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कुमाऊँ

धूमधाम से मनाया गया सातू आठू का त्यौहार

नैनी जागेश्वर। जहां उत्तराखंड को देवों की भूमि देवभूमि के नाम से जाना जाता है वहीं उत्तराखंड में बहुत से पर्व भी मनाए जाते हैं उनमें से एक त्यौहार है सातू आठूं का जो सभी जगह बड़े ही धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है मल्ली नैनी भी यह त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया गया आइए आपको बताते हैं कि यह त्यौहार क्यों और कैसे मनाया जाता है। बताया जाता है कि यह त्यौहार भाद्रमास कि सप्तमी व अष्टमी को मनाया जाता है।

इस दिन माता गौरा व भगवान महेश की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि सप्तमी के दिन माता गौरा अपने मायके से रूठ कर चली गई थी। तो उन्हें मनाने के लिए अष्टमी के दिन भगवान महेश को आना पड़ा। इस परंपरा को आज भी गांव की महिलाओं के द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सप्तमी को बाजरे, मक्के की घास से गौरा और महेश की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा की जाती है।

ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन सप्तमी को महिलाएं व्रत रखकर एक तांबे के बर्तन में सात प्रकार के अनाज भिगोती है जिनको बिरूड कहा जाता है और भगवान महेश का स्वागत किया जाता है। अष्टमी के दिन माता गौरा को विदा किया जाता है। और इन दोनों की प्रतिमाओं को नजदीक के किसी मंदिर में विसर्जित कर दिया जाता है। और बिरुड का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। कहा जाता है कि यह व्रत महिलाएं संतान की कामना तथा उनके कल्याण के लिए करती हैं। इस त्यौहार का बड़ा ही महत्व माना जाता है।

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जगदीश भट्ट

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