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उत्तराखण्ड

कभी सीमांत क्षेत्रों में एसएसबी देती थी बंदूक चलाने का प्रशिक्षण

पिथौरागढ़। अस्सी-नब्बे के दशक में सीमांत जनपदों में एसएसबी द्वारा गांव-गांव जाकर प्रत्येक व्यक्ति को राइफल चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। लेकिन पिछले कई वर्षों से अब यह प्रशिक्षण देते नहीं दिखाई देता है। जबकि सुरक्षा की दृष्टिकोण से मौजूदा दौर में इस तरह के प्रशिक्षण की जरूरत महसूस होती है। खासकर सीमांत राज्यों, जनपदों के लिए पूर्व की भांति इस प्रकार का प्रशिक्षण मिलना चाहिए। पूर्व में एसएसबी द्वारा सीमांत जनपदों के प्रत्येक गांव में जाकर बंदूक,राइफल चलाने का 15 दिवसीय प्रशिक्षण दिया जाता था। जहां तक मुझे याद है, तीन-चार दशक पहले तक यह प्रशिक्षण अकसर गाँव गाँव में आकर दिया जाता था। सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के लगभग सभी गॉंवों में एसएसबी की टीम ने प्रशिक्षण दिया था।

ऐसे ही 1990 के दशक में जम्मू कश्मीर में भी जब चरमपंथी हिंसा बढ़ रही थी तो सरकार ने पहाड़ी क्षेत्रों में गाँव के लोगों को मिलाकर ग्रामीण सुरक्षा समितियाँ या वीडीसी का गठन करना शुरु किया था। उस दौर में भी बंदूक चलाने का प्रशिक्षण दिया गया था, खासतौर पर जम्मू कश्मीर की महिलाओं ने ऐसे प्रशिक्षण में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। इसका मक़सद चरमपंथियों के साथ मुक़ाबला करने में सुरक्षा बलों की सहायता करना और सुरक्षा बलों के पहुँचने तक चरमपंथियों का मुक़ाबला करना था।

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