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राजनीति

राजनीति का स्तर उठाने की जरूरत

लोकतांत्रिक देशों में राजनीति सबसे अधिक की जाने वाली, सुनी जाने वाली,देखी जाने वाली गतिविधि हैं। तो भारत भला कैसे इससे अलग रह सकता हैं। राजनीति यहाँ घर-घर से लेकर गांव, गली, मोहल्लों,क्षेत्रों, क़स्बों, जिलों, प्रदेशों से लेकर देश तक फलती-फूलती हैं। वही राजनीति टिकी रहती हैं और टिकाऊ मानी जाती हैं जिसमें सही मायनों में राजा की नीयत प्रजा के प्रति ईमानदार हो । लोग विकास चाहते हैं।उनको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, चिकित्सा की सुविधा,रोज़गार के अवसरों को उपलब्धता,बिजली ,पानीरोड। बस बुनियादी तौर पर इतना ही। और सालों से बनती राजनीतिक सरकारें बस सिर्फ बनती ही हैं। काम कम बना रही हैं। लेकिन उनका अपना काम,कारोबार,कामना,
खूब चल रहा हैं, दौड़ रहा हैं। उनकी इस रेस में जनता नही हैं। जनता के नुमाइंदे सिर्फ चुनाओं की याद दिलाकर वोट डालने को प्रेरित कर लोकतन्त्र बचाने को देवदूत से नज़र आते हैं।

सालों गुजर गये।उम्मीदों को पंख नही लग पाये।लोग रोड संपर्क चाहते है,गाड़ी वो खुद खरीद लेते है,लोगो को रोजगार के अवसर चाहिए, वो अवसर को रोज़गार में बदल लेते है,लोंगो को चिकित्सा की सुविधा चाहिए,वो इसका खर्च खुद उठा लेते है। इसी प्रकार लोगो को कुशल नेतृत्व चाहिए वो खुद लोकतंत्र को ज़िंदा रखने आगे आ जाते हैं। जनता है सदा उम्मीदों से जगी रहती। राजनैतिक वर्ग से ये ज्यादा रहती हैं।भारत जैसे विशाल भू-भाग और अधिक जनसंख्या वाले देश में तो इसकी जरूरत और अधिक हैं। समाज में आज अच्छे राजनेताओं की बहुत जरूरत हैं। देश के विकास का रोडमैप तो ये ही बना सकते हैं।एक चीज और देखने को मिलती हैं जो बड़ी ही कष्टदायक लगती हैं। ऊपर की राजनीति का असर छन-छन कर गांवो तक पहुच रहा है। कई दफा तो छोटी -छोटी बातों पर लोग आपा खो दे रहे हैं। उनके बातचीत या वार्तालाप में अक्सर राजनीति के स्तर की तुलना सुनी जा सकती हैं।

आखिर कही ना कही से तो ये खट्टापन आ ही रहा हैं। सिर्फ टोपी बदलने से सिर बदलने वाले नही है। ज़िम्मेदारी तय करने पर ही अपेक्षित परिणामों की सोची जा सकती है। इसलिए राजनीति के स्तर को ऊपर उठाने की आज सख्त जरूरत हैं। इससे ना हमारे गांव मज़बूत होंगे बल्कि देश के विकास का रास्ता इन्ही से गुजरने पर रास्ते भर के आशियानें, घरौंदे,खेत-खलिहान, कस्बें, क्षेत्र, तोक, देश-प्रदेश भी मज़बूत होंगे। चाहते तो हम सब यही है कि हमारा देश मज़बूत हो तो फिर क्यों नही राजनीति का स्तर ऊपर उठें।

प्रेम प्रकाश उपाध्याय ‘नेचुरल

(स्वतंत्र लेखन एवं सामाजिकता से सरोकार)

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