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आध्यात्मिक

कुमाऊं में न्याय देवता के रूप में पूजे जाते हैं गोलू देवता,गोलज्यू

कुमाऊं में गोलू देवता को न्याय देवता के रूप में पूजा जाता है। यह वास्तव में सच्चाई है जब किसी को कहीं से भी न्याय नहीं मिलता, वह गोलू देवता मंदिर में गुहार लगाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में जनपद चंपावत, अल्मोड़ा में चितई, और नैनीताल में घोड़ाखाल गोलू देवता के प्रसिद्ध मंदिर हैं। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर गोलू, गोलज्यू का प्राचीन मंदिर चंपावत में है। गोलू देवता अपने न्याय प्रियस्वभाव तथा सभी की मनोकामना पूर्ण करने वाले विख्यात देवताओं में से हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार गोलू देवता, कत्यूरी राजवंश के राजा झालूराई की इकलौती संतान थे। राजा झालूराई एक न्यायप्रिय,दयालु और तेजस्वी राजा हुआ करते थे। उनकी सात रानियां थी लेकिन सभी निसंतान थी। राजा को अपने वंश को आगे न बढ़ पाने का डर था। जिस कारण वह काफी चिंतित रहते थे, एक दिन राजा एक ज्योतिष से मिले,ज्योतिष ने उनसे भगवान भैरव की तपस्या करने को कहा। इसके बाद राजा ने भगवान भैरव की घनघोर तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान भैरव ने राजा को दर्शन दिये औऱ तपस्या करने का कारण पूछा।तब राजा कहते हैं प्रभु आपको सबकुछ मालूम है, मेरी सात रानियां हैं लेकिन एक से भी संतान सुख नहीं मिला। यह सुनकर भगवान भैरव बोले राजा तुम दयालु,तेजस्वी हो लेकिन तुम्हारे जीवन में संतान सुख नहीं है, पर तुमने तपस्या कर मुझे प्रसन्न कर मुझसे जो वरदान मांगा है। उसमें तुम्हें निराश नहीं करूंगा। उन्होंने कहा मैं स्वयं पुत्र के रूप में तुम्हारे घर जन्म लूंगा, लेकिन तुम्हें आठवां विवाह करना होगा। यह सुनकर राजा खुश हुये उन्होंने भगवान भैरव से पूछा वह कौन सौभाग्यशाली स्त्री होगी जिसके गर्भ से आप जन्म लेंगे, इस प्रश्न पर भगवान भैरव बोले उचित समय आने पर तुम्हें सबकुछ ज्ञात हो जायेगा कि तुम्हारी आठवीं पत्नी कौन होगी।


काफी समय बीत गया परन्तु राजा को वह स्त्री नहीं मिली, जिससे वह विवाह कर सकें। एक दिन जब राजा शिकार पर गए हुए थे तभी उन्हें प्यास लगी उन्होंने सेवकों से पानी मांगा। पानी समाप्त हो चुका था, सेवक पानी की तलाश में चल दिये। जब वह काफी देर से नहीं लौटे तो राजा उन्हें खोजने चले गए, इसी बीच राजा एक तालाब किनारे पहुँचे जहां उनके सेवक मूर्छित पड़े हुए थे। राजा उन्हें देख चोंक गए।राजा को बहुत प्यास थी उन्होंने सोचा पहले पानी पी लूं, उन्होंने जैसे ही तालाब के पानी पर हाथ लगाया, उन्हें एक स्त्री की आवाज सुनाई दी, स्त्री बोली रुक जाओ, इन सभी ने भी ऐसी ही गलती की। यह तालाब मेरा है, बिना मेरी अनुमति के तुम पानी नहीं पी सकते। वह स्त्री बहुत सुंदर थी, राजा उसे देख मंत्र मुग्ध हो गए। राजा ने बताया कि वह इस राज्य के राजा झोलुराई हैं, उन्होंने पूछा देवी आप कौन हैं? इस वन में क्या कर रही हैं? तब उसने बताया कि वह पंच देवताओं की बहन कलिंगा है और झालुराई को यह साबित करने को कहा कि वह राजा हैं, तब झालुराई ने कहा कि मैं राजा होने का क्या प्रमाण दूँ, इसी बीच स्त्री को पास में लड़ रही दो भैसों को देखा और झट से राजा से कहा तुम इन्हें अलग करके दिखाओ तो मैं मान जाऊँगी कि आप राजा हो, राजा ने काफी प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हुये। तब स्वंय कलिंगा ने उन भैसों को अलग कर उनकी लड़ाई समाप्त करवा दी। राजा यह देख काफी प्रभावित हुए। उन्होंने देवी कलिंगा को आठवीं पत्नी बनाने की ठान ली। विवाह का प्रस्ताव पँच देवताओं के सम्मुख रखा। पंचदेवता भी झालुराई की महानता से वाकिफ थे , उन्होंने दोनों का विवाह करा दिया।

कुछ समय बाद कलिंगा गर्भवती हो गई, यह देख सातों रानियां कलिंगा से जलने लगी। सातों रानियों ने योजना बना ली कि कैसे भी हो रानी कलिंगा की संतान को खत्म करना है।तब सातों रानियां कलिंगा से कहती हैं कि एक ज्योतिषी ने बताया है अगर जन्म के समय तुम अपनी संतान को देखोगी तो मर जाओगी। जल्द ही प्रसव का दिन आया। रानी कलिंगा की आँखों पर पट्टी बांध दी गई। रानी ने पुत्र को जन्म दिया। सातों रानियों ने बच्चे को गौशाले में फेंक दिया ताकि बच्चा पशुओं के पैरों तले आकर मर जाये। और रानी कलिंगा को बताया कि उसने एक पत्थर, सिलबट्टे को जन्म दिया है और खून से लथपथ पत्थर कलिंगा की गोद मे दे दिया। वहां दूसरी तरफ गौशाले में पड़े बच्चे पर खरोंच तक नहीं आयी। गाय का दूध पीकर बच्चा सकुशल था। यह देख सातों रानियों ने बच्चे को नमक के ढेर में दबा दिया। पर वह नमक का ढेर चीनी के ढेर में बदल गया। इसके बाद फिर बिछुओं के बीच फेंक दिया, बच्चे का बाल भी बाका न हुआ। जब रानियों को कुछ समझ न आया तो बच्चे को संदूक में बंद कर काली नदी में बहा दिया।सात दिन सात रात के बाद एक मछवारे की जाल में वह संदूक फंस गया। जब मछवारे ने संदूक खोलकर देखा तो उसमें बच्चा मिला। यह देख मछवारे व उसकी पत्नी काफी प्रसन्न हुए क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। दिन बीतते गए बालक बड़ा होता गया।वहीँ दूसरी तरफ राजा झालुराई अपनी किस्मत से बहुत निराश थे। एक दिन लड़के को सपने में ज्ञात हुआ कि वह राजा झालुराई के पुत्र हैं, और उनकी सौतेली माताओं ने धोखे से उन्हें अपने माता पिता से दूर कर दिया है। साथ ही अपने जीवन का उद्देश्य जन्म से जुड़ी घटनाएं सबकुछ याद आ गया। सबकुछ ज्ञात होने के बाद लड़का अपने पिता(मछवारे) के पास गया और घोड़े की मांग की।

मछवारा गरीब था घोड़ा ख़रीदपाने में सक्षम नही था, और लकड़ी का घोड़ा ले आया। लड़का अपने भगवान भैरव के अवतार को जान चुका था। जिस कारण उसमें दैवीय व चमत्कारी शक्तियां आ चुकी थी। तो लड़के ने अपने चमत्कारी प्रभाव से घोड़े को जीवित कर दिया। घोड़े को लेकर राजा झोलुराई की राजधानी की ओर चल पड़े। राजधानी के समीप ही एक तालाब के किनारे सातों रानियां बैठी हुई थी। यह देख लड़के ने अपने घोड़े को फिर से लकड़ी का बना दिया। और रानियों के पास जाकर बोला कि हटो यहां से मेरे घोड़े को पानी पीना है। रानियां यह देख हैरान थी कि लड़का काठ के घोड़े को पानी पिलाने लाया है। उनमें से एक रानी बोली कि बालक तुम पागल हो लकड़ी का घोड़ा भी कहीं पानी पीता है। यह सुनकर लड़का बोला अगर इस राज्य की रानी एक सिलबट्टे, पत्थर को जन्म दे सकती हैं तो क्या मेरा काठ का घोड़ा पानी नहीं पी सकता। रानियां लड़के का दुस्साहस देख काफी क्रोधित हुए और लड़के की शिकायत राजा से की। लड़के को पकड़कर राजा के सम्मुख लाया गया। राजा ने लड़के से पूछा कि क्या तुम्हें इतना भी ज्ञात नहीं है कि काठ का घोड़ा पानी नहीं पी सकता। इस पर लड़के ने कहा राजन जब इस राज्य की महारानी एक पत्थर, सिलबट्टे को जन्म दे सकती हैं तो क्या मेरा काठ का घोड़ा पानी नहीं पी सकता। साथ ही लड़के ने बताया कि वही राजा की इकलौती संतान है।

जिसे सातों रानियों ने मारने की कोशिश की थी। साथ ही भगवान भैरव व राजा के बीच हुई बातों को बताया। जिसे सिर्फ राजा झोलुराई ही जानते थे। सभी बात सुन राजा को लड़के की बातों पर यकीन आ गया2 कि यहीं बालक उनकी संतान है। साथ ही क्रोधित होकर सातों रानियों को कारावास में दाल दिया। रानियां चीखने पुकारने लगी , रानी कलिंगा व राजा झालुराई से क्षमा याचना मांगने लगी। बालक के कहने पर राजा ने फिर सातों रानियों को माफ कर दिया। कुछ वक्त पश्चात बालक युवा हो चला था। राजा झोलुराई के पश्चात उन्हें राज्य का भार सम्भाला और अपने तुरंत, सही न्याय के चलते उन्हें न्याय का देवता कहा जाने लगा। यही प्रभावशाली बालक आगे चलकर गोलू, गोलज्यू देवता, गोलज्यू बाला गोरिया और गौर भैरव देवता आदि नाम से प्रसिद्ध हुआ।

-सुरेश पाठक

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