कुमाऊँ
जनता पर पड़ रही बढ़ती महंगाई की मार, पढ़े आनंद अग्रवाल के विचार
रानीखेत। भारत के अच्छे दिनों का सपना अधूरा ही रह गया। महंगाई ने चारों तरफ से हमला कर दिया है। सरकार का कीमतों पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। जबकि 7 वर्ष पहले तीन तीन बार अपनी बात जनता को समझा कर रखी गई थी कि कीमतों पर नियंत्रण कैसे रखा जाता है। यह सिर्फ हम ही जानते हैं आज वह बातें कहां चली गई। महंगाई किस तरह इस देश के गरीबों को नुकसान पहुंचा रही है, इसे हर कोई समझा नहीं पा रहा है। लॉकडाउन में रोजगार का भी नुकसान हुआ, महंगाई भी बेलगाम रही। जुर्माने से भी सरकार ने अरबों खरबों कमाए अब जनता का कोई देखने वाला नहीं दिखाई देता है।
आइए समझते हैं महंगाई की मार जनता पर कैसे कैसे पड़ रही है प्रथम सभी वस्तुओं बाजार में महंगी हो रही है। डीजल, पेट्रोल, गैस के साथ-साथ बाजार में हर वस्तु का दाम बढ़ रहा है। एक कप चाय जो 2 साल पहले ₹5 में बाजार में मिलती थी अब बढ़कर ₹10 हो गई है। ₹5, ₹10 में जो बिस्कुट, साबुन जितने वजन के 7 साल पहले मिलते थे अब उनका वजन आधा ही रह गया है। महंगाई सामान के साथ उसका वजन भी खा रही है। हर वस्तु की महंगाई गरीब का बजट बिगाड़ रही है। यह तो वह प्रभाव है जो प्रत्यक्ष रुप से दिखाई दे रहा है।
जिसे हर कोई समझ रहा है, कह रहा है, अब वह प्रभाव भी देखिए जिसे कोई व्यक्त नहीं कह पा रहा है। वह क्या है, वह प्रभाव यह है, कि रुपए की ताकत अंदर ही अंदर रोज गिर रही है। जिसे कोई समझा नहीं पा रहा है। आज से 7 वर्ष पहले ₹10 का बिस्कुट बेचने पर जो ₹1 मिलता था, आज भी दुकानदार को वही ₹1 मिल रहा है। लेकिन क्या उस रुपए की ताकत अभी वहीं रह गई है। वर्ष 1993 में 3 पैकेट बिस्कुट बेच कर जो 3₹ दुकानदार को मिलते थे, उससे 1 लीटर डीजल आधा लीटर पेट्रोल खरीदा जा सकता था।आप अंदाजा लगाइए कि उस रुपए की ताकत वर्ष उन्नीस सौ 93 में क्या थी, 7 साल पहले क्या थी, और आज क्या है। आज सारी दुकानदारी इस रुपए आठ आने पर ही चल रही है। जिस पर वह दुकानदार अपने परिवार के साथ 1 से 2 व्यक्तियों को रोजगार भी दे रहा है। जिस रिश्ते को आज बढ़ती महंगाई नुकसान पहुंचा रही है।
अब सब दुकानदारों की स्थिति क्यों नहीं रही कि वह बढ़ती महंगाई के अनुसार अपने कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ा सकें। स्थिति ऐसी है, कि कर्मचारी सिर्फ अपने पेट भरने लायक ही कमा पा रहे हैं। जिससे उनकी शादी ब्याह, बीमारी, घर का खर्च बहुत ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, कहते हैं, भगवान भूखा उठाता है लेकिन किसी को भूखा सुलाता नहीं है। तो इसमें सारा योगदान व्यापारी भाइयों का ही रहा है। भिखारी भी व्यापारी से ही भीख मांग कर अपना पेट भरते हैं। सरकारी कर्मचारी से भीख मांगने कोई नहीं जाता है। आज अमेज़न जैसी संस्थाएं उसी व्यापार को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही हैं। बहुत सी सरकारें चुनाव में गरीबी हटाने का वादा करती रही है। अगर वह गरीबों की मदद ना कर सकें, तो कम से कम महंगाई को ही रोकने में कामयाब हो जाएं, तो यह गरीबों की सबसे बड़ी मदद होगी। जब जब रुपए की कीमतें गिरती हैं, उसकी ताकत कम होती है। उससे सरकारी खजाने की कीमतें भी कम होती है। महंगाई से किसी को कोई फायदा नहीं मिलता है। मिलता हो तो मुझे समझाएं।
बलवन्त सिंह रावत
















