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कुमाऊँ

विज्ञान और हम

आधुनिक जीवन में विज्ञान और तकनीकी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए विज्ञान शिक्षा के प्रचार-प्रसारक एवं विज्ञान शिक्षक प्रेम प्रकाश उपाध्याय ने कहा कि 21वी सदी भौतिक सुख सुविधाओं तथा नये-नये आविष्कारों की सदी है। श्री उपाध्याय वर्तमान में उत्तराखंड सरकार के विद्यालयी शिक्षा जनपद बागेश्वर में सेवारत हैं। लेखनीय के क्षेत्र में उनको बेहद शौक है। समय निकालकर वह कुछ न कुछ लिखते रहते हैं। ‘ विज्ञान और हम, विषय पर पढ़िये उनका लेख-

       ''विज्ञान और हम,,

विज्ञान और हम आज जल और मछली जैसे हो गए है। बिना जल के मछली और बिना मछली के जल दोनों ही आधे – अधूरे है। एक के बिना दूजा अधूरा । 21वी सदी सचमुच भौतिक सुखसुविधाओ, नए – नए आविष्कारों, अचंभो की सदी है। विज्ञान के विकास के साथ-साथ तकनीकी व प्रोध्योगिकी ने हमारे रहन – सहन, खान-पान, संचार एवं सूचना ,यातायात,परिवहन,छवि यहा तक की सोचने का स्तर बदला है । हम आज विज्ञान के बलबूते तकनीकी युग में जी रहे है। हमारा जीवन व इसकी विविध गतिविधिया , आयाम तंत्र व तकनीकी से प्रभावित है , संचालित है। पुराणों, उपनिषदों, आदि ग्रंथो की कथा – कहानियो मे सुनी गई बातों को हम अपने आखो से सच होते देख रहे है। क्योकि हम इसका प्रयोग, अनुप्रयोग भी कर रहे है।विज्ञान और तक्नीकी ने जीवन की जटिलताओ के चक्रव्योह को तोड़ डाला है। भले ही वह संचार,चिकित्सा ,बैंकिंग, प्रशासन,अभियांत्रिकी,प्रोध्योगिकी,प्रकाशन, खाध,निर्माण-विनिर्माण,अन्तरिक्ष,रक्षा,आयुध,इत्यादि कोई क्षेत्र हो विज्ञान ने अपनी ज़बरदस्त उपस्थिति दर्ज़ कराई है।
देश के महान वैज्ञानिक डा. चेन्द्रशेखर वेंकटरमन (1888-1970) ने 28 फरवरी 1928 को प्रकाश की प्रकृति व स्वभाव का अध्ययन किया। कोई एक वर्ण प्रकाश जब द्रवों, ठोसों से होकर गुजरता हे,तो उसमे आपतित प्रकाश के साथ अत्यल्प तीव्रता का कुछ अन्य वर्णो का प्रकाश देखने में आता है । उनकी इस खोज के लिए 1930 में उन्हे भौतिकी का नोबेल पुरुस्कार प्रदान किया गया । इसे रमन प्रभाव से भी जाना जाता हे। इसका उपयोग विज्ञान की विभिन्न ज्ञान की शाखाओ मे किया जाता हे। किसी तत्व, यौगिक,पदार्थ की आंतरिक संरचना के निर्धारण मे इसकी महती भूमिका होती है।
इंटरनेट के बड़ते इस्तेमाल ने इसकी ताकत कई गुना बड़ा दी है, भूगोल मुट्ठी मे कैद हो गया है, हमारे स्मार्ट फोन ने हमे लोकल से ग्लोबल बना दिया है, डिजिटल तकनीकी ने बड़े बड़े आकार –प्रकार को बौना कर हमारी पहुच में ला दिया है। 1986 से नेशनल काउंसिल फॉर साइन्स एंड टेक्नोलोजी ने 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में घोषित किया। बच्चो में विज्ञान के प्रति रुचि,जिज्ञासा,कौतूहल,आनंद ही विज्ञान दिवस का मुख्य उद्देश्य है,
बच्चो को सिद्धांत के साथ – साथ प्रक्टिकल करने की आज़ादी देनी होगी,इससे बच्चो में सीखने की जिज्ञासा की आदत पड़ेगी,वे सवाल करंगे,जवाब ढुढंगे,निश्चित रूप से बच्चो के मन-मष्तिस्क में एक टेम्परामेंट विकसित होगा, जो चीजों को देखने , परखने, प्रेषण करने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाने में मदद करेगा। इस प्रकार के नवाचार, न्वेंसमेष से ही बच्चे विज्ञान की दुनिया में प्रवेश कर जाते है और उन्हेभनक तक नहीं लगती है।
कहने का आशय यह है की जब तक किसी बच्चे को साइन्स का एप्लिकेशन दिखाई नहीं देगा , वह सवाल नहीं करेगा,वह सवाल नहीं करेगा तो विषय मे रुचि उत्पन्न नहीं होगी, रुचि उतपन्न नहीं होगी तो बच्चे में विजुअलाइज़ेशन नहीं आ पाएगा। विज्ञान जब तक कल्पना में घर नहीं बना लेता तब तक दृस्थिकोण व नज़रिया नहीं बनता। जरूरत भौतिक जगत को वैज्ञानिक दृस्तिकोंण से देखने,समझने, और आत्मसात करने की है।
आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर देश निरन्तर उन्नति का आह्वान करता है।विज्ञान के विकास के द्वारा ही हम समाज के लोगो का जीवन स्तर अधिक से अधिक खुशहाल बना सकते है।

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प्रेम प्रकाश उपाध्याय
बागेश्वर, उत्तराखंड
( लेखक विज्ञान शिक्षा के प्रचार –प्रसार ,विज्ञान शिक्षण, शोध और उत्तराखंड सरकार के विद्यालयी शिक्षा से जुड़े है।)

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