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कुमाऊँ

क्या लिखूं फिर मां मैं तेरी बात में

लेखक- केतन पाटिल
मेरी माँ- माधुरी पाटिल

क्या लिखूं फिर मां मैं तेरी बात में

सोचा हूं तंहा बैठा, कुछ ख्याल आता ही नहीं,
मन तो एहसासों का समंदर, कुछ लिखा जाता ही नहीं,
लफ्जों का सागर जमा कर, एक ठंडे से एहसास में,
तू नया एहसास जगाती मेरे हर एक कोरे जज्बात में,
तू तो मां मुझमें रमी तू मेरे जज्बात में,
सोचता हूं क्या लिखूं फिर मां मैं तेरी बात में !!

घर को पीछे छोड़ आया, मैं यहां तन्हा ही नहीं हूं,
यहां मंजिल की फिक्र, मां वरना बाहर क्या सुकून,
दुख हो चाहे कोई गम हो, मैं यहां रोया नहीं,
चाहूं तो भी रोऊ कैसे, तेरा कंधा ही नहीं,
यहां बस यह तन अकेला मन तो तेरे साथ में,
सोचता हूं क्या लिखूं फिर मां मैं तेरी बात में
 मेरे हर लफ्जों में तू है, तू मेरे हर बात में!!

तेरे बिन मैं हूं अकेला, जग के कागार में,
तू है नाविक, मैं वह नाव जो फंसी मंझधार में,
बचा लेना मुझे मां, जब मैं फिसलू झरने की उस धार में,
तू मेरी जीवन कथा है इस कथा का सार मैं,
सोचता हूं क्या लिखूं फिर मां मैं तेरी बात में !!

तू बसी है मां मेरे जीवन के हर एक सौगात में
तू मेरी खुशियों की किरणें, गम की काली रात में, 
एक नई उमंग मेरे संग लगी है, मेरे हर एक अल्फाज में,
तू नहीं बर्बाद मैं हूं, तू है तो आबाद हूं मैं,
तेरे बिन मैं वह रुपया, जो बटता खैरात में,
सोचता हूं क्या लिखूं फिर मां मैं तेरी बात में !!

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तू है तो मैं हूं, वह सूरज जो कभी भूजता नहीं,
तू है तो वह वक्त मैं हूं, जो कभी रुकता नहीं,
तू है तो मैं वह समंदर बांदा जो जाता नहीं,
तू है तो पाताल धरती सब बराबर है यही,
तू है बनकर साज मधुरम मेरे दिल के पास में,
इसीलिए काला नहीं मन,गम की अमावस की रात में
सोचता हूं क्या लिखूं फिर मां मैं तेरी बात में,
कर्म भी तू, किस्मत भी तू है, तू ही हर पल साथ में,
सोचता हूं क्या लिखूं फिर मां मैं तेरी बात में!!

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