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शिव की तपस्थली जागेश्वर: यहां लिंग के रूप में पूजे जाते हैं भगवान शिव

आज हम आपको बताने जा रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड के जागेश्वर धाम के बारे में,जहाँ भगवान शिव साक्षात भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।जागेश्वर में वैसे तो वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन श्रावण मास में यहां अधिकाधिक संख्या में श्रृद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने के लिए यहां आते है। लेकिन हिंदू धर्म में अधिकतर लोग भगवान शिव को ज्यादा मानते हैं, इसी की वजह से लोग दूर-दूर से केदानाथ, बदरीनाथ और अमरनाथ यात्रा के लिए आते हैं।
देवो के देव महादेव के भारत के अधिकतर राज्यों में वैसे तो कई धर्म स्थल हैं और उनमें से अधिकतर लोगों ने इसके दर्शन भी किए होंगे।लेकिन उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित एक ऐसा धाम भी है जिसका नाम प्रसिद्ध है जागेश्वर। यहां भक्त आते जाते जरूर हैं लेकिन इसका रहस्य कोई भी नहीं जानता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं अल्मोड़ा से 38 किलोमीटर दूर स्थित जागेश्वर धाम की।

बता दें कि, भगवान शिव का यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर लगभग 2500 वर्ष पुराना है। उत्तराखंड में स्थित इस मंदिर का पौराणिक कथाओं में भी उल्लेख किया गया है, जिसका वर्णन शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है। यहां भगवान शिव और सप्तऋषियों ने की थी तपस्या,ऐसा माना जाता है कि यहीं पर भगवान शिव और सप्तऋषियों ने अपनी तपस्या की शुरुआत की थी और इसी जगह से शिव रुपि लिंग को पुजा जाने लगा था। इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि इसे गौर से देखने पर इसकी बनावट बिल्कुल केदारनाथ मंदिर की तरह नजर आती है। यही नहीं इस मंदिर के अंदर करीब 200 से अधिक ऐसे छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं जो जागेश्वर धाम का परिचय देते हैं। बताते हैं कि आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर के पीछे से एक छोटी सी नदी भी बहती है जो इस मंदिर की खुबसूरती को और भी निखार देती है।

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उत्तराखंड स्थित इस मंदिर को लेकर एक और मान्यता जुड़ी हुई है, जिसमें बताया गया है कि जब आदि गुरु शंकराचार्य केदारनाथ के लिए प्रस्थान करने वाले थे तो उससे पूर्व वह जागेश्वर धाम के दर्शन के लिए गए थे, जहां उन्होंने कई मंदिरों को जीर्णोद्धार कर उनकी पुन: स्थापना की थी। इस मंदिर में सच्चे मन से पूजा अर्चना करने वाले भक्तों को भगवान शिव उनकी मनोइच्छानुसार फल देते हैं।

कहा जाता है जागेश्वर में शिव का यह प्रथम मंदिर है जहां से लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसे योगेश्वर नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर शिवलिंग पूजा के आरंभ का गवाह माना जाता है। पुराणों के अनुसार प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं, जिसका भारी दुरुपयोग होने लगा। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। अब यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।

यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया। कहा जाता है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम इन मंदिरों की स्थापना की थी। जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है।

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