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ज्ञान प्रकाश संस्कृत पुस्तकालय में मासिक काव्यगोष्ठी एवं “अपने जीवन के प्रेरणादायक अनुभव” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया

ज्ञान प्रकाश संस्कृत पुस्तकालय में मासिक काव्यगोष्ठी एवं “अपने जीवन के प्रेरणादायक अनुभव” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता डाॅ० प्रमोद कुमार श्रोत्रिय ने की। मंच संचालन युवा कवि नीरज चंद्र जोशी ने किया। नेपाल में भारत के साहित्यकारों का प्रतिनिधित्व करने, वहां के पूर्व पीएम लोकेंद्र बहादुर चंद द्वारा उनकी पुस्तक “महिलाएं भ्रांतियां एवं समाधान” का विमोचन करने एवं वहां की निर्धन छात्राओं को “हरूली आमा छात्रवृत्ति” का वितरण करने के नेक कार्य के लिए कवयित्री लक्ष्मी आर्या के

सौजन्य से सोर के साहित्यकारों व कवियों ने डाॅ० पीतांबर अवस्थी को स्मृति चिह्न देकर एवं शाॅल ओढ़ाकर सम्मानित किया। इस अवसर पर कवयित्रि आशा सौन ने अपनी कविता “नहीं बसंत को मालूम कि कब खिली थी प्योली, कब आया बुरांश अपने शबाब पर?” का वाचन कर काव्यगोष्ठी की शुरुआत की। अनु जोशी ने अपनी कविता “चेली छू मैं, बाज्यू को मान छू। अम्मा बुबु क लाड छू” का पाठ किया। अनीता जोशी ने अपनी हास्य व्यंग्य कविता “हो गया इंटरनेट पर प्यार, लव का भला करे करतार।” का वाचन कर खूब तालियां बटोरी। डाॅ० प्रमोद श्रोत्रिय ने “पुरवाई का मन आज फिर चंचल हुआ, रात परियों ने प्रफुल्लित पुष्प बांटे।” गाई। डाॅ० आनंदी जोशी ने “अचानक अंधकार का दामन थामे, सर्द हवा का एक झौंका आया”। का वाचन किया। लक्ष्मी आर्या ने कविता “ऐ खुदा होश में रखना मुझे इस दुनिया के मयखाने में।” का पाठ किया। डाॅ० पीतांबर अवस्थी” ने “नेता दलदल में फंसे अंट शंट बक गाएं। बने प्रवक्ता ढाल तब शकुनि चरित दिखलाएं।” से समकालीन राजनीति पर तंज कसा। अंत में युवा कवि नीरज चंद्र जोशी ने अपनी पंक्तियों “भीड़ के पीछे चलना मुझे कभी भाया नहीं, चकाचौंध में दौलत की मैं कभी आया नहीं।” से काव्य गोष्ठी का समापन किया। इस अवसर पर जया लोहनी, हेमा आदि श्रोता उपस्थित थे।

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