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उत्तराखण्ड

नहीं रहे शताब्दी पुरुष पूर्व विधायक तड़ागी

जीवन को रचनात्कता के कलेवर के साथ किया साझा

कहते – हर पल को सुख की अनुभूति के साथ जीने की आदत हमें सुन्दरता देती है।

  • नवीन बिष्ट

अल्मोड़ा। जीवन को रचनात्कता के कलेवर के साथ साझा कर जीने वाले शताब्दी पुरुष पूर्व विधायक व नैनीताल जैसे सुन्दरतम सरोवार नगरी के पालिका अध्यक्ष रहे किसन सिंह तड़ागी 101 वसन्त देख कर दुनिया को अलविदा कह गए। उनका जीवन के प्रति बहुत ही सकारात्मक नजरिया रहा। तड़ागी जी कहते कि ईश्वर ने हमें यह जीवन बहुत ही नेह के साथ दिया है, इसे आनन्द के साथ जीना चाहिए। जीवन के हर पल को सुख की अनुभूति के साथ जीने की आदत हमें हर पल सुख देती है। जीवन के प्रति उनका दर्शन अनोखा रहा, कहते मानव जीवन बहुत ही सुन्दर है। जीवन पर्यन्त वे जीवन के जीने की चाह रखते थे, कहते कि मैं जीवन को खूब जीना चाहता हूं। ऐसी बात नहीं कि उनके जीवन में दुख नहीं आया हो एक बार उनके युवा पुत्र अवस्था में चले जाना मर्मान्तक पीड़ा दे गया, लेकिन उन्होंने उस गहरे जख्म को अपनी जीवट जीवन शैली से छिपा लिया। यह था उनका सकारात्मकता का लाघव, जो मानव को प्रेरणा देने वाला है।

जीवन के प्रति मधुर चिन्तन रखने वाले किसन सिंह तड़ागी का जन्म चन्द शासकों की राजधानी चम्पावन के गांव में हुआ था। प्रारम्भिक से मिडिल की पढाई खेतीखान से की। आगे की पढ़ाई के लिए वीर भट्टी नैनीताल बिष्ट स्टेट में नौकरी कर रहे अपने बड़े भाई के साथ आगए। यहां से हाई स्कूल पास कर आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ चले गए। बाद में उनकी योग्यता को देखते हुए उन्हें बैंक आफ बड़ौदा का निदेशक चुना गया।

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लोक प्रियता के चलते 1971 में नैनीताल जैसे महत्वपूर्ण नगर के पालिका अध्यक्ष का चुनाव जीत कर राजनैतिक जीवन परचम लहराया। 1977 तक पालिका अध्यक्ष का पद बखुबी निभाया एक मुलाकात में वरिष्ट पत्रकार जगदीश जोशी से अपने पालिका के अनुभव साझा करते हुए कहा था कि तब पालिका के पास बहुत ही दायित्व हुआ करते थे, उन्होंने बताया कि उस समय नगर की पेयजल, विद्युत, सफाई के साथ मिडिल तक की शिक्षा का जिम्मा भी नगर पालिका निर्वहन किया करती थी। पालिका क्षेत्र में आने वाले वन में अधिकार रहता। उन्होंने बताया कि उस समय पालिका की अपनी अग्नि शमन की ब्रिगेड हुआ करती थी।

उन्होंने अपने कार्यकाल में योग्य युवाओं को रोजगार देने का भी काम किया। अपने जीवट अन्दाज में बताते कि यह जनता का स्नेह ही था कि 1985 से 1989 के चुनाव में दो बार विधायक चुने गए। जीवन के प्रति उनका अप्रतीम लगाव ने ही उन्हें शताब्दी तक जीने की राह प्रसस्त की ऐसे मनीषी कम ही होते हैं। जब उन्होंने अपने जीवन के 100 वर्ष पूरे कर 101 वें साल में प्रवेश किया तो कई राजनेता, सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग उन्हें बधाई देने गए तब मेरे मन में आया कि ऐसे शताब्दी पुरुष का साक्षात्कार कर 100 वर्षों के कालखण्ड को अनुभव सांझा करूंगा लेकिन नहीं कर पाया ।

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