधिक कर्मचारियों की छटनी कर दी। तब इस होटल के प्रबंधकों ने आश्वस्त किया था कि होटल खुलने के बाद 15 से 30 साल पहले से काम कर रहे कर्मचारियों को प्राथमिकता के आधार पर वापस ले लिया जाएगा।
बेरोजगार हुए कर्मचारियों ने बताया कि कोरोना काल के बाद 5 सितंबर 2020 को यह होटल खुल गया था। इसके बाद उसके प्रबंधकों ने सोची समझी योजना के तहत् स्थानीय कर्मचारियों के स्थान पर 30-35 बाहरी श्रमिकों को काम पर रख लिया। पहाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के सामने अब भुखमरी व जीवन मरण का प्रश्न खड़ा कर दिया है।
होटल प्रबंधन की इस गैरकानूनी व अमानवीय हरकत के ख़िलाफ़ छटनी हुए कर्मचारियों ने 1 मार्च से मल्लीताल नैनीताल में धरना व भूख हड़ताल शुरू कर दी। निकाले गए युवाओं के समर्थन में नैनीताल पहुंचे उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पी सी तिवारी ने कहा कि नैनीताल को नैनीताल बनाने वाले तथा उसकी प्राकृतिक सुंदरता, हवा, पानी को बचाए रखने वाले भी हमारे पूर्वज ही थे, नैनीताल के तमाम होटलों में अमानवीय परिस्थितियों में बंधुवा श्रमिकों की तरह कार्य करने वाले हज़ारों लोग नौकरशाहों, सरकारों व राजनीति की मिली भगत के कारण अमानवीय जीवन जीने को मज़बूर हैं। इस पर उन्हें अकारण बेरोज़गार कर देना उत्तराखंडी अस्मिता को चुनौती देने जैसा है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा इन परिस्थितियों में यह केवल दो तीन दर्जन कर्मचारियों को हटाने का मामला न होकर उत्तराखंडी अस्मिता का उपहास करने व उसे कुचलने का मुद्दा भी है। हम सरकार से मांग करते हैं कि तत्काल इस समस्या का समाधान कर उत्तराखंड के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा कर उत्तराखंड को बदहाल, मज़बूर बनाने वाली प्रवृत्ति से अब निर्णायक संघर्ष शुरू करना ज़रूरी महसूस होने लगा है। कोरोना काल को अवसर मानते हुए उत्तराखंड की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक अस्मिता से खिलवाड़ करने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना शायद समय की मांग है।
हम सब जानते हैं कि उत्तराखंड में आई सरकारों ने बेरोज़गारी के दबाव के बावजूद उद्योगों में 70% स्थानीय लोगों को स्थाई रोज़गार देने का वायदा भी पूरा नहीं किया। ऐसे में समय की मांग है कि उत्तराखंड जैसे सामरिक महत्व के क्षेत्र में किसी भी व्यावसायिक गतिविधि व प्रतिष्ठान के लिए उसमें स्थानीय व मूल निवासियों की न्यूनतम 51% हिस्सेदारी भी सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष शुरू किया जाए और आपके आसपास हो रहे ऐसे उदाहरणों को सामने लाया जाए।