Connect with us

Uncategorized

Badri Vishal Temple : बद्रीनाथ से जुड़े ये रहस्य नहीं जानते होंगे आप, धाम से जुड़ी रोचक बातें जानें यहां



बद्रीनाथ धाम से जुड़ी मान्यता है कि ‘जो आए बदरी, वो न आए ओदरी। इसका मतलब है कि जो व्यक्ति जीवन में एक बार दर्शन कर ले उसे दोबारा माता के गर्भ में नहीं जाना पड़ता है। इसके साथ ही बद्रीनाथ से जुड़े ये रहस्य जो कि आप नहीं जानते होंगे जैसे कि बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है। तो आइए जानते हैं बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कुछ रोचक बातें।


बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बद्रीनाथ में किस भगवान की पूजा (which god in badrinath) होती है। बद्रीनाथ धाम हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जो कि अलकनंदा के तट पर बसा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि यहां जाने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Badrinath
भगवान विष्णु ——–
ऐसा कहा जाता है कि कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु बद्रीनाथ में घोर तपस्या में लीन थे। तभी यहां हिमपात शुरु हो गया। जिसे देख कर माता लक्ष्मी विचलित हो गई और भगवान विष्णु की तपस्या में कोई बाधा उत्पन्न ना हो ये सोचकर बेर, जिसे बद्री भी कहते हैं, उसके वृक्ष में परिवर्तित हो गई।

मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को कठोर मौसम से बचाने के लिए उन्हें अपनी शाखाओं से ढक लिया। इस से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें ये आशीर्वाद दिया कि वो उनके साथ यहीं रहेंगी। भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी से कहा कि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है इसलिए आज से मुझे बदरी के नाथ यानी बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।

बद्रीनाथ धाम में नहीं बजाया जाता शंख
हिंदू धर्म में शंख की ध्वनि को बेहद ही पवित्र माना जाता है। लेकिन बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है। इसके पीछे का कारण ये है कि एक बार मां लक्ष्मी मंदिर के प्रांगण में जिसे तुलसी भवन कहा जाता है तपस्या में लीन थी। इसी दौरान भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण दैत्य का संहार किया था। लेकिन मां लक्ष्मी ध्यान में बैंठी हुई थीं तो भगवान विष्णु ने दैत्य शंखचूर्ण का वध करने के बाद भी शंख नहीं बजाया। जबकि हिंदू धर्म में युद्ध की विजय प्राप्ति के बाद शंखनाद किया जाता है। तब से ही बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है।

यह भी पढ़ें -  बेकाबू होकर खाई में जा गिरा ट्रक, तीन घायल

Badrinathशंख ——
पहले हुआ करता था शिव का धाम
ऐसा कहा जाता है कि बद्रीनाथ धाम में पहले भगवान शिव का निवास हुआ करता था। लेकिन बाद में भगवान विष्णु ने इस स्थान को भगवान भोलेनाथ से मांग लिया था। पौराणिक मान्याताओं के मुताबिक भगवान विष्णु ने बाल अवतार लिया हुआ था और वो ध्यान लगाने के लिए स्थान ढूंढ रहे थे और इसी बीच वो अलकनंदा के किनारे पहुंचे। उन्हें ये स्थान बहुत पसंद आ गया। लेकिन यहां पर भगवान शिव और माता पार्वती का निवास था।

Badrinathबद्रीनाथ से जुड़े ये रहस्य ——
एक दिन भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण पर निकले। जब वो वापस आए तो उन्होंने देखा कि एक शिशु द्वार पर पड़ा है और रो रहा है। जिसे देख मां पार्वती की ममता जाग उठी लेकिन भगवान शिव ने पार्वती को रोका कि ये बालक को आम बालक नहीं है ये कोई मायावी है। लेकिन वो नहीं मानी और उसे अंदर ले आईं। माता पार्वती ने बच्चे को चुप कराया और दूध पिलाकर सुला दिया। बच्चे को सुलाकर वो शिव के साथ स्नान के लिए चली गई। जब वापस लौटी तो दरवाजा अंदर से बंद था। ये देख भगवान शिव बोले कि अब वो बलपूर्वक ये दरवाजा नहीं खोलेंगे इस से अच्छा वो कहीं और चलें जाएं। ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद भगवान शिव केदारनाथ आ गए।

दो पर्वतों के बीच बसा है बद्रीनाथ धाम
आपको बता दें कि बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों नर और नारायण के बीच बसा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक नर अपने अगले जन्म में अर्जुन तो नारायण अगले जन्म में श्री कृष्ण के रूप में पैदा हुए थे।

यह भी पढ़ें -  उत्तराखंड में सहकारिता के चुनाव आगे खिसके, अब 16 और 17 दिसंबर को होंगे चुनाव

बद्रीनाथ धाम में चढ़ता है तुलसी का प्रसाद (badrinath prasad)
आपको बता दें कि बद्रीनाथ धाम में वनतुलसी या बद्री तुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री का प्रसाद चढ़ाया जाता है। बद्रीतुलसी बद्रीनाथ के आस-पास के इलाकों में बहुतायत में पाई जाती है। स्थानीय लोग इसे केवल भगवान को अर्पित करने के लिए ही तोड़ते हैं। बद्रीनाथ आने वाले श्रद्धालु इस प्रसाद को अपने घरों को ले जाते हैं। इसकी खासियत ये है कि ये ठंडी जलवायु में ही उगती है और इसकी खुशबू महीनों तक बनी रहती है।

Badrinathबद्री तुलसी ———-
रावल करते हैं बद्रीनाथ धाम में पूजा (badrinath rawal)
बद्रीनाथ में भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं। जिस कारण माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु छह महीने निद्रा में रहते हैं और छह महीने जागते हैं। इसी वजह से बद्रीनाथ धाम के कपाट छह महीने के लिए बंद रहते हैं। यहां केवल छह महीने ही पूजा होती है। यहां अखण्ड दीप जलता है जो कि अचल ज्ञान ज्योति का प्रतीक है। आपको बता दें कि बद्रीनाथ धाम के पुजारी शंकराचार्य के वंशज हैं। जिन्हें रावल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब तक ये लोग रावल पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्माचर्य का पालन करना पड़ता है।

Badrinath
लुप्त हो जाएगा आठवां बैकुंठ बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम के बारे में सबसे बड़ा रहस्य है कि भविष्य में आठवां बैकुंठ बद्रीनाथ धाम लुप्त हो जाएगा। ऐसी मान्यता है कि जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर में मौजूद नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ धीरे-धीरे पतला हो रहा है। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन ये हाथ मूर्ति से अलग हो जाएगा उस दिन नर-नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और भू-बैकुंठ बद्रीनाथ धाम जाने का रास्ता बंद हो जाएगा। यानी बद्रीनाथ धाम लुप्त हो जाएगा। जिसके बाद भगवान बद्रीनाथ जोशीमठ से 22 किलोमीटर दूर सुवई गांव में स्थित भविष्य बद्री में अपने दर्शन देंगे

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad

More in Uncategorized

Trending News