उत्तराखण्ड
बरसात ने बिगाड़ा सब्जियों का गणित, खेत से लेकर बाजार तक छाया संकट
हल्द्वानी। उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश ने आम जनता से लेकर किसानों और व्यापारियों तक की चिंता बढ़ा दी है। एक ओर जहां खेतों में खड़ी सब्जियां सड़ने लगी हैं, वहीं दूसरी ओर मंडियों में इनकी आपूर्ति घटने से खुदरा बाजार में दाम बेकाबू हो गए हैं। हल्द्वानी की नवीन मंडी में सब्जियों की आमद में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है, जिससे आम लोगों के रसोई बजट पर सीधा असर पड़ा है।
हल्द्वानी, जो कुमाऊं का सबसे बड़ा सब्जी व्यापार केंद्र माना जाता है, यहां इस वक्त सब्जियों की मांग तो बनी हुई है लेकिन बारिश के कारण कई क्षेत्रों से सप्लाई प्रभावित हो रही है। खेतों में फसलें नष्ट होने और परिवहन में अड़चनों के चलते टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी जैसी प्रमुख सब्जियों के दाम अचानक आसमान छूने लगे हैं।
फिलहाल मंडी में टमाटर 60 से 70 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि शिमला मिर्च की कीमत 80 से 100 रुपये किलो तक जा पहुंची है। बंद गोभी 80 रुपये प्रति किलो और भिंडी 50 रुपये किलो में बिक रही है। हर प्रकार की हरी सब्जियों में 20 से 30 प्रतिशत तक की कीमतों में उछाल देखने को मिल रहा है। ऐसे में रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करना आम आदमी के लिए मुश्किल होता जा रहा है।
केवल उपभोक्ता ही नहीं, किसान और सब्जी व्यापार से जुड़े कारोबारी भी इस संकट से जूझ रहे हैं। भारी बारिश के चलते खेतों में फसलों पर फंगस लग रही है, जिससे कई इलाकों में लगभग 70 फीसदी तक की फसल खराब हो चुकी है। नैनीताल जिले के रामगढ़ क्षेत्र में इस बार फूलगोभी, पत्तागोभी, लौकी, कद्दू, ककड़ी जैसी सब्जियां खेत में ही सड़ गई हैं। लगातार नमी से पौधों में सड़न और कीड़े लगने की शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं।
बरसात के कारण माल की आवाजाही पर असर पड़ा है। खासकर महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से आने वाली सप्लाई बाधित होने से हल्द्वानी मंडी में दबाव और बढ़ गया है। व्यापारियों का कहना है कि जब मंडियों में माल ही कम आएगा तो कीमतें बढ़ना तय है। ऐसे में पहाड़ों में तो सब्जियां दोगुने दामों पर बिक रही हैं, जिससे उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा असर पड़ रहा है।
दूसरी ओर किसान सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं, ताकि उनकी बर्बाद होती फसलों की कुछ भरपाई हो सके। यदि मौसम का मिजाज जल्द नहीं बदला, तो आने वाले दिनों में न केवल सब्जियों के दाम और चढ़ सकते हैं बल्कि स्थानीय उत्पादन पर भी लम्बे समय का असर पड़ सकता है।



