Connect with us
Breaking news at Parvat Prerna

उत्तराखण्ड

हिमालय से हम हैं और हमारे लिए हिमालय

हमारा हिमालय. पर्वत श्रृंखलाओं की बिरादरी का सबसे लाड़ला, सबसे छोटा भाई है ये जिसने आसमान की सबसे क़रीबी ऊँचाई हासिल की है। महाकवि कालीदास ने जब हिमालय श्रृंखला के दर्शन किए तो इसे पृथ्वी के मानदण्ड की उपमा दी थी। एक ऐसा उपकरण जिससे न सिर्फ पृथ्वी के भौगोलिक विस्तार का अनुमान किया जा सकता है बल्कि इसकी सेहत वाली नब्ज़ को भी नापा जा सकता है।भारत के लिए तो हिमालय इससे बढ़कर भी बहुत कुछ है।समृद्ध हरीतिमा, सुखद जलवायु, सदानीरा नदियां और निशुल्क व विश्वसनीय प्रहरी।. हिमालय से हम हैं और हमारे लिए हिमालय. एक-दूसरे की सेहत का ध्यान रखने में ही सबका कल्याण निहित है।जिस छोर से हिमालय दिखता नहीं है वहां की गतिविधियां भी इसे प्रभावित करती हैं। हिमालय धरती का उभरा हिस्सा मात्र नहीं। ये वरदायी मुद्रा में खड़ा प्रत्यक्ष देवता है। इसे न सिर्फ नमन करें, इस पर मनन भी करें. हिमालय को महत्वाकांक्षा और दोहन का आलय न बनने दें, इसे हिम का आलय ही रहने दें।
प्रख्यात साहित्यकार-संपादक धर्मवीर भारती जी के निबंध ठेले पर हिमालय से प्रेरित भले ही लगे पर यकीन मानिए सूझा ये शीर्षक एक ठेके पर ही था. किसी ठेके की लाइन को गौर से देखिए। कैसे समाधिस्थ भाव से खड़े चरणामृत की प्रतीक्षारत रहते हैं भगत लोग।खिड़की के अंदर मानो कैलास में बूटी बांटते कोई बाबा बैठे हों.।बताना कठिन है कि पहले हिमालय पर ठेका खुला या हिमालय का ठेका हुआ। हां इतना कह सकते हैं कि लूटने का ठेका सबसे पहले हुआ. अब छुरी पे गिरे या छुरी पर, कटना को ही है।
ठेके पर हिमालय अर्थात हर उस चीज का ठेका जिसका वजूद हिमालय से हो. पानी हो, हवा हो, रेत-पत्थर हो, जंगल हो, बिजली हो, जमीन हो या फिर पर्यावरण. मंत्रालय आबंटन की खबर दिखाते हुए कई बार टीवी एंकर की जबान भी लड़खड़ा जाती है। हम बता रहे हैं, सबसे पहले, सबसे सटीक, किसको मिलेगा किस विभाग का ठेका।. हिमालयवासियो अभी भी वक्त है, मुझे ठेके से मुक्त करो. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे पास सिर्फ ठेके रह जाएं और बर्फ सिर्फ जाम में गिरे।
हिमालय किन-किन चीजों से बनता है – इस सवाल का उत्तर खोजने का शऊर पाने में आधी जिन्दगी लग जाती है। सिर्फ बर्फ से ढंकी चोटियां हिमालय नहीं होतीं. उसके पहले जिन हरे-नीले-सलेटी पहाड़ों की श्रृंखलाएं पसरी दिखाई देती हैं, वे सब भी हिमालय हैं. रात के वक्त इन पहाड़ियों पर दिखाई देने वाली एक-एक रोशनी एक घर होती है जिसके भीतर एक पूरा परिवार अपने मवेशियों, लोकदेवताओं, बच्चों की कहानियों और पुरखों की स्मृतियों के साथ खाना पका कर सोने की तैयारी कर रहा होता है।वे सारी रोशनियाँ हिमालय हैं. उन रोशनियों के स्वप्नों में आने वाले जंगल की हरियाली और बनैले पशु भी उतने ही हिमालय हैं जितना उसके गीतों में तूऊउ-तूऊउ करती रहने वाली चिड़ियाँ।

यह भी पढ़ें -  गुलदार का आतंक : सात वर्षीय बच्चे पर किया हमला, डीएम ने स्कूलों में किया अवकाश घोषित

प्रेम प्रकाश उपाध्याय
‘नेचुरल’ उत्तराखंड

(लेखक पर्यावरण संरक्षण व शैक्षणिक क्षेत्र से जुड़े हैं)

हिमालयन अध्ययन केंद्र में मनाया हिमालय दिवस

इधर जनपद पिथौरागढ़ स्थित हिमालयन अध्ययन केंद्र में भी हिमालय दिवस धूमधाम से मनाया गया। हिमालयन अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष डॉ दिनेश जोशी ने संस्थान से जुड़े सभी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित किया।इस मौके पर हिमालय को बचाने का संकल्प भी लिया गया। श्रीमती हेमलता जोशी ने सभी को एक साथ संकल्प दिलाया।

Continue Reading
You may also like...

More in उत्तराखण्ड

Trending News