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खेल

हांस्य- व्यंग, वन- जीरो (1-0)

लोकप्रिय खेल फुटबॉल चल रहा था। सैकडों, हज़ारों, करोडों आंखे पलक झपकाए बिना एकटक मैच देखे जा रहे थें। चेहरे की मुद्राएँ, भावभंगिमा कभी क्लासिक तो कभी मॉडर्न रॉक,जोज नृत्य करी जा रही थी। पसंदीदा खिलाड़ियों के फैन्स का उत्साह जून की तपती गर्मी की तरह चढ़ी जा रही थी। रेफरी, आयोजकों, क्लब के सदस्यों व एसोसिएशन से जुड़े तमाम लोगो की पौ-बारह हो रही थी। आखिर हो भी क्यू ना, धन वर्षा जो होने वाली थी। खिलाड़ी कोई तनाव में तो कोई पसीने बहाकर यहाँ पहुचा था। ये मैच उनके सीधे भविष्य से जुड़ा था। रोमांच पूरी जवानी में था।

मैच में तिल रखने भर की जगह नही बची थी। कुछ देर तो लगाने लगा जीवन। इतना लम्बा भी नही हैं जितना लोग मुफ्त का उपदेश दे डालते हैं। ये तो फुटबॉल क्लब मैच की तरह हैं। नब्बे मिनट के अन्तराल में आर- पार। चारों ओर एक ही शोर। आवृत्ति अलग-अलग मगर स्वर एक ओर।। खिलाड़ी फील्ड की ओर प्रस्थान कर रहे थे। सभी अपने- अपने मोर्चे पर डेरा डाल चुके थे। लगता था एक शानदार मैच होग़ा। अच्छी पावर(स्टेमिना) देखने को मिलेगी। प्रतिभाएं जब आपस में टकराएंगी तो एक बेहतर प्रतिभा (पोटेंशियल) बाहर आएगी। सभी को उसके प्रकट होने का इंतजार था। उस उजाले को सब देखना चाहते थे। पैसे तो कम से कम वसूल हो जाएंगे। ऐसे उम्मीद सभी को बिलग रही थी। रेफरी व आयोजको पर सबका भरोसा बराबर का था। खेल भावना सर्वोपरि होगी व प्रतिभा,मेहनत को सम्मान मिलेगा ये सबके जेहन में था।

यहाँ तक तो इसको मानने, जानने वालों में ना लिंग केआधार पर,ना वर्ण के आधार पर और ना ही क्षेत्र, भाषा के आधार पर कोई भेदभाव था। यहाँ तक सभी जन एक थे,रंग,रूप, वेश, भाषा चाहे अनेक थे। रेफरी की सिटी बजी। दर्शकों का उत्साह गगन चुम रहा था अब। खेल के मैदान में गोलची सहित फारवर्ड,बैकवर्ड,डिफेंडर,सेंटर की जगह दोनों टीमें डट चुकी थी। महाभारत बस होने ही वाला था। कि रेफरी की दूसरी सीटी ने सबको चौकाया। स्कोर बोर्ड के डिजिटल अंको से सबको साँप सूंघ गया।हतप्रभ। च्च, च्च, च्च,। शट, धत्त तेरी का, ओह माई गॉड। गई भैस पानी में, व्हाट नॉनसेंस जैसे शब्द फूटबॉल की जगह हवा में उछलने लग गये।
एक झटके में सबकी निगाहें रेफरी पर जा टिकी।

रेफरी मुह में सीटी दबाये हाथों को हिलाकर स्कोर बोर्ड के सच को दोहरा रहा था। चारों खाने चित्त। सेकंड के सौवे हिस्से में लोग गत खाकर घिरने लग गए। कभी आंखे मल-मल कर स्कोर बोर्ड की तरफ देखते, जब अपनी आंखों पर विश्वास नही होता तो बगल वाले से पूछते, जवाब वही सुनकर कुछ देर पहले नब्बे डिग्री लंबवत खड़ा रहने वाला चेहरा जीरो डिग्री पर आकर लुढक़ जाता। मैच शुरू होने से पहले पूर्व निर्धारित निर्णय।

सरकारी मैच था। चुनाव नजदीक थे। खुश करने की राजनीति खेले बिना ही परिणाम निर्धारित कर चुकी थी। लोग अब घरों को बैरंग लौट रहे थें। प्रतिभाओं की कद्र करने वालों मुल्क की बात उनकी जुवां में थी। चर्चा आम हो चली थी कि देश के पिछड़ने का कारण वे प्रतिभा प्लॉयन कही वन-ज़ीरो( 1-0 ) ही तो नही.?????।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल’
खेती,राई-आगर, पिथौरागढ़ ,उत्तराखंड

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