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राष्ट्रीय

सूचना विस्फोट के विकिरण से बचिये

आज चारों ओर सूचनाओं की भरमार है। जिधर देखो उधर खबर,जिससे पूछे उसके पास खबर, खबर ही खबर, बस कुछ नही है तो इनकी खबर लेने वाला नही है।वह बेखबर हैं। और मरीज़ की खबर लेने वाला केंद्र से गायब है। खबरों का चौमास आया है। सूचनाओं की बाड़,नदी ,गाड़-गधेरे उफान में है और ये ज्ञान के समंदर में सुनामी लाये हुए है। लगता नही कुछ ज्यादा ही सूचनाओं, खबरों ज्ञान गंगा प्रवाहित हो रही है। आज हम जिस समय मे जी रहे है उसका जमीं और आसमां सूचनाओं के भवर में फसी लगती है।इसे सही तो नही कहा जा सकता है। आखिर किसी भी चीज की सीमा होती है। इसीलिए कहा गया है
“अति सर्वत्र वर्जयेत्’

अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावणः।
अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्।।

अत्यधिक सुन्दरता के कारण सीता हरण हुआ।
अत्यंत घमंड के कारण रावण का अंत हुआ।


अत्यधिक दान देने के कारण रजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा।
अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए।अति कभी भी अच्छी नहीं होती फिर वह किसी भी कारण से हो। कहते हैं।

अति भली न बरसना अति भली न धूप।
अति भली न बोलना अति भली न चुप॥

यह दोहा हमें समझा रहा है कि यदि वर्षा अधिक होगी तो चारों ओर जलथल हो जाएगा। बाढ़ के प्रकोप जान-माल की हानि होगी। बीमारियाँ परेशान करेंगी। अनाज बरबाद होगा और मंहगाई बढ़ेगी। इसी तरह सूर्य के प्रकोप से चारों ओर गर्मी की अधिकता होगी। सूखा पड़ेगा और हम दाने-दाने के लिए तरसेंगे। और इसी तरह यदि सूचनायें, खबरें अति होंगी तो इसके विस्फोटों के विकिरण से हम कैसे बच पाएंगे।
भारत कोरोना महामारी की दूसरी घातक लहर का सामना कर रहा है। चिंता की बात यह है कि इस समय कोरोना के हर दिन आने वाले नए मामलों में भारत सबसे ऊपर है। संक्रमण की व्यापकता के आगे हमारी सारी तैयारियां नाकाफी साबित हो रही हैं। कोविड-19 के साथ-साथ भारत सहित पूरी दुनिया एक और महामारी से भी जूझ रही है, जिसे ‘इंफोडेमिक’ या ‘सूचना महामारी’ कहा जा रहा है। जहां सही सूचनाएं जहां आम लोगों की चिंताएँ कम करती हैं, वहीं डिजिटल माध्यम से फैलनेवाले दुष्प्रचार और अधकचरी जानकारियाँ लोगों की परेशानियां बढ़ाने की वजह बनती हैं। दुनिया भर में कोरोना से जुड़ी अफवाह के कारण हजारों लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है।
इस सूचना महामारी के चलते कुछ लोग कोविड-19 की गंभीरता और प्रभाविता को कम करके आँकते हैं, इससे बचाव के उपायों की अनदेखी करते हैं और यहाँ तक इसके वजूद को ही नकारते हैं। मसलन, ऐसे मिथकों और कॉन्सपिरेसी-सिद्धांतों को सोशल मीडिया और इंटरनेट के अन्य माध्यमों पर कुछ लोगों द्वारा खूब प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है, जिनमें दावा किया जाता है कि कोरोना वायरस को चीन की प्रयोगशाला में बनाया गया है, उच्च वर्ग के लोगों ने ताकत और मुनाफे के लिए वायरस का झूठा प्रचार किया है, चाइनीज फूड या मांस खाने से लोग कोरोना की गिरफ्त में आ जाते हैं, कोविड-19 मौसमी फ्लू से ज्यादा खतरनाक नहीं है या मामूली सर्दी-जुकाम के जैसा ही है, सभी वैक्सीन असुरक्षित हैं और वे कोविड-19 से ज्यादा घातक हैं, धूम्रपान, शराब और गांजा के सेवन से कोरोना से बचा जा सकता है, कोरोना 5जी टेस्टिंग का परिणाम है वगैरह-वगैरह। कुल मिलाकर हमारे चारों ओर कोविड-19 पर सूचनाओं और खबरों का एक विस्फोट हो रहा है।
कोरोना वायरस उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जो अपने अज्ञान और अंधविश्वास को समझ एवं ज्ञानरूपी हथियार के तौर पर पेश करके, अक्सर धार्मिक, रूढ़िवादी और सांस्कृतिक गर्व की चासनी चढ़ाकर दुनिया के समक्ष अपने ज्ञान का भौंडा प्रदर्शन करना चाहते हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने कई लोगों को डॉक्टर, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ और सर्वज्ञानी बना दिया है। वे डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके भ्रामक सूचनाएँ या जानकारियाँ फैला कर शिक्षित और अशिक्षित दोनों को ही बेहद खतरनाक तरीकों से गुमराह कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर फिलहाल देश के कई राज्यों में ऑक्सीज़न की किल्लत है तो कई स्वयंभू विशेषज्ञों और विद्वानों ने वाहट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब वगैरह पर लोगों को ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल बढ़ाने के लिए ऐसे कई घरेलू नुस्खे बता रहे हैं जो बिल्कुल भी कारगर नहीं हैं। जड़ी-बूटियों, नींबू के रस, नेबुलाइजर, ध्यान-योग से ऑक्सीज़न लेवल बढ़ाने के दावे कुछ ऐसी ही बेतुकी और भ्रामक सूचनाएँ हैं, जो आज़माने वालों के लिए जानलेवा हो सकती हैं।

इंफोडेमिक के फैलाव और हालात को जटिल व खतरनाक बनाने वाले चार मुख्य कारक हैं: पहला, इंटरनेट और सोशल मीडिया की बदौलत सूचना प्रसार की तीव्र गति। दूसरा, इंटरनेट के अथाह ज्ञान के भंडार तक सबकी आसान पहुँच। तीसरा, सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण के जरिए कॉन्सपिरेसी-सिद्धांतों का प्रचार। चौथा, सोशल मीडिया पर भ्रामक पोस्ट और वीडियो चिंता और आशा के चलते फैल रही हैं, और ज़िंदा रहने के लिए हमारे दिमाग की एक प्रवृत्ति खतरों को बड़े रूप में देखने की है। ऐसा हमेशा महामारी, आपदाओं, अकाल और युद्ध के समय होता है। इस समय देश ही नहीं सारी दुनिया एक मुश्किल दौर से गुजर रही है। मौजूदा वक्त में अनहोनी का डर, आशंका, घबराहट-बेचैनी लोगों में घर कर गई है, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इस डर और बेचैनी को बढ़ाने में हमारा कोई योगदान न हो।


प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’, उत्तराखंड
(लेखक वैज्ञानिक शिक्षा के प्रचार -प्रसार ,शोध से अंधविश्वास, कुरीतियों पर प्रहार कर समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व कोरोना महामारी से लड़ने को जागरूक करते आ रहे है)

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