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उत्तराखण्ड

फिर सक्रिय होंगे जिला विकास प्राधिकरण, क्षेत्र घटाया, शुल्क आधा किया

देहरादून। यहाँ भारी विरोध के बीच स्थगित किए गए जिला विकास प्राधिकरणों को सरकार दोबारा सक्रिय करने जा रही है। कैबिनेट बैठक में जिस प्रस्ताव पर मुहर लगी, उसके तहत सरकार ने प्राधिकरण के क्षेत्र का दायरा 200 मीटर से घटाकर 50 से 100 मीटर हवाई दूरी तक कर दिया है। वहीं, सरकार ने नक्शा पास करने का शुल्क भी घटाकर आधा कर दिया है।

दरअसल, त्रिवेंद्र सरकार में 13 नवंबर 2017 को सभी जिलों के स्थानीय प्राधिकरणों और नगर निकायों की विकास प्राधिकरण से संबंधित शक्तियां लेते हुए 11 जिलों में जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण गठित किए थे। हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण (एचआरडीए) में हरिद्वार के क्षेत्रों को शामिल कर लिया गया था, जबकि मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) में दून घाटी विकास प्राधिकरण को निहित कर दिया गया था। इसमें स्पष्ट किया गया था कि सभी जिला विकास प्राधिकरणों में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे के 200 मीटर दायरे में आने वाले सभी गांव, शहर शामिल होंगे।

इनमें नक्शा पास करना अनिवार्य कर दिया गया था। बाद में इस पर भारी विरोध हुआ। जन प्रतिनिधियों ने भी खुलेतौर पर विरोध जताया था। तत्कालीन बागेश्वर विधायक चंदन रामदास की अध्यक्षता में गठित समिति ने विस को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए इन प्राधिकरणों को रद्द करने की सिफारिश की थी। बाद में तीरथ सरकार और फिर धामी सरकार ने सभी जिला विकास प्राधिकरणों को स्थगित कर दिया था।

सरकार ने तीन महीने पहले इन प्राधिकरणों को नए सिरे से सक्रिय करने की कवायद शुरू की थी, जिसकी खबर अमर उजाला ने 18 जनवरी के अंक में प्रकाशित की थी। आवास विभाग से जो प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, उसमें विरोध के बिंदुओं (प्राधिकरण क्षेत्र, शुल्क आदि) में संशोधन भी किया गया था।

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अब कैबिनेट बैठक में इन्हीं संशोधनों के साथ प्रस्ताव पास हुआ है, जिसके तहत प्राधिकरणों का दायरा पर्वतीय क्षेत्रों में हाईवे के 50 मीटर हवाई दूरी और मैदानी क्षेत्रों में 100 मीटर हवाई दूरी तक होगा। नक्शा पास कराने के लिए शुल्क भी आधा ही देना होगा।

सचिव आवास एसएन पांडे ने बताया कि प्राधिकरण का परिक्षेत्र घटाने के साथ ही नक्शा पास कराने का शुल्क (उप विभाजन शुल्क, विकास शुल्क, पर्यवेक्षण शुल्क आदि) को 50 प्रतिशत कम कर दिया गया है।सरकार ने 50 से 100 मीटर हवाई दूरी के जिस क्षेत्र में नक्शे पास करने अनिवार्य किए हैं, उनके अलावा क्षेत्रों में 250 वर्गमीटर भूमि पर नौ मीटर ऊंचाई तक वाले एक आवासीय भवन या 50 वर्गमीटर जमीन पर छह मीटर ऊंचाई तक के भवनों के नक्शे स्वप्रमाणन से पास होंगे।

इसके लिए लोगों को शपथ पत्र देना होगा।2017 के बाद जिला विकास प्राधिकरणों में जिन क्षेत्रों को शामिल करने पर विरोध हुआ था, उनमें अब बदलाव हो गया है। पूर्व के नियम के हिसाब से 200 मीटर दायरे के भीतर आवासीय या व्यावसायिक भवनों के निर्माण को नक्शा वैकल्पिक था। यानी अगर किसी को नक्शे की जरूरत है तो वह प्राधिकरण से पास करा सकता है। पर्यटन पहाड़ के लिए अहम है। इसके लिए सड़कें चौड़ी होनी जरूरी हैं। अगर नक्शे का नियम होगा तो सड़कों के किनारे बेतरतीब निर्माण नहीं होंगे।

प्रदेश के करीब 63 निकायों में मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है। इन मास्टर प्लान को लागू करने के लिए प्राधिकरण का होना जरूरी है।कई शहरों में मानकों से इतर कई मंजिला इमारतें बनी हुई हैं। नियम लागू होने के बाद इनका नक्शा ही पास नहीं होगा।

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जोशीमठ भू-धंसाव सामने आने के बाद सरकार ने दोबारा इन प्राधिकरणों को सक्रिय करने पर जोर दिया।इस बार भी ये चुनौतियां होंगी सामनेपूर्व में जब प्राधिकरण बनाए गए थे, उसके बाद यहां अधिकारी-कर्मचारी नहीं थे।

एमडीडीए, एचआरडीए जैसे प्राधिकरणों से कर्मचारी भेजकर काम चलाया गया था। कर्मचारियों, अधिकारियों की कमी की वजह से लोग नक्शा पास कराने को भटकते रहते थे। इस बार इस कमी को दूर करने को विशेष प्रयास करने होंगे। नक्शा पास कराने के नाम पर प्राधिकरणों के कर्मचारियों पर अवैध वसूली के संगीन आरोप लग रहे थे, जिसके चलते प्रदेशभर में विरोध हुआ था। इस बार इस पर खास ख्याल रखने की जरूरत होगी।

पिछली बार 200 मीटर का नियम होने की वजह से बड़ी संख्या में शहरों के आसपास के गांव प्राधिकरण के दायरे में आ गए थे। अब 50 से 100 मीटर हवाई दायरे में भी काफी गांव आएंगे, जिनमें प्राधिकरण की छवि को मजबूत बनाने की चुनौती है। लोगों को नक्शा पास कराने के प्रति प्रेरित करने की भी चुनौती होगी।

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