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उत्तराखण्ड

एक ही परिवार के तीन दिव्यांग सरकारी सहायता को मोहताज

अल्मोड़ा। यह दर्द भरी दास्तान एक बहन और दो भाइयों की है जो पैर से दिव्यांग हैं। उनका कहना है पढ़े लिखे होने के बावजूद इनमें से एक को भी दिव्यांग कोटे से रोजगार नहीं मिला है। रोजगार तो छोड़िए एक अदद ह्वीलचेयर तक को मोहताज हो रहे हैं। अल्मोड़ा जनपद के हवालबाग विकास खंड में एक डोबा गांव है। इसी डोबा गांव के एक आम घर की कहानी अपने नाम के अनुरूप सिस्टम में पिसी नजर आती है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि गांव के एक ही परिवार में तीन दिव्यांग बच्चे हैं। जिनकी ओर से एक मार्मिक अपील सोशल मीडिया के फेसबुक प्लेटफार्म पर पोस्ट की है जिसमें उनका कहना है कि उन्हें ह्वीलचेयर दी जाय। इसके साथ ही नंबर भी दिया गया है।

इस दौरान दिए गये नंबर पर संपर्क करने पर उसने अपना नाम सौरभ तिवारी बताया। उसका कहना है कि वह और उसका भाई और सबसे बड़ी बहन तीनों शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं। और पढ़ें लिखे होने के बावजूद उनमें से किसी एक को अब तक एक अदद सरकारी नौकरी भी नहीं मिल पाई है जिससे उनका जीवन गुजारना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। सौरभ ने बात ही बात में बताया कि उनके पास ह्वीलचेयर तक टूटी फूटी हैं, जो कि उनकी सबसे पहली जरूरत है। सौरभ के परिवार में उसके माता पिता के अलावा बड़ी बहन और एक छोटा भाई भी है। परिवार के कुल पांच सदस्यों में से तीनों बच्चे दिव्यांग हैं। बूढ़े हो रहे माता पिता अपने बच्चों के भविष्य के प्रति चिंतित हैं।

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दो बार मिली सरकार से ह्वीलचेयर, टूट गयी
दिव्यांग सौरभ का कहना है कि सरकार की ओर से उन्हें दो बार ह्वीलचेयर दी गयी है। इसके बाद तीसरी बार उसने स्वयं का पैसा खर्च कर अपने लिए ह्वीलचेयर खरीदी है। उसका कहना है कि घर का बड़ा लड़का होने के चलते उसे सभी कार्यों के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है। इसलिए उसे इस चेयर की ज्यादा जरूरत पड़ती है। उसका कहना है कि उसकी स्वयं के पैसों से खरीदी ह्वीलचेयर खराब हो चुकी है जिसके असमय टूटने का खतरा है।

इस परिवार को है मदद की दरकार
विषम परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहे डोबा के इस परिवार को मदद की सख्त दरकार है। इस बीच शासन प्रशासन से मिले अनेक आश्वासनों के बाद यह लोग पूरी तरह से टूट चुके हैं। उनका कहना है कि वर्षों बीतने के बाद भी वही कोरे आश्वासन उनको मिल रहे हैं। उनका कहना है कि वह तीनों पढ़ें लिखे हैं लेकिन दिव्यांग होने के बावजूद उनमें से किसी के पास कोई सरकारी नौकरी प्राप्त नहीं है। लाचार पिता का कहना है कि जो बच्चे बुढ़ापे में उनका सहारा बनते उल्टा उनका सहारा मां बाब को बनना पड़ रहा है। पिता का कहना है कि उनके तीनों दिव्यांग बच्चों को ह्वीलचेयर, उनके घर से मोटर स्टेशन तक ह्वीलचेयर चलने लायक पक्की सड़क, तीनों में से किसी एक को नौकरी और परिवार के मकान बनाने हेतु हो रहे खर्च समेत इन चारों जरूरतों को पूरा करना सबसे पहला काम है जिसके लिए वह लगातार प्रयासरत हैं।

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