कुमाऊँ
अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर पिथौरागढ़ में मटरगस्ती करते तेंदुऐं
जब कभी जंगल बहुतायत में थे तब मानव और वन्यजीव दोनों अपनी-अपनी सीमाओं में सुरक्षित रहे, लेकिन समय बदला और आबादी भी बढ़ी, फिर शुरू हुआ वनों का अंधाधुंध विनाश। इसके परिणाम में सामने आया, कभी न खत्म होने वाला मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष का सिलसिला। मनुष्य अपनी अनेकानेक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जंगलों का दोहन करता रहा है, जिसकी वज़ह से मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएँ अधिक सामने आ रही हैं। वन विभिन्न प्रकार के पक्षियों और जीवों की आश्रय स्थली हैं और जब इनके घरों पर मनुष्यों ने कब्ज़ा करके अपना घर बना लिया है तो वे अपना हिस्सा मांगने हमारे घरों में ही आएंगे ही। कुछ ऐसा ही एक वाकया आज कृषि विज्ञान केंद्र गैना ऐंचोलीके पास लगे ज्याखोला वन क्षेत्र में देखने को मिला । इधर गांव के लोग अपने पालतू जानवरों को चराने को लेकर चरागाह की ओर लगे ही थे कि चार शेरों के एक झुंड ने एक गाय पर हमला कर उसे अपना निवाला बना दिया। ग्रामीण कुछ समझ पाते इससे पहले सामने से एक वयस्क भालू दहाड़ता हुआ दृष्टिगोचर हो गया। फिर क्या था, लोगों ने आव देखा न ताव। तुरन्त वन को गए पशु गांव की ओर लौटा दिए गए। जानवरो का यह संघर्ष कई दफा आदमियों पंर भारी पड़ जाता है। जब तक जंगल सुरक्षित है तभी तक हम भी सुरक्षित है। अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के उपलक्ष्य पर बाघ, तेंदुआ,भालू, हिरन को एक ही जंगल मे देखने पर सह अस्तित्व एवं पारिस्थितिकी के साथ साक्षात्कार जैसा हो गया। यू तो बिगत कई सालों से जंगली जानवरों और आदिम के संघर्ष में इनको संबंधों में कटुता आयी है। हम माने अथवा ना माने आज पहाड़ की फसलों और वसासत के लिए ये रात्रिगोचर पशु खतरनाक होते जा रहे है। एक तरफ पहाड़ से गांव के गांव खाली वही दूसरी तरफ इन जानवरों की बेरोकटोक आवाजाही ने लोगो मे दशहत कायम भर दी है।
क्या ही अच्छा होता आज हम जंगल बचा पाते,जंगलों की जैव विविधता का संरक्षण कर पाते तो शायद ये बेजुवान ना ही हम पर भारी होते और ना ही वन्य जीवों का ये संघर्ष प्रकृति के क्षरण का द्योतक बनता।
हमें प्रकृति के साथ हर मोड़ पर सामंजस्य व सन्तुलन बनाये रखने का प्रयास करते रहना चाहिए। अधिक से अधिक पेड़ लगाए,अनावश्यक वृक्षो को ना काटे । अपनी हर खुशी में प्रकृति को भी शामिल करें। मानव के अस्तित्व के लिए पेड़, पौधे, फल , फूल, काटें, घास,मिट्टी, पर्वत, पहाड़, नदी ,नाले, हवा, पानी,जंगल इत्यदि चीजो की बराबर की जरूरत पड़ती है।
ऐसा ही सुंदर वाकया उत्तराखंड के मिनी कश्मीर कहे जाने वाला जिला मुख्यालय से सटा मात्र 5 किमी के दूरी पर गैना का ज्याखोला में दिन दहाड़े चार बाघ देखे गये। स्थानीय निवासी व पत्रकार पंकज पांडेय व उनकी पत्नी चेतना पांडेय ने इस खूबसूरत पलों को अपने ही घर से कैमरे में कैद किया। बनराज की मटर गस्ती को देखने के लिए लोगो का हुजूम लग गया। जिलाधिकारी कार्यालय में कार्यरत श्रीमती राधा पांडेय ने बताया इस क्षेत्र में जंगली जानवरों का दिखना प्रायः आम बात हो गयी है। कभी काम के सिलसिले में देर से घर पहुँचना सभी की चिंता बड़ा देता है।
विज्ञान के प्रचार – प्रसारक व पर्यावरण संरक्षण में जुटे रहने वाले प्रकृति प्रेमी शिक्षक प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’ जहाँ इसे एक ओर जैव विविधता के लिए अच्छा संकेत मानते है वही इनके आपसी संघर्ष से आबादी व वसासत वाले जगहों में घुसने से सावधान रहने की अपील करते है।जिससे हम एक उचित दूरी के साथ जीवो की इस विविधता को बनाये रखने में सफल हो सकते है।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
बागेश्वर, उत्तराखंड
(लेखक सामाजिक सरोकारों एवं उत्तराखंड शिक्षा से संबद्ध रखते है)