उत्तराखण्ड
काश ! जीवन चंद दूरी पर अस्पताल पहुँच गए होते, बच सकता था उनका जीवन
हल्द्वानी। सरकार की 108 एम्बुलेंस सेवा कितनी तत्पर सेवा दे रहीं हैं, इसकी पोल कई दफा खुल चुकी है, लेकिन हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि शहर के बीचों बीच चंद दूरी पर खड़ी रहने वाली 108 एम्बुलेंस का रिमोट 300 किमी दूर रहता है उसे बुलाने के लिए कभी कभी काफी देर तक कॉल करना पड़ता है इसके बाद भी घंटों देर में 108 पहुँचा करती है, लेकिन आज जो हुआ उससे तो यही लगा कि शहर के बीच में होने पर भी लोग आपात सेवाओं से सुलभ नहीं हैं। समय से एम्बुलेंस न आने पर एक व्यक्ति की जान चली गई। उसे बचाया नहीं जा सका। ऐसे में यही कहा जा सकता है, हमारी स्वास्थ्य, आपात सेवाएं भगवान भरोसे ही चल रही हैं।
बताया गया कि दिवंगत समाजसेवी गुरविंदर चड्डा की मंगलपड़ाव स्थित दुकान पर खरीददारी करने आए हल्दूचौड़ के 40 वर्षीय जीवन पांडे पहुंचे थे। दुकान में स्वर्गीय गुरविंदर के बेटे गगनदीप सिंह दूसरे खरीददारों के साथ व्यस्त थे, इसी दौरान हल्दूचौड़ से आये जीवन अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, अचानक उनकी छाती में दर्द शुरू हुआ और देखते ही देखते वह दुकान के फर्श पर गिर गए। जीवन बार-बार छाती की तरफ हाथ लगा रहे थे, इससे समझने में देरी नहीं लगी कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है।
एक जागरूक नागरिक का दायित्व निभाते हुए गगन दीप सिंह चड्ढा और वहां खड़े कुछ लेागों ने तुरंत जीवन को आपात चिकित्सा देने के लिए सरकार की आपात सेवा 108 पर कॉल की। लेकिन आधे घंटे तक फोन करते रहने के बाद भी आपात सेवा का नंबर नहीं मिला।
इसी बीच आसपास के निजी चिकित्सकों को लेने के लिए भी कुछ लोग इधर-उधर दौड़े, लेकिन सभी ने आपात सेवा के उपयोग की सलाह दी। एक भी चिकित्सक दुकान के फर्श पर पड़े जीवन पांडे को देखने तक नहीं पहुंचा।
इधर गगनदीप बताते हैं, पांडे की हालत लगातार बिगड़ रही थी कोई भी उन्हें चिकित्सालय ले जाने की व्यवस्था नहीं कर पा रहा था। इस बीच कुछ लोगों ने चंद कदमों पर स्थित पुलिस चौकी फोन किया वहां से भी 108 एंबुलैंस के बुलाने की सलाह दी गई।कुछ लोग दौड़ कर पुलिस चौकी पहुंचे और चौकी प्रभारी के सामने पूरी घटना कह सुनाई इस पर भी किसी का दिल नहीं पसीजा। बाद में जैसे तैसे एक एंबुलैंस भेजी गई
जिसमें जीवन पांडे को चिकित्सालय पहुंचाया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जीवन के जीवन का चिराग बुझ चुका था। बाद में उनके शव को परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया।
वास्तव में यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई। जीवन की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई या फिर हमारी असंवेदनशीलता और व्यवस्था की जड़ता उसकी हत्यारी है। सोचिए दूर दराज के गांवों में हमारी स्वास्थ्य आपात सेवाओं के हाल क्या होंगे जब शहर के बीचों बीच यह हाल है।