उत्तराखण्ड
हमारी संस्कृति,हमारी पहचान-उत्तराखंड की सुंदरता और लोकगीतों का है विशेष महत्व
हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड प्रकृति का वरदान है, यहां की सुरम्य घाटियों, हरे भरे वनों, चांदी के मुकुट की तरह चमकने वाले हिमालय के बीच उत्तराखंड के लोकगीतों को सुनकर, दृश्य को देखकर आनंद की एक अलग ही अनुभूति प्राप्त होती है। शरद ऋतु खासतौर पर अक्टूबर का महीना यहां घूमने वालों के लिए यादगार साबित होता है। एक तरफ बर्फ से ढकी हिमालय की ऊंची-ऊंची चोटियां दूसरी तरफ नीले आसमान के तले हसीन वादियां, सुंदर-सुरम्य पहाड़ियां देखकर हर किसी को उमंग से भर देता है। इतनी सुंदर माटी,प्राकृतिक वातावरण को छोड़कर यहां से पलायन करने वालों को जब कभी यहां की याद आती होगी, तो शायद वह भी सोचने को मजबूर होते ही होंगे।
कुमाऊँ मण्डल की हसीन वादियों, सर्पीली सड़कों से गुजरने वाले स्थानीय लोग आज भी प्रसिद्ध लोकगायक स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी के गीतों का आनंद लेते रहते हैं। अस्सी से नब्बे के दशक में स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी के लोक गीत काफी प्रभावित हुए,घर घर में लोग टेपरिकार्डर में खूब सुनते थे। इन लोकगीतों का समाज के प्रति गहरा संदेश होता था।
उन्होंने बदलते आ रहे समाज के परिवेश में एक सुंदर लोकगीत गाया था।किसी मित्र ने आज इसे हमें भी भेजा,सोचा क्यों न दो शब्द इस पर भी लिखा जाय। आइये हम आपको इसी के साथ स्वर्गीय गोस्वामी द्वारा गाया गया लोकगीत सुनाते हैं। गीत के साथ ही आप देखेंगे यहां का सुंदर मनमोहक दृश्य।