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कुमाऊँ

कविता-“मैं बेटी हू पापा “

“मैं बेटी हू पापा “
Poem – a girl narrate her ordeal, social awareness for women empowering, a small attempt to change narative for girl and fathers worrying for her daughter and dwary….

जन्म होते समय मुझे सब लक्ष्मी बोलते है।
कुछ सालों बाद मुझे दहेज मे तोलते है।।
मुझमें और भाई मे क्यों अन्तर पढ़ाई मे।
मेरी ही गलती क्यों हम दोनों की लड़ाई मे। ।
समाज मे सोच अलग है मेरे लिए।
मैं क्यों समस्या हो जाती हूँ तेरे लिए।
मेरा लड़की होने का कसूर है।
यह समाज का गलत फितूर है ।।
जन्म लेना मेरा हक है।
दहेज प्रथा घातक है। ।
मैं क्या नहीं कर सकती हूँ।
हथियार भी उठा सकती हूँ। ।
मिलती मुझे जो भी जवाबदारी।
मैंने दिखायी हमेशा वफादारी ।।
क्या बेटियों के उदाहरण कम है।
समाज मोका नहीं देता इसी बात का मुझे ग़म है। ।
इतिहास गवा है, रणभूमि से लेकर राजनीति तक बेटियों ने बदली जीत की हवा है। ।
बस समाज की सोच बदलने की जरूरत होगी।
हमारी जिंदगी भी खूबसूरत होगी। ।
रानी लक्ष्मीबाई, इंदिरा गाँधी, कल्पना चावला, सुषमा स्वराज, सोनिया गांधी।
क्या ये उदाहरण कम है या अभी और बची है अंधी। ।
पड़ लिख कर हम भी बढ़ना चाहते है।
आत्मनिर्भर बनने के इरादे हमें भी आते है। ।
पता है मुझे पापा का बलिदान।
एक दिन करना ही पड़ेगा कन्यादान।
पता है मुझे मेरी विदाई का तुझमे असर।
मेरी खुशी के लिये झुका देते हो अपना सर। ।
शादी के बाद भी मेरे लिए रहते हो वरी।
मैं पापा की बनके रहूंगी हमेशा परी ।।
जन्म लेते समय सब मुझे लक्ष्मी बोलते है।
फिर कुछ सालों बाद मुझे क्यों दहेज मे तोलते है। ।
क्यों दहेज मे तोलते है। ।

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राइटर/poet- सुरेंद्र सिंह
ग्राम- अजेंडा ,डीडीहाट पिथौरागढ़

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