उत्तराखण्ड
ऑन लाइन पढ़ाई: कैसे बोर्ड परीक्षाफल में अंक आये ?
कोरोना महामारी से बचाव के लिए बच्चों के स्कूल बंद कर दिए । बच्चों में कोविड-19 के संक्रमण की दर तेज होने के कारण इसे समझदारी भरा कहा जा सकता है।माँ, बाप, अभिवावक,स्कूल और सरकार सभी बच्चों के प्रति सतर्क रहें। बच्चों के जीवन की रक्षा करना जरूरी था और किया गया। ये किसी भी पद्धति की शिक्षा का पहला पाठ था।इससे सभी ने शिक्षा ली और पूरी की। बच्चों का सरोकार पढ़ाई से होता है। स्कूल बंद रहने से किसी ना किसी मात्रा में पढ़ाई प्रभावित हुई। सभी संबंधित पक्ष्यों ने एक समांतर पढ़ाई का तरीका ढूढा। और ऑनलाइन के रूप में पठन-पाठन जारी रखा। एक मात्रा व स्तर तक ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों को उनके पुस्तको,सीखने, लिखने, सोचने,आगे बढने में मदद की। ग्रह कार्य भी दिया गया और उसका मूल्यांकन भी ऑनलाइन ही किया गया। बच्चों को यह एहसास भी हुआ कि संकट की घड़ी में मुख्य रास्ते बंद हो जाते हैं लेकिन दूसरे रास्तो की भी मंज़िल वही होती है।
प्रयास नही छोड़े जा सकते है। ज्यादा ना मिलने की आस पर कम से तौबा नही की जानी चाहिए।प्राथमिक से लेकर माध्यमिक,उच्च शिक्षा तक ऑन लाइन पढ़ाई लगातार जारी रखी गयी। बच्चों ने इसमें खूब रुचि दिखाई। पढ़ाई भी की और अपनी समस्याओं को शिक्षक के साथ-साथ सोशल मीडिया के दूसरे तरीकों जैसे यू-ट्यूब,गूगल सर्च इंजन,एनसीआरटी,ज्ञान प्रभा चैनल,एवं दूरदर्शन के विविध चैनलों से टेली टीचिंग इत्यादि से सांझा कर हल की। कोरोना महामारी से उपजा एक बड़ा फैसला केंद्रीय स्तर पर आया कि सीबीएसई की 10 वी व प्लस टू यानी इंटरमीडिएट की परीक्षाओं को निरस्त किया जाता हैं। यह बच्चों को किसी भी संकट में ना डालने व सुरक्षित रखने वाला बड़ा प्रभावकारी निर्णय था। समय के सापेक्ष लिया गया एक अच्छा कदम सरकार की दृढ़ता को दिखाता था। बच्चें परीक्षाओं की तैयारी में जुटे थे। लेकिन अब परीक्षा ऑफ लाइन नही थी। इसिलए बोर्ड परीक्षाफल भी ऑन लाइन तैयार करना हुआ। सरकार ने शिक्षा के सभी पक्षो से सलाह मशवरा कर विशेषज्ञों द्वारा एक मूल्यांकन प्रपत्र तैयार करवाया गया।
अंको को देने के लिए कही न कही आधार तो तय करना ही था। सो किया गया। पूर्व वर्षो का परीक्षाफल, मासिक व अर्ध वार्षिक परीक्षाओं के अर्जित अंक,प्री-बोर्ड का परीक्षाफल,प्रयोगात्मक परीक्षाओं (आंतरिक व वाह्य)। किसी भी प्रकार की कोई कमी ना हो, ठोक-बजाकर तैयारी की गई। उच्चतम न्यायालय ने भी इसमें अपनी सही मापन या मूल्यांकन होने की मुहर लगा दी। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने फिर भी बच्चों के लिए ऑफ लाइन परीक्षा का विकल्प खुला रखा। महामारी का प्रकोप कम होने के साथ ही अगर जो बच्चे चाहते है परीक्षा दे सकते है का प्राविधान रखा। यह एक बहुत ही अच्छा व बच्चों के हित में लिया गया उपयोगी निर्णय था। बच्चें अखिल भारतीय स्तर पर होने वाली परीक्षाओं यथा- इंजीनियरिंग, मेडिकल,प्रबंधन, स्नातक स्तर पर विश्वविद्यालयो में होने वाले विभिन्न विषयों में प्रवेश परीक्षाओं को लेकर चिंतित है। क्योंकि कई जगह सीधे प्लस टू यानी इंटरमीडिएट के अंको, श्रेणी,योग्यता का इन प्रवेश परीक्षाओं में प्रत्यक्ष असर रहता है। इसीलिए मूल्यांकन प्रपत्र को लेकर बच्चों का संकित होना वाजिब लगता है। बच्चों की सभी को फिक्र है। सभी अपने -अपने स्तर से प्रयास कर रहे है। यह मूल्यांकन पद्धति भी बच्चो को एक अच्छे समय में ले जाएगी और अच्छा एहसाह कराएगी यही सबका मानना है। बच्चें कल का भविष्य है। भविष्य को सफल बनाने की जिम्मेदारी आज पर है। अर्थात हम पर है। बड़े ही बच्चों के मार्गदर्शक होते हैं। देखा-देखी राज्यों ने भी मूल्यांकन के इस मॉडल को अपना लिया।
उत्तराखंड जैसे विषम भू- भौगोलिक परिवेश में ऑनलाइन पढ़ाई से जहाँ एक ओर हमारे बच्चों को फायदा मिला वही दूसरी ओर अल्पांश संख्या में बच्चें संसाधनों के अभाव में इसका फायदा नही उठा सके। फिर भी शिक्षकों ने कमरकस कर बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई से पड़ने को प्रेरित किया।
हमारे इन कर्मवीरों ने कहीं कहीं तो घर-घर जाकर भी बच्चे तक शिक्षा की ये अलख जगाई रखी। कहने का मतलब है स्कूल बंद थे मगर पढ़ाई बन्द नही थी।येन केन प्रकारेण हम बच्चों तक पहुच रहे थे। उनको जगा रहे थे। आश्वस्त कर रहे थे आपका भविष्य सलामत रहेगा और इसकी जिम्मेदारी ले रहे थे। अब मूल्यांकन की बारी है। यह भी जरूर अच्छा लेकर आएगा। लेकिन उत्तराखंड राज्य के परिपेक्ष्य में मूल्यांकन की अगर केंद्र की तर्ज़ पर हु-बहु नकल ना कि जाती तो अच्छा होता।पूर्व परीक्षाओं व मासिक परीक्षाओं के अर्जित अंक तो समझ में आते है लेकिन जिसकी परीक्षा ही नही हुई अर्द्ध-वार्षिक व प्री-बोर्ड उसके अंक मूल्याकन प्रपत्र का हिस्सा बने, समझ से परे हैं। हमें कठिन ना बनाकर इसको सरल बनाना चाहिए। सरल बनायेगे तो इसकी पहुँच ,सत्यता,प्रमाणिकता, बढ़ेगी। इसी में हमारे बच्चों का ज्यादा हित होगा। मूल्यांकन प्रपत्र में पूर्व वर्षो का परीक्षाफल,प्रयोगात्मक परीक्षाओं के अंक और सबसे महत्वपूर्ण संबंधित विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षकों के द्वारा प्रदत्त अंक जो इस सबमें नही दिखता है को जरूर शामिल करना चाहिए। एक शिक्षक जो छात्र के सबसे नजदीक है,उसकी कमियों को जानकर उसको कम करता है,उसे प्ररित करता है अच्छा करने के लिए, प्रेषण करता है, मापन करटक6 है उसका अपने छात्र को सबसे बेहतर जानता है और बेहतर बनाना चाहता है ,और बेहतर बनाता भी हैं। शिक्षक छात्र का सर्वोत्तम मूल्यांकन भी करता है। इसीलिए शिक्षक को मूल्यांकन का हिस्सा बनाये रखना प्रासंगिक लगता है।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय’नेचुरल
उत्तराखंड
(लेखक शिक्षा के क्षेत्र में दो दशकों से भी अधिक समय तक का अनुभव रखते हैं एवं देश के प्रतिष्ठित विद्यालयों,नवोदयो सहित वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा से जुड़े है।)