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आध्यात्मिक

मन्दिर जहाँ गोल्ज्यू भर देते हैं भंडार-भनेर गोल्ज्यू

उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता हैं।इसके एक नही गिनने बैठो तो हज़ार काऱण नज़र आते है। भौगोलिक रूप से पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे,नदियों, झरनों, तालाबों, पोखरों, गाड़- गधेरों, धारों, नौलों, ग्लेशियरों, जंगलों, वनों,खेत-खलिहानों, डान कानो,पेड़ों, गोचरों पर अवश्य ही मन्दिर दिख जायेगा। पहाड़ की ऊंची से ऊंची चोटी हो या हो नदी की तलहटी उत्तराखंडी अपने आपको इन्ही के बीच पाता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता हैं। गणितीय दृष्टिकोण से कहे तो एक आम उत्तराखंडी देवी-देविताओ के साथ जन्म लेता हैं, जीवन भर उनके ही बीच रहता है और दुनिया को अलविदा भी इन्ही के साथ करता हैं। कोइ भी टॉप जगह हो तो आपको मंदिर दिख जाएगा, तलहटी या किनारा हो तो भी मंदिर ही दिखेगा।

मंदिर उत्तराखंडियों की सीमा है। सिर पर भगवान और और मंदिरों की छत्र छाया में गांव के गाँव। ये कोई राकेट साइंस भी नही जिसे समझा भी नही जा सके। मंदिर गावो को जोड़ते हैं।लोग कम से कम इसी बहाने एक जगह मिलते हैं। पहले गांवो में मिलना-जुलना प्रायः आम बात होती थी। लेकिन तकनीकी के बढते प्रचार- प्रसार से लोग, लोगों के साथ कम मोबाइल के साथ, सोशल मीडिया के साथ ज्यादा रहते दिख रहे है। संक्रमण के इस समय में मंदिर लोगों को जोड़ने का महत्वपूर्ण काम कर रहे है। मंदिरों के बहाने लोग बिना किसी भेदभाव,लालसा या लालच के आते है। घर, बाखली, परिवार भले ही अलग- अलग हो रहे हैं लेकिन मंदिर ने सबको एक साथ जोड़ रखा हैं।


तैतीस कोटि देवी-देवताओ वाले सनातनी हिन्दू परंपरा इन गांवों में आज जीवित देखी जा सकती हैं। इन मंदिरों का जहाँ सामाजिक आधार है,समरसता है वही वैज्ञानिक आधार भी दिखता है। यही कारण हैं शताब्दियों से लोगो ने अपने भगवान चूने है और भगवान ने भी इनकी रक्षा दो कदम आगे बढकर की हैं। यह एक प्रकार का गांव के लोगों का भगवान के नाम पर प्रकृति को समझना,साथ रहना, संरक्षण,संवर्धन करना ही है। ऐसा ही अदभुत मंदिर है ज़िला पिथोरागढ़ के तहसील बेरीनाग से सात किमी की दूरी ग्राम गुरूसटी में भनेर गोल्ज्यू का। मान्यता है जो भी स्नेहीजन,भक्तजन सच्चे मन से मन्नत करता है, भनेर गोल्ज्यू उसका घर को भर देते हैं। गाँव के श्री हरीश उपाध्याय जो नित्य मंदिर में पूजा अर्चना करने आते है ने बताया की प्रति वर्ष गाँव वाले सामूहिक रूप से रामायण,भागवत व भजन कीर्तन करते रहते है।

प्रकृति की सुरम्य मनोहरिक दृश्यों को यहाँ से महसूस किया जा सकता हैं। स्वच्छ पानी,साफ हवा, चारों ओर हरियाली, बांझ और उतिश, काफल,क़वीराल, खडीक,मेहल, अखरोट के पेड़ एक समां बाँध देते हैं।रहने के लिए एक मुफीद जगह तो है लेकिन मूलभूत समस्याओं के अभाव में गांव से बहुत अधिक पलायन हो चुका है। जहाँ बदलते व बिगड़ते पर्यावरण से धरती साल दर साल गरम होती जा रही है लेकिन यहाँ पर आपको ये दूर-दूर तक भी नज़र नही आयेगी। सरकार अगर थोड़ा ध्यान दे तो स्टे होम की कल्पनाओं को जमीन में उतारा जा सकता है। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा सकते हैं। सड़क मार्ग से जुड़ जाने पर पर्यटकों, रिवर्स पलायन व प्रकृति प्रेमियों को एक नई जगह आनंद से सरोबार कर सकती है।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल
(लेखक शिक्षक व स्तम्भकार हैं)

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