Connect with us
Breaking news at Parvat Prerna

उत्तराखण्ड

पहाड़ों का हरा सोना विलुप्ति की कगार पर, वैज्ञानिकों ने दिये रिसर्च के बाद खतरे के संकेत

उत्तखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में हरा सोना कहलाए जाने वाला बांज अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है। उत्तराखंड में बांज के जंगलों के ऊपर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। बांज के जंगल पहाड़ की पारिस्थितिकी के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं और इन जंगलों को चीड़ तेजी से निगल रहा है। ऐसे में यह खतरे का अलार्म है।

बता दें कि हाल ही में सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च देहरादून, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने उत्तराखंड के जंगलों में शोध किया और शोध में यह पाया गया कि उत्तराखंड में बांज के घने जंगलों में 22 फीसदी और कम घने जंगलों में 29% की गिरावट आई है और चीड़ के जंगल 74 फीसदी तक बढ़ गए हैं।

बांज वर्षा के पानी को अवशोषित कर भूमिगत करता है और इसी की वजह से उत्तराखंड में नदियों का जलस्तर बढ़ता है। उत्तराखंड के लिए बेहद अहम माने जाने वाले बांज के पेड़ों की कमी की वजह से धरती की कोख भी बांझ होती जा रही है।पहले जंगलों में बांज के पेड़ अधिक दिखते थे। यही वजह थी कि धरती में नमी बनी रहती थी। मगर अब जंगलों में बांज की संख्या बहुत कम हो गई है।कुमाऊं के कई गांवों में बांज के जंगल पूरी तरह समाप्त हो गए हैं।भूजल को समृद्ध करने में और पर्यावरण को समृद्ध रखने के लिए बेहद उपयोगी बांज की पत्तियों को पशु के चारे के तौर पर भी इस्तमाल में लाया जाता है।

यह चारा जानवरों के लिए बेहद जानवरों के लिए बेहद पौष्टिक माना जाता है। इसकी सूखी पत्तियां भी पशुओं के बिछावन के लिए प्रयोग होती है। वन विभाग के अनुसार कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में 80 फीसद चीड़ हैं, जबकि तीन फीसद से कम बांज है। चीड़ के जंगलों का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि वहां अन्य प्रजातियां नहीं पनप पाती हैं। जबकि बांध ज के जंगल में और भी कई तरह की प्रजाति के पेड़-पौधे उगते हैं जो कि वन्यजीवों के साथ ही स्थानीय लोगों के लिए भी बेहद लाभदायक हैं।

Ad Ad Ad Ad Ad Ad
यह भी पढ़ें -  रीठागाड़ के कनारीछीना प्राथमिक विद्यालय का निर्माण कार्य हुआ पूरा, अधिकारियों ने क्षेत्र का भ्रमण कर युवाओं के साथ की बैठक
Continue Reading
You may also like...

More in उत्तराखण्ड

Trending News