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आराधना शुक्ला की तीन और नई पुस्तकें प्रकाशित

रविन्द्र नाथ टैगोर के विचार में विश्वास रखने वाली आराधना शुक्ला का भी यही मानना है कि “सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी पार नही कर सकते।“ इसी प्रकार अपने निरंतर प्रयासों के पश्चात आराधना शुक्ला की तीन नई पुस्तकें प्रकाशित हुई। जिनमे पहली पुस्तक का शीर्षक- कंटेम्पररी सोशल इश्यूज इन इंडिया, दूसरी का शीर्षक- फादर्स ब्लेसिंग तथा तीसरे का शीर्षक- पिता का आशीष है। इससे पहले भी आराधना की तीन अन्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पिता का आशीष नामक यह पुस्तक “फादर्स डे” के उपलक्ष में लिखी गई थी, जो कि हिंदी भाषा मे कविताओं तथा लघु कथाओ का संग्रह है। जिनको लिखने वाले देश के विभिन्न राज्यों के प्रोफ़ेसर्स, रिसर्च स्कॉलर्स तथा अन्य विद्यार्थी रहे। जिन्होंने इन पुस्तकों में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी दी। जैसा कि हम सब जानते है पिता के द्वारा किये गए उपकारों के कर्ज को अदा नही किया जा सकता, इसी संबंध में असिस्टेंट प्रोफेसर केतन पाटिल द्वारा लिखित कविता “किस तरह कर्ज़ अदा करूं“ काफी प्रशंसनीय रही। इसके अलावा स्मिता शुक्ला द्वारा लिखित कविता “पिता: एक दुनिया” तथा लघु कथा “दयालु पिता” आदि सभी भाव-विभोर कर देने वाली है। इसी प्रकार श्रुति मिश्रा की कविता “प्रेम की छावं”, आशीष शुक्ल की कविता “पिता का साथ न छूटे”, प्रेम प्रकाश उपाध्याय की कविता  “प्रेम पिता का” तथा अन्य कविताएँ व लघु कथाएँ आलेख स्तरीय है। आराधना द्वारा लिखित ये तीनो पुस्तकें अमेज़न पर उपलब्ध है। इच्छुक सम्मानित पाठकगण अमेजन से प्राप्त कर सकते हैं।

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