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आध्यात्मिक

होला-महल्ला पर्व पर दी भक्ति के रंग में रंगने की प्रेरणा

हल्द्वानी। गुरुगोविंद सिंह जी द्वारा सोलहवीं सदी में अपनी मौज को मजबूत बनाने के लिये दो भागों में विभाजित करके युद्ध का अभ्यास कराया जाता था। उसी की स्मृति में हर साल होला और महल्ला मनाया जाता है।

बीते दिवस जहां एक तरफ होली मनाई गई वहीं होला और महल्ला भी मनाया गया। गुरुद्वारा गुरूनानक पुरा हल्द्वानी में होला महल्ला के उपलक्ष्य में विशेष गुरमति दीवान सजाये गए जिसमें होला-महल्ला पर्व जो कि गुरुगोविंद सिंह जी 16वीं सदी में शुरू किया गया था। जिसका अर्थ होला यानि हमला व महल्ला यानि स्थान सम्पूर्ण अर्थ हमले का स्थान, अत्याचार से लड़ने हेतु सिख फौज को दो समूहों में बांटकर युद्ध का अभ्यास कराया जाता था। इस दौरान गुरुवाणी के द्वारा प्रभु सिमरन के रंग से आत्मा को रंगने का कार्य किया जाता था। इसी क्रम में देहरादून से पधारे भाई जसप्रीत सिंह जी ने समूह संगत को मानवता की सेवा प्रभु के सिमरन, परोपकार व गुरु के वाणी के रंग में रंगने का संदेश दिया। इसके साथ ही पंथ प्रसिद्व भाई कुलदीप सिंह देहरादून वालों ने रस भिन्ना कीर्तन गायन करके भाव विभोर किया। सभी को प्रभु की भक्ति के रंग में रंगने की प्रेरणा दी। कार्यक्रम में मुख्य तौर पर डॉ जगदीश चंद्र एसपीसिटी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। गुरु प्रबन्धक समिति द्वारा डॉ जगदीश चंद्र को सिरोपा भेंट कर सम्मानित किया। इस दौरान समिति के अध्यक्ष सरदार अमरजीत सिंह बिंद्रा, सतपाल सिंह गुजराल, अमरजीत सिंह सेठी, रंजीत सिंह आनंद, विजयंत सिंह, श्री सुखमनी साहिब सेवा सोसाइटी के मुख्य सेवादार सरदार सुरजीत सिंह सेठी, दलीप सिंह, बलवंत सिंह, अंगपाल सिंह, हरपाल सिंह, सविंदर कौर आदि मौजूद रहे।

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