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एआई ने पत्रकारिता को नए मोड़ पर खड़ा कियाः प्रो. दुर्गेश पंत






पत्रकारिता जनहिंत में बहती नदी हैः गोविंद जी पांडे
-हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर यूओयू में ‘डिजिटल मीडिया के दौर में हिंदी पत्रकारिता’ पर हुआ चिंतन
-दो वरिष्ठ पत्रकारों को किया सम्मानित
हल्द्वानीः हिंदी के पहले अखबार उदंत मार्तड की याद में 30 मई शुक्रवार को उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं मीडिया स्टडीज विभाग द्वारा हिंदी पत्रकारिता दिवस का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में बोलते हुए मुख्य अतिथि यूकॉस्ट के महानिदेशक व मुख्यमंत्री के तकनीकी सलाहकार प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता की बहुत समृद्ध परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में एआई ने सभी कपोल कल्पनाओं को धत्ता बता दिया है। एआई ने पत्रकारिता को भी आज एक नए मोड़ पर ले ला खड़ा किया है। जबकि मुख्य वक्ता प्रो. गोविन्द जी पाण्डेय ने कहा कि
दीप प्रज्ववलन व कुलगीत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. राकेश चन्द्र रयाल ने कहा कि भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत स्वतंत्रता संग्राम को लेकर भारतीयों में जनचेतना का विकास करने से हुई। राजा राम मोहन राय, गणेश शंकर विद्यार्थी समेत हिंदी पत्रकारिता को खड़ा करने वालों की एक लंबी फेहरिस्त है। आज पत्रकारिता नैरेटिव व एजेंडा सैटिंग में लगी है, उन्होंने हिंदी अखबारों में भाषाई विशुद्ता पर भी सवाल उठाए. संगोठी में डिजिटल मीडिया के दौर में हिंदी पत्रकारिता एक चिंतन विषय पर चर्चा हुई।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता भीमराव अंबेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. गोविंद जी पांडे ने कहा कि उदंत मार्तंड को प्रकाशित करके पंडित युगल किशोर शुक्ल ने हिंदी को मातृ भाषा से राष्ट्र भाषा के रूप में विकसित करने में बड़ी भूमिका अदा की। उन्होने बताया कि गल्फ वार ने तकनीकि के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाया। डेटा स्ट्रीमिंग के संसाधन हमारे पास बड़ी संख्या में आ गए जिससे हिंदी पत्रकारिता में भी बदलाव आए जो अभी तक केवल प्रिंट पत्रकारिता तक सीमित था वह अब इलेक्ट्रानिक तक विस्तारित हुई। तकनीकि सबसे पहले हमें जोड़ती है, टीवी क्रांति ने मुहल्ला व पड़ोसियों को एक घर में इकठ्ठा किया। उसके बाद केबल सेटलाइट फिर डीटीएच ने गांवों को भी गिरफ्त में ले लिया। एंटीना सारे गायब हो गए। सामूहिकता धीरे धीरे खत्म हो रही थी सब लोग इसके मायाजाल में फंसे हुए थे। धीरे धीरे संचार में बहुत सी विकृतियां आना शुरु हो गई। पत्रकारिता के मूल्यों को अगर हमें बना क रखना है तो हमें सबसे पहले पत्रकारिता शिक्षा को बदलना होगा। पहले पत्रकारिता का लीनियर मॉडल था जहां गेटकीपिंग हुआ करती थी आज डिजिटल मीडिया में ये गेटकीपिंग ये निगरानी खत्म हो गया है एक लहजे से तो यह फ्रीड्म ऑफ स्पीच के लिहाज से जरूरी है लेकिन अराजकता पैदा न हो इसीलिए एक हद तक नियंत्रण भी जरूरी है। पत्रकारिता जनहिंत में बहती नदी है। पत्रकार हमेशा ही समाज के लिए सोचता व काम करता है।
इसके बाद दो वरिष्ठ पत्रकारों को सम्मानित किया गया। जिसमें 40 सालों तक जनसत्ता व तमाम अन्य माध्यमों के साथ जुड़े रहे प्रयाग पाण्डे व जनपक्ष आजकल के संपादक गिरीश जोशी को सम्मानित किया गया। सम्मान पाने के बाद प्रयाग पाण्डेय ने पंडित युगल किशोर शुक्ल को कोट करते हुए कहा कि मुझे अपने शरीर का बंधन स्वीकार है, लेकिन मन का आत्मा का बंधन नहीं। ऐसा था उस समय के पत्रकारों का जज्बा। उन्होनें डिजिटल पत्रकारिता तक के पूरे सफर पर बात रखते हुए कहा कि टीवी को रंगीन होने में बहुत लंबा वक्त लगा वहीं इलेक्ट्रानिक से डिजिटल होने में मीडिया को एक दशक भी नहीं लगा. उन्होंने कहा कि आज चीजें बहुत तेजी से बदल रही हैं।
संगोष्ठी में बोलते हुए मुख्य अतिथि प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता की बहुत समृद्ध परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि एआई ने सभी कपोल कल्पनाओं को आज धत्ता बता दिया है। पत्रकारिता को भी आज एआई ने एक नए मोड़ पर ले ला खड़ा किया है। उन्होंने एआई के भविष्य पर बात की कि वह कैसे पूरे समाज को बदल सकता है। एक सकारात्मक बदलाव के लिए एआई को मानवता के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता के विकास में डिजिटल की महत्ता पर भी विशेष प्रकाश डाला।
संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. गिरिजा प्रसाद पांडे ने हिंदी पत्रकारिता के इतिहास को बताते हुए मानवता को ही हिंदी पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य बताया। सामाजिक विर्मश को पैदा करना पत्रकारिता का उद्देश्य है। उन्होंने समय विनोद व अल्मोडा अखबार का जिक्र करते हुए कहा कि पंडित जुगल किशोर शुक्ल कोलकाता में जो कर रहे हैं वही अल्मोड़ा में समय विनोद अखबार कर रहा था। उन्होंने भाषायी पत्रकारिता को आधार देने की जरूरत बताई।
संगोष्ठी के अंत में विवि के कुलसचिव खेमराज भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी का संचालन पत्रकारिता विभाग में असिसटेंट प्रोफेसर राजेन्द्र क्वीरा ने कहा कि डिजिटल मीडिया के दौर में हिन्दी पत्रकारिता में जितने अवसर पैदा हुए है, उतनी चुनौतियां भी है। कार्यक्रम में शिक्षाविद् प्रो. केके पांडे. प्रो. मंजरी अग्रवाल, प्रो. रेनू प्रकाश, प्रो. जितेन्द्र पांडे, प्रो. आशुतोष भट्ट, प्रो. मदन जोशी, डा. शशांक शुक्ला, डा. घनश्याम जोशी, डा. गौरी, डा. मनोज पांडे, डा. अखिलेश सिंह, राजेश आर्य विवि के शोधार्थी समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
-डा. राजेन्द्र सिंह क्वीरा
आयोजन सचिव, संगोष्ठी

