उत्तराखण्ड
प्रदेश के डीएलएड प्रशिक्षितों में नाराजगी
बार बार नियमों को बदलने से उत्तराखंड डीएलएड प्रशिक्षितों में भारी नाराजगी देखने को मिल रही है। डीएलएड प्रशिक्षित संगठन के अध्यक्ष नन्दन बोहरा ने कहा की शिक्षा का अधिकार अधिनियम नियम (आर॰टी॰ई॰) 2009 के तहत भारत सरकार ने सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त एवं निजी स्कूलों में पढ़ा रहे पहली से आठवी तक के सभी अप्रशिक्षित शिक्षकों को संसद के दोनों सदनों में बिल पास कर डीएलएड प्रशिक्षण कराने का पाठयक्रम मार्च 2019 तक पूरा करने का पहला व अंतिम मौका दिया था। अर्थात चेतावनी देते हुए यह भी आदेश जारी किया कि यदि किसी अप्रशिक्षित शिक्षक जो केवल स्नातक या इंटरमिडिएट के बेस पर स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, को प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया तो इनकी सेवाएँ समाप्त कर दी जाएंगी l इस संदर्भ में समय- समय पर केन्द्र व सभी राज्य सरकारों ने संयुक्त रूप से निर्देश जारी किए तथा उनका पालन करवाया गया l सम्पूर्ण देश में सरकारी व गैर सरकारी अप्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या 14 लाख थी, जिसमें उत्तराखण्ड में प्रशिक्षण (डीएलएड) प्राप्त करने वालों की संख्या 37 हजार थी।
श्री बोहरा ने बताया भारत सरकार मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने इस प्रशिक्षण को करवाने की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एन॰आई॰ओ॰एस॰) को दी, जो कि भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है अर्थात यह कोर्स सरकार के दिशा निर्देशन के साथ- साथ पूर्णरूपेण कानूनी मान्यता प्राप्त है।
सरकारों द्वारा विज्ञापनों विभिन्न समाचार पत्रों व अन्य माध्यमों से प्रसारितकर यह कहा गया कि इस प्रशिक्षण को प्राप्त करने के बाद आप देश में कहीं भी नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं l
लेकिन दुर्भाग्य की बात है हमारे राज्य में नवम्बर व दिसम्बर 2020 में राजकीय प्राथमिक विद्यालयों का विज्ञापन जारी होता है जिसमें कि हम लोगों ने भी आवेदन किया। भारत सरकार व राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के दिशा निर्देशन में हमें भी भर्ती मे सम्मिलित करने का आदेश जारी किया जाता है। जिसे बाद में 10 फरवरी 2021 को पुनः अनैतिक दबाव में विद्यालयी शिक्षा सचिव लिखते हैं कि मुझे यह कहने का आदेश हुआ है कि उक्त पत्र को निरस्त किया जाता है।
अध्यक्ष श्री बोहरा ने कहा हम प्रशिक्षितों का इस प्रकार से उत्पीड़न व भविष्य अंधकारमय होते देख मजबूरन हमें भी न्यायालय की शरण लेनी पड़ी। सभी पक्षों के तथ्यों को सुनने के बाद एकल पीठ ने 03 मार्च 2021 को हम एनआईओएस डीएलएड उपाधि धारकों को भी गतिमान शिक्षक भर्ती में सम्मिलित करने का आदेश दिया l जिसे बाद में संयुक्त पीठ द्वारा भी सुना गया l लम्बे समय तक सरकार द्वारा हमारा माननीय न्यायालय मे विरोध किया गया, अन्त में 28 अप्रैल 2022 को न्यायमूर्ती माननीय संजय मिश्रा व आर॰सी॰ खुल्बे द्वारा निर्णय दिया गया कि हम एनआईओएस, डीएलएड को भी कौन्सिंलिंग में सम्मिलित किया जाए l पुनः एक अन्य केस में संयुक्त पीठ न्यायमूर्ती मनोज तिवारी व आर॰सी॰ खुल्बे द्वारा भी निर्णय दिया गया कि हमें भी भर्ती प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाए व नियुक्तियों को शीलबन्द लिफाफे में रखा जाए ।
उच्च न्यायालयों के उक्त आदेशों के पालन करने तथा विभागीय शासनादेश निर्गत करने के संदर्भ में हम सम्पूर्ण एनआईओएस डीएलएड उपाधि धारक कई बार शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव विद्यालयी शिक्षा, महानिदेशक शिक्षा, निदेशक प्रारम्भिक शिक्षा से मुलाक़ात कर चुके हैं लेकिन इनके द्वारा आजतक झूठा आश्वासन ही दिया जा रहा है l उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना के साथ साथ हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का कुचक्र रचा जा रहा है।