उत्तराखण्ड
उत्तराखंड के माथे पर नया मुकुट
उत्तराखंड, भारत के उत्तरी क्षेत्र का एक भाल, हिमाच्छादित, वनाच्छादित, ऊँचे पहाड़ों की एक लंबी श्रृंखला, जल और जवान की भरमार,विश्व प्रसिद्व धाम और भारतीय रक्षा में सैनिकों की बहुलता देवभूमि का यह परिचय उतना ही पुराना हैं जितना गंगा-यमुना का पानी। नये राज्य में नए कोल-कल्पित फूटते हैं जो आशा से भरे रहते है।
वर्ष 2000 में अस्तित्व में आया उत्तराखंड अपनी नैसर्गिक सुंदरता तो नही बड़ा पाया लेकिन सत्ता-संघर्ष के लिए मुख्यमंत्रीयों की संख्या जरूर बड़ी। कहा तो नए राज्य बनने से देवभूमि अपना परिचय बड़ाता और लोगो को सगे होने का अनुभव करता , लेकिन सत्ताधीशों की कहानी में ये अध्याय ही नही है। आत्मनिर्भर भारत में राज्य कब स्वालंबी बनेंगे, अनुउत्तरित है। राज्य अब वयस्क हो चुका है लेकिन अपने पावों में खड़ा नही है।
निश्चित रूप से अंगुली हुक्क्मरानों पर उठती है। नेतृत्व का समपर्ण राज्य के नक्से को विकास के पहिये से पाट कर बदल सकते है। यह नेतृत्व ही है जो संसाधनों का उचित उपयोग कर राज्य की भलाई में खर्च कर सकता हैं। बात चाहे मूल जरूरतों यथा पानी,बिजली, शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन, सड़क संपर्क, रोजगार इत्यादि की हो आशातीत परिणाम नदारद है। परिणाम पलायन बदस्तूर जारी हैं। यह नीतियों की असफलता के मुह पर करारा तमाचा हैं। फसल बंदरो व सुवरों के लिए हो रही है। यहाँ तक कि आमजन के जीवन भी जंगली जानवरों से सुरक्षित नही है। तीर्थाटन, पर्यटन के नाम पर सीमित चिन्हित जगह ही है।
नेतृत्व चाहता तो उत्तराखंड का हर उचाई, गहराई वाली जगहों को विकसित कर पर्यटन को आकर्षित करने के लिए काफी थी। साहसिक पर्यटन उत्तराखंड वासियों को जन्म के साथ ही मिलती है। पहाड़ो की खूबसूरत वादियों में पले-बड़े लोग न सिर्फ हृष्ट-पृष्ठ होते है बल्कि बड़े व बलवान भी होते हैं। रक्षा सेना में हमारी मौजूदगी की अधिकता इसका प्रमाण हैं। यह हमारे साहसी होने का साक्षी हैं। नेतृत्व पर बहुत कुछ डिगा रहता है। लाखो-करोड़ो लोगों की उम्मीदें टिकी रहती है। जिस पर वे अपने सपनों का महल खड़ा करते है। धरातल पर उतारने के लिए एक आम उत्तराखंडी जान लगा देता है। वह स्वभाव से ही मेहनती है। बस उसे सरकारों का पलथन भर सहयोग चाहिए। दुर्भाग्य वो भी मयस्सर नही है। अपने को सरकारों को सुपर्द कर महफूज़ समझते है।
नए नेतृत्व से नई उम्मीदें हैं।आशा है उत्तराखंड अपनी खोई हुई विरासत,गौरवपूर्ण परंपरा को वापस पायेगा। आत्मनिर्भर उत्तराखंड नए नेतृत्व के कार्यवृत्त में जगह बना पायेगा। तभी उत्तराखंड के माथे का मुकुट सूंदर लगेगा।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ उत्तराखंड
(लेखक सामयिक विषयो के ध्येता हैं।)
















