कुमाऊँ
वट-सावित्री की पूजा प्रकृति के प्रति प्रेम की पूजा है
हमारा अतीत कितना गौरवशाली,समृद्ध व वैज्ञानिक रहा है इसकी बानगी हमारे तीज- त्यौहारों, उपासनाओं,पूजा,यज्ञ, हवनों, आहुतियों में देखा जा सकता है. हमारे ऋषि-मुनियों, आचार्यो, गुरुओं,ने पूरे जीवन का ऐसा खाका तैयार किया कि हम प्रकृति से जाने-अनजाने जुड़े रह सकें. चाहे इसे हमारी पूजा में शामिल करवा दिया,आस्था में गढ़ दिया. यह धीरे धीरे हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग बनता गया. आज हम इस वैदिक,प्राकृतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक थाती को सहेजकर गर्व कर सकते है। जिसमें मानव जीवन के हर बारीक से बारीक पहलुओं पर गहन शोध और अध्ययनपरांत जीने की सबसे शानदार सर्वसम्मत तरीके को बताया गया है। कुछ लोगो को आज समझ में आ रहा हैं कि हमें अब प्रकृति की ओर मुड़ना चाहिए, क्योकि कृतिमता से उघे,ऊबकर अब कहा जाए?. अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए व डरकर हम अब भागकर प्रकृति के पास जा रहे हैं शायद हमें बचा ले। जबकि हमारे पूर्वजों को इसका आभास शुरू से ही था। इसीलिए उन्होंने अपने परिवेश,पर्यावरण, पारस्थितिकी,जंगल,हवा,पानी,मिट्टी,पेड़-पौधों,फल-फूलो,कीटों, जीवों,नदियों,पहाड़ो से अपने को जोड़ें रखा. यह इसी उचित तालमेल का कमाल था कि कभी किसी को भूखा नही सोना पड़ा,प्राण-वायु ऑक्सिजन के लिए तरसना नही पड़ा,पानी से प्यास बुझते नही छोड़ा।
प्रकृति संरक्षण की समझ इस कदर कूट कूट कर भरी थी कभी उन लोगों ने समाज को प्रकृति से अलग ही नही रखा। इसी की याद दिलाता है सुहागिनों का एक पवित्र त्यौहार ‘बट-सावित्री’. पुराणिक कथा के अनुसार अपने पति सत्यवान के प्राण को एक सत्यव्रती नारी सावित्री यमराज के हाथों से छीनकर वापस लायी। इस प्रकार मृत्य के देवता को अपने सच के प्रताप से झुकाकर एक भारतीय नारी ने अपने सुहाग की रक्षा की।इतिहास में दूसरा ऐसा उदाहरण ना देखने को मिलता हैं और ना ही सुनने को। लिखित पांडुलिपि में भी इस प्रकार का वर्णन नही है। सत्यवान बट के वृक्ष पर चढ़कर टहनियां काट रहे थे। बट के इसी वृक्ष ने उनकी रक्षा की। इसीलिए इस पेड़ को रक्षा करने वाला ‘कवच वृक्ष’ भी कहा जाता है।
पारिस्थितिकी में बट का पेड़ धरती को क्षरण से रोकता है,अपने आस-पास पानी के स्रोतों को आवेशित करता रहता है जिससे इसके साथ -साथ अन्य सहचर भी घास-फूस,पक्षियों, फूलो को फलने-फूलने को पर्याप्त अवसर मिलता हैं। शोधों से यह भी पता चला है बट वृक्ष के ऑक्सीजन छोड़ने या देने की गति दूसरे अन्य पेडो से ज्यादा होती है। और यह पेड़ कही हानिकारक गैसों जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड,कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, अमोनिया को वातावरण से कम करता रहता हैं जिससे ऑक्सीजन की शुद्धता बढ़ जाती है।
प्राणियों के जीवन जीने की प्रतिशतता में आशातीत बृद्धि होती है। यही कारण है बट-सावित्री को बट की पूजा कर इसको बचाने, लगाने,संवर्धित करने,संरक्षण करने की प्रतिज्ञा ली जाती है।जिस प्रकार सावित्री ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से तक टक्कर ली और विजयी होने की प्रतिज्ञा ली और सफल हुई।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल‘
(लेखक वैज्ञानिक दृष्टिकोण व विज्ञान के प्रचार-प्रसार से समाज को जागरूक करते चले आ रहे हैं)