Connect with us

Uncategorized

भाकपा माले के राज्यव्यापी आह्वान के तहत उपजिलाधिकारी कार्यालय हल्द्वानी के माध्यम से राज्य के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा

भाकपा माले के राज्यव्यापी आह्वान के तहत आज माले की राज्य कमेटी के सदस्य के के बोरा और जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय द्वारा उपजिलाधिकारी कार्यालय हल्द्वानी के माध्यम से राज्य के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया।

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन में कहा गया कि, 08 फरवरी 2024 को हल्द्वानी के वनभूलपुरा में हुई हिंसा की घटना बेहद अफसोसजनक और निंदनीय है.
यह बेहद स्पष्ट है कि एक संवेदनशील मामले को बेहद अपरिपक्वता, अदूरदर्शिता और संवेदनहीनता से हल करने की कोशिश की गयी, जिसके नतीजे के तौर पर यह अफसोसजनक घटना हुई.
निश्चित ही यह प्रशासनिक मशीनरी की विफलता है कि वह हिंसा रोकने में नाकामयाब रही. पारिस्थितियां और तथ्य तो यह बता रहे हैं कि ऐसे हालात पैदा होने की तमाम चेतावनियों को अनदेखा किया गया.
इसलिए इस भीषण घटना की ज़िम्मेदारी प्रशासन और पुलिस के अफसरों पर आयद करते हुए नैनीताल जिले की जिला मजिस्ट्रेट और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को तत्काल निलंबित करते हुए हटाया जाना चाहिए. उनके स्थान पर कुशल, परिपक्व और संवेदनशील अफसरों को नियुक्त किया जाना चाहिए.
इस पूरे प्रकरण में जिस अफसर की भूमिका सर्वाधिक सवालों के घेरे में हैं, वे हैं- हल्द्वानी के तत्कालीन नगर आयुक्त श्री पंकज उपाध्याय. मामले को वे निरंतर उकसाते रहे. लेकिन यह हैरत की बात है कि इतनी भीषण हिंसा की घटना का एक पक्ष होते हुए भी उन्हें अपर जिला अधिकारी, उधमसिंहनगर के पद पर भेज दिया गया है. क्या यह इस अभूतपूर्व हिंसा में उनकी भूमिका का इनाम है ?
इस मामले में श्री पंकज उपाध्याय को भी निलंबित किया जाना चाहिए और इस प्रकरण में उनकी भूमिका की जांच की जानी चाहिए और इस बात की भी जांच की जानी चाहिए कि डेढ़ दशक तक वे हल्द्वानी में कैसे और क्यूं रहे.

यह भी पढ़ें -  हल्द्वानी-चिट्ठी पत्र पेटिका से छेड़खानी करने वालों के खिलाफ होगी कार्यवाही

ज्ञापन में आगे कहा गया कि, वनभूलपुरा में हुई हिंसा की घटना अभूतपूर्व है. आज तक राज्य में इस तरह की घटना नहीं हुई है. इसलिए इस घटना की स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की आवश्यकता है. उत्तराखंड सरकार ने कुमाऊं मंडल के कमिश्नर से इस घटना की जांच कराने का निर्णय लिया है. लेकिन घटना की गंभीरता को देखते हुए यह अपर्याप्त है. हमारी यह मांग है कि घटना की जांच माननीय उच्च न्यायालय की निगरानी में उच्च न्यायालय के सेवारत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश से करवाई जाए.
महोदय, नजूल भूमि और उस पर काबिज लोगों का प्रश्न पूरे राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण प्रश्न है. इसे सांप्रदायिक या गरीबों को उजाड़ने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. बल्कि इसका समाधान निकालने के ठोस प्रयास किए जाने चाहिए और दशकों से नजूल भूमि पर काबिज लोगों के नियमितीकरण की दिशा में बढ़ा जाना चाहिए.

मुख्यमंत्री से मांग की गई कि, अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर पिछले एक साल से राज्य में की जा रही कार्यवाही गंभीर सवालों के घेरे में है. इसमें सांप्रदायिक नज़रिया और गरीब विरोधी रुख स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होता है. बुलडोजर पराक्रम के जरिये मसलों को हल करने की प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए. किसी भी कार्यवाही को करते हुए स्थापित कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. पुनर्वास,नोटिस, सुनवाई और संवेदनशीलता का ध्यान रखा जाना चाहिए तथा किसी को बेघर नहीं किया जाना चाहिए. और एक अफसोसजनक हिंसा की घटना से निपटने के नाम पर भीषण पुलिसिया प्रतिहिंसा नहीं होनी चाहिए. हर कार्यवाही संविधान और कानून के दायरे में रह कर की जानी चाहिए.

यह भी पढ़ें -  झारखंड में चुनाव ड्यूटी करने आए उत्तराखंड के जवान की मौत

More in Uncategorized

Trending News