कुमाऊँ
21 साल के उत्तराखंड को घोषणाओं के अलावा क्या मिला..? चुनाव आते ही इन्हें सबकुछ आने लगता याद
खूबसूरत उत्तराखंड 21 साल बाद भी सही हाथों में नहीं पहुँच सका। अलग राज्य बनने के बाद से यहां भाजपा-कांग्रेस दोनों राजनीतिक दलों ने बारी बारी से राज किया। पाचवीं बार हो रहे 2022 के विधानसभा चुनाव आते ही सभी नेताओं को अब विकास की याद आने लगी है। कभी पर्यटन प्रदेश, तो कभी ऊर्जा तथा आयुष प्रदेश बनाये जाने के नाम पर तमाम दावे हुए,वायदे किये, लेकिन ढाक के तीन पात। पर्यटन स्थलों की बात करें तो बुरी हालत, सड़कें बदहाल। बागवानी हॉर्टिकल्चर जैसे अनेकों उद्यमियों के लिये सिर्फ योजनाएं ही बनाई गई। विकास के नाम पर यहां भी कुछ नहीं। बात स्वरोजगार, पलायन रोकने आदि आदि हुई लेकिन सबकुछ कहने के लिए हैं। सही मायने में उत्तराखंड के अंदर जो होना चाहिए था वह नहीं हो सका है। चुनाव आते ही मतदाताओं को रिझाने के लिये फिर वही दावे, कोरी घोषणाएं, वायदे,भरोसा दिया जाने लगा है। पिछले दो सालों से लोग कोरोना महामारी से जूझते आ रहे हैं।
चुनाव के बारे में पूछे जाने पर आइये जानते हैं भीमताल क्षेत्र के कुछ मतदाताओं का क्या कहना है। हरीश कुमार भीमताल के ही रहने वाले हैं,टैक्सी कारोबारी हैं। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में मतदान भी कर चुके हैं, उनका कहना है नेताओं को चुनाव के वक्त ही तमाम विकास की बातें याद कैसे आ जाती है। भीमताल बहुत खूबसूरत झीलों में से है। पिछले दो सालों से पर्यटन व्यवसाय ठप पड़ गया है। विकास के नाम पर इस विधानसभा में भी कोई कार्य नहीं हुए। यहां सबसे बुरी स्थिति सड़कों की है। होटल कारोबारी गिरीश पंत का भी लगभग यही कहना है, उत्तराखंड में विकास हुआ तो सिर्फ राजनीति करने वालों का हुआ है। यहां नेताओं की पनपती फौज आपस में ही उलझती रहती है। उत्तराखंड को ऐसी रोटी का टुकड़ा समझ रखा है जिसे बारी बारी नोंच खा रहे हैं। राज्य के लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में हालात मिलते जुलते हैं। कहीं न कहीं, कुछ न कुछ जटिल समस्याओं से लोग जूझ रहे हैं। भीमताल पहुँचकर आइये सुनते हैं पहाड़ का यह सुंदर लोकगीत।
पर्वत प्रेरणा ब्यूरो, भीमताल
















