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जानिए, बादल फटना क्या होता है ?

मौसम विभाग की परिभाषा के मुताबिक़ एक घंटे में 10 सेंटीमीटर या उससे ज़्यादा भारी बारिश, छोटे इलाके में ( एक से दस किलोमीटर) हो जाए तो उस घटना को बादल फटना कहते हैं।

कभी कभी एक जगह पर एक से ज़्यादा बादल फट सकते हैं। ऐसी स्थिति में जान-माल का ज़्यादा नुक़सान होता है जैसा उत्तराखंड में साल 2013 में हुआ था, लेकिन हर भारी बारिश की घटना को बादल फटना नहीं कहते हैं।

बादल फटने के कारण क्या होते हैं?

ये भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। जैसे इस वक़्त जम्मू का मौसम है। वहाँ मॉनसून का भी असर है और साथ में पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बेंस) भी है। मॉनसून की हवाएं दक्षिण में अरब सागर से अपने साथ कुछ नमी लेकर आती हैं और वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से भूमध्यसागर से चलनेवाली हवाएं पश्चिम में ईरान, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से नमी लेकर आ रही हैं। ऐसे में जब ये दोनों आपस में टकराती हैं, तो ऐसी परिस्थिति बनती है कि कम समय में ज़्यादा नमी से भरे बादल छोटे इलाके के ऊपर बन जाते हैं और अचानक ही कम समय में ज़्यादा बारिश हो जाती है।

इसके अलावा पहाड़ों पर लोकल स्तर पर भी कई ऐसी मौसमी परिस्थितियां बनती हैं, जो कम समय में ज़्यादा बारिश करा सकती हैं। उस वजह से भी पहाड़ों पर बादल फटने की घटनाएँ हो सकती हैं।

क्या बादल फटने की घटना सिर्फ़ मॉनसून में ही होती है?

मॉनसून और मॉनसून के कुछ समय पहले (प्री-मॉनसून) इस तरह की घटना ज़्यादा होती है। महीनों की बात करें तो मई से लेकर जुलाई-अगस्त तक भारत के उत्तरी इलाके में इस तरह का मौसमी प्रभाव देखने को मिलता है।

क्या सिर्फ़ पहाड़ों में ही बादल फटते हैं?

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा जैसे समतल इलाके में भी बादल फट सकते हैं, लेकिन भारत में अक़्सर उत्तरी इलाके में ही इस तरह की घटनाएँ देखने को मिली हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि छोटे पहाड़ी इलाके में उन्हें अनुकूल स्थिति ज़्यादा मिलती है क्योंकि वहाँ ऊँचाई ज़्यादा है।

क्या उत्तर पूर्व में बादल फटने की घटनाएँ होती हैं?

चेरापूंजी जैसे इलाकों में तो साल भर ज़्यादा बारिश होती है। बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर हवाएँ आती हैं, मॉनसून के समय वहाँ भी ऐसी परिस्थितियाँ बनती हैं। उन इलाकों में बादल फटने की घटनाएँ होती हैं, लेकिन वहाँ के लोग इसके लिए पहले से तैयार रहते हैं। पानी एक जगह जमा नहीं होता, तेज़ी से निकल जाता है, उन इलाकों में लोग नहीं रहते हैं। इस वजह से जानमाल के नुक़सान की ख़बरें नहीं आती हैं।

यहाँ ये समझने वाली बात है कि केवल एक घंटे में 10 सेंटी मीटर भारी बारिश की वजह से ज़्यादा नुक़सान नहीं होता, लेकिन आस-पास अगर कोई नदी, झील,तालाब,बड़ा पोखर व पहाड़ो से घिरती घटिया पहले से है और उसमें अचानक पानी ज़्यादा भर जाता है, तो आस-पास के रिहायशी इलाकों में नुक़सान ज़्यादा होता है। इस वजह से जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं में जानमाल के नुक़सान की ख़बरें ज़्यादा आती हैं।

क्या बादल फटने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है?

बादल फटने की घटनाएँ एक से दस किलोमीटर की दूरी में छोटे पैमाने पर हुए मौसमी बदलाव की वजह से होती हैं। इस वजह से इनका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है। रडार से एक बड़े एरिया के लिए बहुत भारी बारिश का पूर्वानुमान मौसम विभाग लगा सकता है, लेकिन किस इलाके में बादल फटेंगे, ये पहले से बताना मुश्किल होता है। जैसे जम्मू के किश्तवाड़ में आज भारी बारिश का पूर्वानुमान था, लेकिन बादल फटने की घटना होगी, इसके बारे में जानकारी नहीं थी।


वैज्ञानिकों की राय में बादल फटने की घटना यदा-कदा ही होती है।क्योंकि बादल चलते रहते है जब जल वाष्प कण नमी के चलते भारी हो जाते हैं और कम ऊँचाई में पहाड़ो के बीच घिर जाते है तो ऐसी स्थिति में बादल फटने के संभावना बढ़ जाती है। कम नमी के जल वाष्प कण हवाओं के तीव्र वेग के बहाव के साथ चल कर बरसते रहते हैं। इसीलिए बरसात के मौसम में बादल फटने से डरने की नही बल्कि सतर्क रहने की जरूरत है। मौसम के समाचारों से भी हम अद्यतन जानकारी ले सकते है। बदती इंटरनेट तकनीकी व संसूची उपग्रहों के माध्यम से भी हम आज मौसम के सटीक भविष्यवाणी करने में सफल हो रहे हैं।
प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल
उत्तराखंड (लेखक विज्ञान शिक्षा के शोधों,अन्वेषणों ,प्रचार-प्रसार व शिक्षण से जुड़े है)

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