उत्तराखण्ड
कविता
उस बरगद से भी विशाल
था आपका व्यक्तित्व मेरे जीवन में ।
आपकी ही किसी शाख से
बना था मेरा आशियाना,
और मेरा अस्तित्व भी।
एक घोंसले में पड़े अंडे सा था में
आपने खोले आसमां के द्वार।
खोले मेरे ज्ञान चक्षु
जिससे देखा मैंने संसार।
आपने समझाया कि कर्म क्या है
में था कर्महीन सा बेकार।
आप जहां भी हो नाना जी
देख रहे हो ना……
आपके घोंसले से निकल कर ये ‘बाज़
आज नाप रहा है ये ‘आकाश’…।